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सप्तदिवसीय दीपोत्सव : वसुबारस

भारतीय संस्कृति में सभी त्यौहार ,उत्सव
“प्रकृति के संवर्द्धन और संरक्षण” की प्रेरणा देते हैं- जैसे वट सावित्री, आँवला नवमी, नर्मदा सप्तमी ,गंगा दशहरा, कजलैय्या, घुल्लाई (पौळा) अमावस्या और न जाने कितने त्यौहार। इन्हीं त्योहारों की श्रृंखला में दीपावली का त्यौहार भारतीय संस्कृति में सभी त्योहारों में सर्वश्रेष्ठ त्यौहार है क्योंकि यह त्यौहार भारत ही नहीं विश्व के कई देशों में जात पात के बंधन को तोड़ते हुए सभी लोगों के द्वारा किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।

यह त्यौहार सप्तदिवसीय त्यौहार है जो रमा एकादशी और वसुबारस अर्थात द्वादशी से प्रारंभ होकर भाई दूज तक मनाया जाता है।

रमा एकादशी और वसुबारस एक ही दिन मनाया जाता है क्योंकि दसमीं तिथि के साथ एकादशी व्रत करने का विधान साधु संन्यासियों और साध्वी महिलाओं के लिए है,गृहस्थों के लिए कदापि नहीं। इस दिन माता लक्ष्मी के “रमा स्वरूप” और विष्णुजी के पूर्ण अवतार “केशव स्वरूप” का पूजन किया जाता है। कार्तिक व्रत करने वाली महिलाओं द्वारा आज के दिन कठिन उपवास करके दूसरे दिन पारायण किया जाता है।

अश्विन कृष्ण द्वादशी का अर्थ है वसुबारस। समुद्र मंथन से चौदह रत्नों में कामधेनु उत्पन्न हुई। ऐसा माना जाता है कि “नंदा” नाम की धेनु के नाम से यह पर्व मनाया जाता है। वसुबारस शब्द में वसु का अर्थ है धन (पदार्थ) और बारस का अर्थ है द्वादशी तिथि।

भारत की आत्मा ग्रामीण क्षेत्रों है जहाँ कृषि जीवन का आधार है। आज भी गाँवों में गोप-ग्वालों के द्वारा गाय को उसके बछड़े के साथ सजा-संवरा के लोक परिधानों में, लोक गीतों को गाते हुए, लोक-नृत्यों के साथ वसुबारस का उत्सव मनाया जाता है। अहीर नृत्य इसी का एक उदाहरण है।

तत: सर्वमये देवी सर्वदेवैरलङ्कृते |
मातर्ममाभिलषितं सफलं कुरू नन्दिनि ||

इसका अर्थ है, सर्वशक्तिमान और सभी देवताओं से सुशोभित माँ नंदिनी, मेरी मनोकामना को सफल बनाएँ।

इसी दिन से आँगन में रंगोली बनाकर दीपोत्सव का शुभारंभ गाय के साथ वत्स (बछुड़े) की पूजा करने से होता है। उत्तर प्रदेश में इस व्रत को “बछवांच” कहा जाता है। घर में देवी लक्ष्मी को लाने के उद्देश्य से इस दिन बछड़े के साथ गाय की पूजा करने की यह एक विधि है। घर की सुहागन महिलाएँ गाय के चरणों में जल चढ़ाती हैं, हल्दी-कुमकुम और अक्षत चढ़ाती है तथा गाय की आरती करती है। गौ माता को उड़द दाल से बने वड़े, चावल और मिठाइयाँ केले के पत्ते पर रख कर खिलाया जाता है। इस दिन दूध के पदार्थ नहीं खाते हैं।

गाय संपूर्ण विश्व, चराचर जगत् की माता है। गौ माता के शरीर में 33 कोटि (करोड़) देवी देवता निवास करते है। इसीलिए चातुर्मास में सभी देवी देवता शयन करने के पश्चात् गौ माता की पूजा करने से ही सम्पूर्ण देवी देवताओं का स्वयं ही पूजन हो जाता है। जिन घरों में गाय अपने बछड़े के साथ रहती हैं, उनके घरों में अठारह पुराण बसते हैं। कहा जाता है कि गाय की रक्षा, पालन-पोषण और पूजन से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की समृद्धि होती है।

क्रमश…..
– डॉ. नुपूर निखिल देशकर की कलम से
   संपर्क सुत्र – 94251 54571