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सप्तदिवसीय दीपोत्सव : रमा एकादशी

एकादशी एक सर्वश्रेष्ठ व्रत है। इसे हिंदी में ग्यारस भी कहा जाता है। हिंदु व्रत त्योहारों में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है। एकादशी व्रत आध्यात्मिक दृष्टि से, स्वास्थ्य की दृष्टि से , प्रकृति एवं सामाजिक संतुलन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

तिथियों की वैज्ञानिकता
हिंदू पंचांग में सूर्य और चंद्रमा की गति से नक्षत्रों की गणना होती है और नक्षत्रों की गणना से तिथियों का निर्माण होता है। इस प्रकार से दिन को एक तिथि माना गया है। नक्षत्र की समय अवधि घटी एवं पल से निर्धारित होती है जो लगभग 19 घंटे से लेकर 36 घंटे तक मानी गई है। ये घटी पल आगे पीछे होते रहते हैं। हिंदू पंचांगों में कोई भी तिथि पूरे एक दिन की नहीं होती इसमें जो कमी होती है वह 2 वर्ष पश्चात् अधिक मास के रूप में पूर्ण की जाती है।

एकादशी व्रत भी कभी दशमी तिथि के साथ मिश्रित रहता है, कभी द्वादशी तिथि के साथ मिश्रित होता है और कभी स्वतंत्र रूप से बिना किसी अन्य तिथियों के संयोग से भी पंचांग में आता है। उज्जैन के पंडित श्री मंगलेश्वर जी के अनुसार यदि दशमी तिथि के साथ एकादशी पड़ती है तो यह व्रत भगवान शिव की आराधना के लिए उत्तम होता है किंतु यदि उद्या तिथि से संपूर्ण दिन एकादशी है या एकादशी के साथ द्वादशी तिथि का मिश्रण है तब यह व्रत भगवान श्री विष्णु जी की उपासना के लिए उत्तम है। वैसे भी पूर्णिमा और

हिंदू पंचांग में अमावस्या को छोड़कर शेष तिथियों की गणना सूर्य उदय के पूर्व जो तिथि रहती है उसी के अनुसार की जाती है। इसे उद्या तिथि कहा जाता है।

रमा एकादशी
भारतीय हिंदू पंचांग में प्रत्येक माह में पड़ने वाली एकादशी का अपना अलग महत्व है किंतु कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है। दीपावली के ठीक चार दिन पूर्व यह एकादशी आती है उसे रमा एकादशी या कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी कहा जाता है। माता लक्ष्मी को “रमा” (श्रीहरि के हृदय में सदैव रमण करने के कारण) भी कहा जाता है। इस एकादशी को शास्त्रों के अनुसार, माँ लक्ष्मी के नाम पर रमा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के व्रत से ब्रह्महत्या के घोर पाप से भी मुक्ति मिलती है। इस व्रत को रखने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।रमा अर्थात् लक्ष्मी जी धनदात्री देवी है। इस व्रत को करने से महालक्ष्मी जी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस तरह “रमा एकादशी” बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। इस व्रत में भगवान विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी जी का भी पूजा करनी चाहिए।

उपवास
एकादशी के व्रत के एक दिन पहले से ही भक्तगण चावल खाना छोड़ देते हैं और जो भक्त एकादशी के आठ नियमों का पालन करते हैं वह दशमी तिथि के दिन चावल के साथ प्याज भी नहीं खाते हैं (लहसुन प्याज तामसी प्रकृति के होते है)। विज्ञान कहता है कि इन भोज्य पदार्थों से शरीर में वात की वृद्धि होती है जो व्रत के नियमों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करते हैं। व्रत के दिन भक्तगण आठों प्रकार के नियम- व्रत, जप, नियम, कटु, दया, स्वाध्याय, श्रम, दान इनका पालन करते हुए फलाहार लेकर व्रत करते हैं वे सभी मन की शुद्धि के साथ-साथ तन की शुद्धि को भी प्राप्त करते है । इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभिवृद्धि होती है। कैंसर जैसे रोग से भी शरीर सहजता से लड़ता है।

एकादशी और तुलसी जी
एकादशी के दिन देवी तुलसी को जल अर्पण नहीं करते क्योंकि माता तुलसी भगवान श्री कृष्ण के सानिध्य को पाने के लिए निर्जला व्रत करती हैं, किंतु इस व्रत के एक दिन पूर्व तुलसी दल तोड़कर भगवान को एकादशी के दिन अर्पण करना चाहिए। यह प्रमाण है कि माता तुलसी एकादशी व्रत करती है इसीलिए उनके पत्तों को भगवान श्री हरि विष्णु के प्रत्येक स्वरूप में चढ़ाया जाता है, यहांँ तक तुलसी दल के बिना भगवान भोग भी ग्रहण नहीं करते।

          लेखिका
डॉ. नुपूर निखिल देशकर
9425154571