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सावरकर विवाद : दादी और पोते में कौन सही

रवीन्द्र वाजपेयी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अग्रणी स्वाधीनता संग्राम सेनानी वीर सावरकर के बारे में गत दिवस जो कहा उससे महाराष्ट्र की राजनीति में उबाल आने के साथ ही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उल्लेखनीय है वीर सावरकर की गिनती उन अग्रणी स्वाधीनता संग्राम सेनानियों में होती है जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध जमकर संघर्ष किया था। ब्रिटेन में पढ़ते हुए ही वे क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आ गए थे। गिरफ्तार कर भारत लाये जाते समय पानी के जहाज से कूदकर तैरते हुए फ्रांस की सीमा तक पहुँच जाने और उसके बाद अंडमान की सेलुलर जेल में आजीवन कारावास की सजा भोगने के वृतान्त उनकी तेजस्विता के प्रमाण हैं। श्री गांधी ने गत दिवस भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के अकोला में एक पत्र की प्रतिलिपि पत्रकारों को दिखाकर उसे वीर सावरकर का माफीनामा बताया जिसमें उन्होंने अंग्रेजों का आज्ञाकारी सेवक बनने की मंशा व्यक्त की थी। उस पत्र को गांधी जी ,पं. नेहरु और सरदार पटेल के साथ धोखा बताते हुए श्री गाँधी ने कहा कि उन तीनों ने जेल में रहना पसंद किया किन्तु माफी नहीं माँगी। उनके इस बयान पर भाजपा का नाराज होना तो स्वाभाविक ही था लेकिन बीते कुछ समय से कांग्रेस के सहयोगी बने हुए पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना के एक गुट के नेता उद्धव ठाकरे ने भी असहमति व्यक्त की है। हालाँकि उन्होंने अपने चिर -परिचित तेवर दिखाने से परहेज किया जिसका कारण गठबंधन की मजबूरी है। लेकिन शिवसेना से अलग हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने श्री गांधी की कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए इसे महाराष्ट्र का अपमान बताया। राज्य के अनेक हिस्सों में श्री गांधी के पुतले जलाये गये और विरोध प्रदर्शन हुए। वीर सावरकर के एक परिजन ने उनके विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवाई है। चूंकि मामला राजनीतिक है इसलिए बयानबाजी का आदान – प्रदान भी चल पड़ा है। यद्यपि ये पहला अवसर नहीं है जब किसी कांग्रेस नेता ने वीर सावरकर के बारे में इस तरह की बात कही हो। देखा – सीखी पार्टी के अन्य नेता और कार्यकर्ता भी उनका अनुसरण करते हुए आपत्तिजनक बातें कहते रहे हैं। दरअसल कांग्रेस की वीर सावरकर से नाराजगी के पीछे महात्मा गांधी की हत्या कही जाती है किन्तु उस मामले में उन पर लगाये आरोप साबित नहीं हुए। और इसीलिये प्रधानमंत्री रहते हुए राहुल की दादी इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर के जन्म शताब्दि के आयोजन के प्रति अपनी शुभकामनाएँ देते हुए उनको भारत का महान सपूत कहते हुए अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध उनके साहसिक संघर्ष को स्वाधीनता संग्राम का महत्वपूर्ण अध्याय निरुपित किया था।  20 मई 1980 को प्रधानमंत्री के अधिकृत लेटर हेड पर लिखित उक्त पत्र शासकीय रिकॉर्ड के साथ ही इन्टरनेट पर भी उपलब्ध है।  इतना ही नहीं इंदिरा जी की सरकार ने सावरकर जी की जन्म शताब्दि के अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकिट भी जारी किया था। ये भी सुनने में आया कि श्रीमती गांधी ने जन्म शताब्दि समारोह हेतु 11 हजार रु. का आर्थिक सहयोग भी निजी तौर पर दिया था। ऐसा नहीं है कि ये सब बातें कांग्रेस के वरिष्ट नेताओं से छुपी हुई हों क्योंकि अतीत में जब भी इस तरह का विवाद उठाने की कोशिश हुई तब – तब इंदिरा जी का उक्त पत्र और डाक टिकिट जारी किये जाने की जानकारी मय दस्तावेज के सामने आई। पता नहीं राहुल इन सच्चाइयों से आंखें चुराने का प्रयास क्यों करते हैं ? और फिर कांग्रेस की वर्तमान हालत में सावरकर जी का हाथ तो हैं नहीं क्योंकि वे तो 1966 में ही चल बसे थे। हिन्दू महासभा नामक जिस राजनीतिक दल से उनका सम्बन्ध था वह भी राष्ट्रीय राजनीति में अप्रासंगिक है। भाजपा और शिवसेना के दोनों धड़े निश्चित तौर पर सावरकर जी के प्रशंसक हैं और उसका कारण उनका प्रखर हिन्दुवादी होना था। स्वाधीनता सेनानी के अलावा उन्हें समाज सुधारक के रूप में भी जाना जाता रहा है। छुआछूत के विरूद्ध उनके प्रयास काफी सफल भी हुए। वे उच्च कोटि के लेखक और कवि भी थे। ऐसा लगता है जो ऐतिहासिक भूल वामपंथियों ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के विरुद्ध विषवमन के रूप में की वही श्री गांधी वीर सावरकर की आलोचना करते हुए दोहरा रहे हैं। आज प. बंगाल में वामपंथी पूरी तरह हाशिये पर धकेल दिये गए तो उसका कारण नेताजी और स्वामी विवेकानन्द सरीखे महापुरुषों से घृणा रखना ही था। कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि वीर सावरकर पर एक उंगली उठाने से बाकी उसी की ओर उठती हैं। इंदिरा जी ने तो स्वाधीनता संग्राम अपनी आँखों से देखा था। वे हिंदूवादी राजनीति की आलोचक भी रहीं इसीलिये 1969 के कांग्रेस विभाजन के बाद उनकी वामपंथियों से निकटता बढ़ी। उनके शासन काल में रास्वसंघ पर प्रतिबंध भी लगा। आपातकाल के बाद 1980 में दोबारा सत्ता में लौटने के बाद वीर सावरकर की प्रशंसा में लिखा पत्र और उनके सम्मान में डाक टिकिट जारी किया जाना ये साबित करने के लिए काफी है कि स्वाधीनता सेनानी के तौर पर श्रीमती गांधी उन्हें कितना आदर देती थीं। जब श्री गांधी ने पहली बार सावरकर जी की देशभक्ति पर सवाल खड़े किये थे तब भी इंदिरा जी का संदर्भित पत्र सामने आया था। ऐसे में उन्हें सच्चाई से अवगत हो जाना चाहिए था परन्तु ऐसा लगता है राजनीतिक परिपक्वता के मामले में वे अभी भी कच्चे हैं। अब जबकि उन्होंने एक बार फिर वीर सावरकर को घेरने का प्रयास किया है तब उन्हें अपनी स्वर्गीय दादी द्वारा प्रधानमंत्री रहते हुए उनके बारे में जो कहा गया उस पर भी टिप्पणी करने का साहस दिखाना चाहिए। देश को ये जानने का अधिकार है कि सावरकर जी के बारे में जो इंदिरा जी लिख गईं क्या उनका पोता उससे झूठ साबित करने की हद तक जाएगा?

(आलेख में व्यक्त विचार लेख़क के आपने हैं।)