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“स्व के लिए सर्वस्व अर्पित : अमर बलिदानी वीरांगना लक्ष्मी बाई”

“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण.. मातृरुपेण संस्थिता.. मणिकर्णिका रुपेण संस्थिता.. महारानी लक्ष्मीबाई रुपेण संस्थिता.. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:”

ऋग्वेद के देवी सूक्त में माँ आदिशक्ति स्वयं कहती हैं,

“अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां,
अहं रूद्राय धनुरा तनोमि”
अर्थात मैं ही राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूँ, और मैं ही रुद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूं। हमारे तत्वदर्शी ऋषि मनीषा का उपरोक्त प्रतिपादन वस्तुत: स्त्री शक्ति की अपरिमितता का द्योतक है, जिसका स्वरुप झांसी की रानी लक्ष्मी बाई में आलोकित होता है

वीरांगना लक्ष्मीबाई की वीर गाथा का जब भी स्मरण करता हूँ तो जाने क्यों उनमें गोंडवाने की महान् वीरांगना रानी दुर्गावती का अक्स दिखता है.. वही देवीय स्वरुप, वही तीखे नैन-नक्श, वही तेज, वही स्वाभिमान, वही कर्तव्य बोध, वही मातृ बोध, वही राष्ट्र के लिए आत्मोत्सर्ग की ललक- “मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी” और संस्कारधानी में इनका अक्स वीरांगना श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान में दिखता है.. ऐंसा लगता है कि मणिकर्णिका अपनी गाथा लिखने और स्वतंत्रता संग्राम में पुनः अपनी भागीदारी के लिए सुभद्रा जी के रुप में अवतरित होती हैं. और लिखती हैं “खूब लड़ी मरदानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी” रानी लक्ष्मीबाई की वीरता से प्रभावित होकर और लड़ाई के मैदान में रानी से कई बार हारकर भाग चुके अंग्रेज जनरल ह्यूरोज ने कहा था कि- ”यहां वह औरत सोई है जो विद्रोहियों में एकमात्र मर्द थी।’

वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई
की
जयंती पर शत् शत् नमन है।
डॉ. आनंद सिंह राणा
   7987102901