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सिलसिला – दर – सिलसिला

– वीरेंद्र सिंह परिहार

विगत कुछ वर्षों में देश के अंदर हिंदुओं के त्योहारों में, चाहे वह रामनवमी की शोभा यात्रा हो, हनुमान जयंती की शोभा यात्रा हो, बसंत पंचमी का जुलूस  हो, चाहे श्रावण मास की कावड़ यात्राएं हो. कुल मिलाकर कमोबेश पूरे देश में हिंदुओं के इस तरह के धार्मिक जुलूसों में  मुसलमानों द्वारा हमले किए जा रहे हैं. इसमें एक और जहां पत्थरबाजी होती है, घातक शस्त्रों का इस्तेमाल होता है, वही पेट्रोल बम तक फेंके जाते हैं. लेकिन 31 जुलाई को मुस्लिम बाहुल्य हरियाणा के नूह जिले में मैं तो कुछ और नजारा था. यहां हिंदुओं की ब्रजमंडल यात्रा में हुए हमले में और तो सब हुआ ही, इसके साथ गोलियां भी दागी गई तो मोर्टार  तक का उपयोग किया गया. लेकिन इससे भी बड़ी बात है कि यह  सिर्फ हिंदुओं के शोभा यात्रा पर हमला नहीं था, बल्कि इसके बहाने नूह के साइबर थाने पर भी हमला किया गया.

बताया जाता है कि यहां का साइबर थाना साइबर अपराधों के मामले में पूरे देश में जामताड़ा के बाद दूसरे नंबर पर आता है. जहां पर यहां के मुस्लिमों को लेकर फ्रॉड के भारी मुकदमे दर्ज हैं. यद्यपि इन हमलों  को लेकर बजरंग दल के मोनू मानेसर का नाम खूब उछाला गया. कांग्रेस पार्टी के रणदीप सुरजेवाला ने तो यहां तक कह दिया की मोनू  मानेसर ने हिंदुओं को यात्रा में शामिल होने का आह्वान करके उन्हें भड़काने का काम किया. लेकिन लोगों की समझ में यह नहीं आया कि किसी कार्यक्रम में शामिल होने की अपील करना भड़काना कैसे हो गया? विडंबना यही की एक तरफ तो कांग्रेसी अपने को हिंदू साबित करने के लिए तरह-तरह के उपक्रम करते हैं लेकिन जब सवाल उनके वोट बैंक का आता है तो वह निकृष्ट स्तर पर हिंदू विरोध पर उतारू हो जाते हैं.

कहने का तात्पर्य है कि जिस तरह से कुछ सालों पहले बंगाल के मालदा में मुसलमानों ने हमला करके वहां के थाने में रखे अभिलेखों को नष्ट कर दिया था, ताकि उनके आपराधिक सबूत मिट जाएं. कुछ ऐसा ही प्रयास नूह के मुसलमानों द्वारा भी किया गया, उन्होंने साइबर थाने के दरवाजे को तोड़ा, वहां पर खड़े वाहनों को आग लगा दी. अपने उद्देश्य में वह कहां तक सफल हुए, यह तो आगे पता चलेगा. यह बात इससे भी प्रमाणित होती है, कि रास्ते में पड़ने वाले तीन अन्य थानों को  हमलावरों ने छुआ तक नहीं और इस थाने को निशाना बनाने के लिए उल्टी दिशा में 3 किलोमीटर गए. जहां पर थाने की छत पर चढ़कर गोलियां चलाई गई.

उल्लेखनीय है कि टेरर और जॉब तथा लोनफ्राड को लेकर पूर्व में एनआईए इस क्षेत्र में 320 ठिकानों पर  छापेमारी कर चुकी है, जिसमें 66 लोग गिरफ्तार किए गए थे और 126 लोगों को हिरासत में लिया गया था. इसके साथ ही 66 स्मार्टफोन 65 फेक सिम कार्ड तथा 22 मोटरसाइकिल जप्त की गई थी. छापेमारी के बाद यहां साइबर अपराधों में 26% की कमी आई थी.

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार अल्ला हू अकबर और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हुये 600-700लोगों की भीड़ हिंदुओं के जुलूस पर हमला कर दिया, पत्थरबाजी के साथ गोली भी चलाना शुरू किया. जिसमें अन्य 4  लोगों के साथ दो पुलिस वाले भी मारे गए. इतना ही नहीं मंदिर में शरण लिए लोगों को 700-800 की उग्र भीड़ ने घेर लिया, और पत्थरों तथा गोलियों से हमला किया. दुस्साहस यहां तक कि वहां में बैठे पुलिस अधिकारियों को जिंदा जलाने का प्रयास तक किया गया. सड़क पर बड़े-बड़े पत्थर डालकर आवागमन बाधित कर दिया गया और उग्र भीड़ ने सड़कों पर चल रहे वाहनों पर पत्थरबाजी तो किया ही, वाहनों को आग लगाकर जला दिया. हमलावर यहीं तक नहीं रुके, उन्होंने अस्पताल में घायल लोगों पर भी हमले करने का प्रयास किया. इस मामले में वहां के स्थानीय विधायक मामन  खान की अहम भूमिका बताई जाती है. जिसके द्वारा कहा गया कि युद्ध में  जंग लड़ो, मैं पूरी तरह मदद करूंगा. बड़ी बात है इस मामले में रोहिंग्या की भी भूमिका पाई गई. इसी के चलते प्रशासन द्वारा रोहिंग्या और अवैध घुसपैठियों की अवैध रूप से बनाई गई  200 झुग्गियों पर बुलडोजर चला दिया गया. पुलिस 202 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है और घटना से संबंधित 102 एफ आईआर दर्ज कर चुकी है.

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यह सब बातें तो अपनी जगह पर हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात यह कि ऐसी घटनाएं देश में रुक क्यों नहीं रही हैं? जबकि ना तो देश में और ना ही हरियाणा प्रदेश में कम से कम तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति करने वाली सरकारें नहीं हैं. तो क्या यह माना जाना चाहिए सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि मुस्लिम समस्या पूरे विश्व की एक बहुत बड़ी उलझी समस्या बन गई है. मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां बसाने  के चलते उसका दंश पूरा यूरोप झेल रहा है. अभीगत महीने ही फ्रांस में वहां पर मुस्लिमों ने जिस ढंग से कई दिनों तक  पूरे फ्रांस को दहलाया. नालंदा की तर्ज पर वहां एक बहुत बड़े पुस्तकालय को जला दिया, पुलिस थानों पर हमला किया. हजारों वाहन जला दिए. कमोवेश यूरोप के कई देश मुस्लिम उग्रवाद से पीड़ित हैं. इससे यह साबित हो चला है कि कम से कम मुस्लिम समुदाय  किसी भी दूसरे समुदाय के साथ भाईचारे और सह अस्तित्व के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है.भारत जैसे देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्यों के कारण समस्या दिनोंदिन और जटिल होती जा रही है. पर दुर्भाग्य है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते इस देश में उनके पैरोंकारों की कमी नहीं. स्थित की भयावहता को समझते हुए देश के बंटवारे के समय  सरदार पटेल और डॉक्टर अंबेडकर यह चाहते थे कि भारत और पाकिस्तान के बीच हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या की अदला बदली हो जाए, ताकि भविष्य में देश शांति और स्थिरता के साथ रहकर अपना  विकास कर सके. लेकिन औरों की बात अलग है कुल मिलाकर गांधी और नेहरू के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाया.

हरियाणा के मेवात क्षेत्र के मुसलमानों को लेकर सरदार पटेल ने 1948 में ही कह दिया था कि मेवात के मुसलमान अलग मेविस्तान स्थान बनाना चाहते हैं और यदि ऐसा करने का प्रयास हुआ तो मैं इस्तीफा दे दूंगा. विडंबना है कि जो मेव मुसलमान पाकिस्तान चले गए थे गांधी जी की मृत्यु के बाद वह भी भारत लौट रहे थे. सरदार पटेल ने पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में कहा था- पाकिस्तान से आने वाले मेंव और बाकी मुसलमान की वापसी पर मैं बहुत चिंतित हूं. यदि उन  लोगों के वापस प्रवेश के कारण आग लगती है तो हम उसे काबू नहीं कर पाएंगे.

एक पत्र में उन्होंने यह भी लिखा था कि मेव मुसलमानों ने किस तरह अलवर और भरतपुर में अत्याचार किया और बगावत कर अलग देश बनाने की कोशिश की. लेकिन स्वप्नजीवी  पंडित नेहरू को इन सब बातों से कोई असर नहीं पड़ा. जिसका परिणाम यह हुआ कि हिंदू इस क्षेत्र में अल्पसंख्यक हो गए और देश में जहां जहां हिंदू अल्पसंख्यक होता है तो उसका परिणाम हम कश्मीर घाटी से लेकर बंगाल के सीमावर्ती गांवों तक में देख चुके हैं. देश का हिंदू समाज कह रहा है कि आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा? उम्मीद की जानी चाहिए कि देश एवं प्रदेश की राष्ट्रवादी  सरकारें  इसके लिए दूरगामी और कड़े कदम उठाएगीं.

आलेख में लेखक के अपने विचार है.