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“स्वतंत्रता बलिदान चाहती है”

ये शब्द ऐसे युगपुरुष की है जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में एक नया मोड़ दिया. भारत की आजादी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अहम भूमिका रही. नेता जी का पूरा जीवन संघर्षों से भरा रहा देश उनके इस अमर गाथा को हमेशा याद रखेगा. नेताजी एक ऐसा व्यक्तित्व का नाम हैं जिसने देश की आजादी की लड़ाई में जी जान लगा दिया.

एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जो सिविल सेवा परीक्षा से इस्तीफा देकर राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गया. नेताजी समझ गए थे कि देश की आजादी के लिए सिर्फ अहिंसा ही काफी नहीं है. इस आजादी को पाने के लिए इन्होनें आजाद हिंद फौज का गठन किया. नेताजी उन क्रांतिकारियों में से थे जिन्होंने विदेशी जमीन पर आजाद हिंद फौज का गठन किया और भारत के लोगों को स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरित किया.

रंगून में दिए गए अपने भाषण में बोस ने कहा था “स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथी स्वतंत्रता बलिदान चाहती है. आपने आजादी के लिए बहुत त्याग किए हैं किंतु अपनी जान की आहुति अभी बाकी है. मैं आपसे एक चीज मांगता हूं और वह है खून. दुश्मन ने हमारा जो खून बहाया है उसका बदला सिर्फ खून से ही चुकाया जा सकता है. इसलिए तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा. जिनकी नसों में भारतीयता का सच्चा खून बहता हो. जिसे अपने प्राणों का मोह अपने देश की आजादी से ज्यादा ना हो और जो आजादी के लिए सर्वस्व त्याग करने के लिए तैयार हो, इन्हीं शब्दों के साथ बोस ने प्रतिज्ञा पत्र पर सबको हस्ताक्षर करने को कहा.”

Netaji Subhash Chandra Bose - Bangladesh Post

सुभाष चंद्र बोस: परिचय

वैसे तो सुभाष किसी परिचय के मोहताज नहीं देश उनको हमेशा याद रखेगा. स्वतंत्रता संग्राम में बोस ने बहुत कुर्बानियां दी है. 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक हिंदू परिवार में बोस का जन्म हुआ. इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था और माता का नाम प्रभावती देवी था. सुभाष की प्रारंभिक शिक्षा एंगलो इंडियन स्कूल, कटक से हुई और कलकत्ता विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त किया.  बोस के पिता कटक शहर के एक प्रतिष्ठित वकील थे. पिता के  आग्रह पर 1919 में बोस भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड चले गए.

साल 1920 में सुभाष ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में आवेदन किया और इस परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया. भारत में अंग्रेजों के बढ़ते जुल्म को देखते हुए सुभाष ने राष्ट्र कर्म को अपना लक्ष्य चुना. देश की आजादी के लिए बोस ने प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर अपने आप को राष्ट्र को समर्पित कर दिया. पुत्र के इस निर्णय को देखकर पिता ने कहा “जब तुमने देश सेवा का व्रत ले ही लिया है तो कभी इस पद से विचलित मत होना”. बोस अपने पिता से भी काफी प्रभावित थे। इनके पिता अंग्रेज़ो के अत्याचार को देख कर अपनी “रायबहादुर” की उपाधि लौटा दी थी।

आजाद हिंद फौज का गठन

“कदम-कदम बढ़ाए जा,खुशी के गीत गाय जा”, गीत के साथ जब भारतीय हिन्द की सेना आगे बढ़ती थी तो उनके जोश और उत्साह भर उठते थे. बोस समझ गए थे की अंग्रेज़ो से लड़ने के लिए उन्हें एक सेना की जरूरत पड़ेगी. फिर क्या था 1942 में इन्होनें भारतीय फौज को बना दिया. आज़ाद हिन्द फौज ने भारतीय स्वतंत्रता को एक अन्तराष्ट्रिय ख्याति दी. भारत की पहली फौज जिसमें देश के सभी संप्रदाए के लोग थे, इसमें महिलाओ का भी एक रेजीमेंट था.

भारतीय फौज की ये पहली सेना न सिर्फ अपने स्वतंत्रता के लिए लड़ी बल्कि अन्य देश भी इसकी मदद ले रहे थे. बोस की फौज ने दूसरे विश्व युद्ध में दूसरे देशों का भी सहयोग किया और जापान जैसे देश ने हजारो भारतीय को अपने जेल से मुक्त किया जिन्होनें आज़ाद हिन्द फौज में अपनी सेवा दी। जापान और जर्मनी ने भारतीय युद्ध बंदियों को रिहा कर दिया ताकि वो बोस की सेना में शामिल हो सके.

नेता जी का मानना था की आज़ादी सिर्फ अहिंसा से नहीं मिल सकती ये बात भी सच हैं क्योंकि लाखों लोगों के बलिदान के बाद ये आज़ादी मिली हैं. यही कारण था की आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया गया जिसके बाद बोस ने अपने सैनिकों को प्रेरित करने के लिए नारा दिया “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”. बोस की इस सेना ने न सिर्फ अपने देश की स्वतंत्रता में अंग्रेज़ो से लड़ाई की बल्कि जापान जैसे देश की भी मदद की. अपने इसी सेना को बोस ने “दिल्ली चलो” कर के संबोधित किया था।

इस वीर सपूत को देश हमेशा याद रखेगा जिसने राष्ट्र की एकता, अखंडता को कायम रखा. आने वाली पीढ़ी इनके इस योगदान को हमेशा याद रखेगी. महात्मा गांधी को “राष्ट्रपिता” कहने वाले बोस ही थे जिसके बाद गांधी जी ने इन्हें “नेताजी” कहा. 1943 को सुभाष ने आज़ाद हिन्द सरकार का गठन किया. बोस के इस सरकार को 11 देशों ने मान्यता दी, जिसमें सोवियत संघ भी शामिल था. इस सरकार के प्रमुख भी बोस ही थे. इस सरकार के गठन में इनकी मदद इटली, सिंगापुर, जापान, नाजी जर्मनी जैसे देशों ने किया. इस सरकार की अपनी कोर्ट, मुद्रा और सिविल कोड भी थे. दुनिया ने बोस की इस सरकार को देखते हुए इन्हें भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में भी स्वीकार किया था.

बताया जाता है की जब नेताजी 18 अगस्त 1945 को विमान से टोक्यो के लिए जा रहे थे तो उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. स्वतंत्र भारत की जयघोष करने वाला ये वीर राष्ट्र प्रेम का ध्वज लहरा कर अमर हो गया. इस दुर्घटना में बोस नहीं रहे इसका कोई साक्ष्य भी नहीं मिला. धन्य है ये मातृभूमि जिसने इस सपूत को जन्म दिया।

आज पूरा देश नेताजी की 125वी जयंती ,23 जनवरी 2022 को मनाने जा रहा हैं और इनकी याद में भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर नेता जी की भव्य प्रतिमा लगाने की घोषणा की हैं. नेताजी की याद में अब हर साल गणतंत्र दिवस समारोह भी 24 जनवरी के बजाए 23 जनवरी से शुरू किया जाएगा. आज पूरे देश में अलग-अलग कार्यक्रम से बोस को याद किया जाएगा और इनकी जयंती मनाई जाएगी.

 लेख – डॉ. अमित कुमार सिंह