Trending Now

“स्व के लिए पूर्णाहुति : महा महारथी श्रीयुत राजगुरु”

17 दिसंबर 1928 को महारथी राजगुरु ने, पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के हत्यारे, जे. पी. सांडर्स पर पहला फायर खोल दिया। उसके उपरांत सरदार भगत सिंह और महारथी सुखदेव ने सांडर्स का वध कर दिया।

आज महा महारथी श्रीयुत शिवराम हरि राजगुरु (रघुनाथ/एम महाराष्ट्र) की जयंती पर शत् शत् नमन है।

शिवराम हरि राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान् क्रान्तिकारी थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु का बलिदान एक महत्वपूर्ण घटना थी।

शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, सन् 1908 में पुणे जिला के खेड़ा गाँव (अब राजगुरु नगर) में हुआ था।

6 वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे।

वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं चन्द्रशेखर आज़ाद,

सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी।

23 मार्च सन् 1931 को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को भारत के अमर बलिदानियों में अपना नाम को प्रमुखता से साथ दर्ज करा दिया। परंतु दुर्भाग्य देखिये जब इतिहास लिखा गया तो अंग्रेजी इतिहासकारों के साथ उनकी लीक पर चलकर एक दल विशेष के समर्थन से भारतीय परजीवी इतिहासकारों ने और वामपंथी इतिहासकारों ने इन महारथियों को – आतंकवादी बताया और स्कूल के पाठ्यक्रमों में भी यही पढ़ाया गया। अब न्याय करना होगा और असली नायकों को इतिहास में समुचित स्थान देना होगा ताकि भावी पीढ़ी को भारत के वीरोचित इतिहास पर गर्व हो सके।

लेखक:- डाॅ. आनंद सिंह राणा
संपर्क सूत्र – 7987102901