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“हमें भी अशफाक चाहिए, जिन्ना और इकबाल नहीं”

“कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह..रख दे कोई जरा सी, खाके वतन कफन में-महारथी अशफाक उल्ला खान”

“आखिर खुदा ने देशभक्त अशफाक को जन्नत और जिन्ना तथा इकबाल को दोजख ही दिया होगा” और तथाकथित वामपंथियों और सेक्यूलरों को भी सूचित हो कि, हमें भी अशफाक चाहिए न कि शरजील इमाम, उमर खालिद तथा बालीवुड के भांड – त्रिकड़ी खान पं. रामप्रसाद बिस्मिल मूलत: क्षत्रिय थे, उनके प्रिय शिष्य – कृष्ण (श्रीयुत अशफाक उल्ला खान) की जयंती पर शत् शत् नमन है।

काकोरी यज्ञ के उपरांत सी०आई०डी० के पुलिस कप्तान खानबहादुर तसद्दुक हुसैन जेल में जाकर अशफ़ाक़ से मिले और उन्हें फाँसी की सजा से बचने के लिये सरकारी गवाह बनने की सलाह दी। जब अशफ़ाक़ ने उनकी सलाह को तबज्जो नहीं दी तो उन्होंने एकान्त में जाकर अशफ़ाक़ को समझाया- “देखो अशफ़ाक़ भाई! तुम भी मुस्लिम हो और अल्लाह के फजल से मैं भी एक मुस्लिम हूँ इस वास्ते तुम्हें आगाह कर रहा हूँ। ये राम प्रसाद बिस्मिल वगैरह सारे लोग हिन्दू हैं। ये यहाँ हिन्दू सल्तनत कायम करना चाहते हैं। तुम कहाँ इन काफिरों के चक्कर में आकर अपनी जिन्दगी जाया करने की जिद पर तुले हुए हो। मैं तुम्हें आखिरी बार समझाता हूँ, मियाँ! मान जाओ; फायदे में रहोगे। “इतना सुनते ही अशफ़ाक़ की त्योरियाँ चढ़ गयीं और वे गुस्से में डाँटकर बोले-“खबरदार! जुबान सम्हाल कर बात कीजिये। पण्डित जी (राम प्रसाद बिस्मिल) को आपसे ज्यादा मैं जानता हूँ। उनका मकसद यह बिल्कुल नहीं है। और अगर हो भी तो हिन्दू राज्य तुम्हारे इस अंग्रेजी राज्य से बेहतर ही होगा। आपने उन्हें काफिर कहा इसके लिये मैं आपसे यही दरख्वास्त करूँगा कि मेहरबानी करके आप अभी इसी वक्त यहाँ से तशरीफ ले जायें वरना मेरे ऊपर दफा ३०२ (कत्ल) का एक केस और कायम हो जायेगा।”

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि”

डॉ. आनंद सिंह राणा
7987102901