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डोल ग्यारस एकादशी की सांस्कृतिक महत्ता…

डोल ग्यारस एकादशी की सांस्कृतिक महत्ता…

भारतवर्ष त्योहारों-उत्सवों का देश है। यहां प्रत्येक दिन कोई ना कोई उत्सव हुआ करता है ।प्रत्येक उत्सव की अपनी महत्ता- वैज्ञानिकता -ऐतिहासिकता है। वर्षा ऋतु  चतुर्मास तो खासतौर से त्यौहारों के लिए ही परमपिता ने बनाई है ।

इसी क्रम में भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘डोल ग्यारस’- ‘जल झूलनी ग्यारस’ -‘पद्मा एकादशी ‘के रूप में हिंदू धार्मिक मान्यताओं में मनाई जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण को नाव में बिठाकर नदी में ‘जलविहार’ कराया जाता है।

ऐसा पौराणिक प्रसंग कथा आती है कि इस दिन भगवान विष्णु छीर सागर में शयन में अपनी करवट बदलते हैं । इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार-बालकृष्ण रूप की पूजन की जाती है। चावल, दही ,चांदी का दान किया जाता है ।

ऐसी मान्यता है कि -इस एकादशी के पूजन ,व्रत करने से समस्त पापों का समन होता है। कमल पुष्प से भगवान का पूजन किया जाता है। एकादशी ब्रत -पूजन, पारायण से ब्रह्मा विष्णु सहित तीनों लोकों के पूजन का फल प्राप्त होता है एवं भगवान का सानिध्य प्राप्त होता है।

ऐसी मान्यता है कि अश्वमेध यज्ञ-वाजपेई यज्ञ के तुल्य फल की प्राप्ति होती है ।भारतवर्ष में इस दिन कई जगह मेले का आयोजन भी होता है ।

डॉ. नितिन सहारिया
(लेखक सामाजिक चिंतक एवं विचारक)