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धर्म सारी सृष्टि के साथ जीना सिखाता है. धर्म सबके विकास का मार्ग है. और गृहस्थाश्रम धर्म की शिक्षा का स्थान है.

समाज में कुटुंब के नाते एक उदाहरण प्रस्तुत करना हमारा कर्तव्य बन गया है. स्वभाषा, स्वदेशी का आचरण, देश-समाज के लिए अपने धन -साधनों का उपयोग, सबकी देखरेख, सब प्रकार के योग्य आचरण की आज आवश्यकता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने उक्ताशय के विचार एमएलबी मैदान में संघ कार्यकर्ताओं के परिवारों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए. वो जबलपुर में रहने वाले संघ के दायित्ववान कार्यकर्ताओं के कुटुंब एकत्रीकरण कार्यक्रम में बोल रहे थे.

डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि सारी व्यवस्था गृहस्थ आश्रम पर चलती है. ब्रह्मचर्य आश्रम जीवन की तैयारी है. वानप्रस्थी बुजुर्ग छोटों के लिए संवाद का स्थान बनते हैं. जगत का कल्याण करते हुए आत्म मोक्ष की साधना करने वाले त्यागी सन्यासी तो हमारा नैतिक आध्यात्मिक सब प्रकार का आधार हैं. ये तीनों आश्रम गृहस्थाश्रम पर आश्रित हैं, इसलिए गृहस्थाश्रम को धन्य कहा गया है. दुनिया के प्रबुद्ध लोग भारतीय कुटुंब व्यवस्था का गहराई से अध्ययन करने के लिए प्रेरित हुए हैं.

भारतीय तत्व दर्शन की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि भोगवादी जीवनशैली में व्यक्तिवाद केन्द्रीय स्थान पर है, लेकिन हमारी प्राच्य परंपरा में कुटुंब को समाज की इकाई माना है. कुटुंब से व्यक्ति और समाज दोनों का, सब प्रकार से पोषण होता है. व्यक्ति के अधिकार और समाज व्यवस्था के बीच संतुलन की चर्चा करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि दो अतियों में बीच का जो मार्ग दिखाता है उसे धर्म कहते हैं. व्यक्तिवाद को ही सब कुछ मानना और सामाजिक व्यवस्था के नाम पर व्यक्ति के अधिकारों का हनन दोनों ही अनुचित हैं. ये दोनों दो अति हैं. ऋषियों के द्वारा बताया गया गृहस्थाश्रम दोनों का मध्यमार्ग है, जिससे व्यक्ति और राष्ट्र दोनों का कल्याण होता है. इसलिए गृहस्थ धर्म की प्रशंसा की गई है.

धर्म की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म सारी सृष्टि के साथ जीना सिखाता है. धर्म सबके विकास का मार्ग है. और गृहस्थाश्रम धर्म की शिक्षा का स्थान है. इसलिए प्राचीनकाल से  हमारे परिवारों में  बड़ों का आदर करना सिखाया जाता रहा. देश-समाज – पर्यावरण – पास पड़ोस में अपना रचनात्मक योगदान देना सिखाया जाता रहा है.

सामाजिक समरसता का व्यवहार हर परिवार में होना आवश्यक है. अपने पास पड़ोस, कुटुंब और कार्यस्थल में हमें समानता के आचरण को स्थापित करना है. हमारे निकट रहने वाले परिवार किसी भी जाति के हों, हमारे आत्मीय व्यवहार के दायरे में होना चाहिए. हमारे यज्ञ हवन, पारिवारिक कार्यक्रमों में उनकी भी भागीदारी होनी चाहिए. सब प्रकार के भेद समाप्त होने चाहिए. संघ की शाखा, संघ के कार्यक्रमों में किसी की जाति नहीं पूछी जाती. सब साथ खाते-पीते हैं, मिलकर काम करते हैं. हर घर में ऐसा वातावरण बनाना है.

पर्यावरण संरक्षण को हर परिवार की जीवनशैली से जोड़ना है. एक माता शिक्षित होती है तो पूरी एक पीढ़ी शिक्षित होती है. सबको समान अवसर उपलब्ध करवाना है. अपनेपन का आधार धन, प्रतिष्ठा, सफलता आदि नही होना चाहिए. संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक के कुटुंब को अपने आस पास सकारात्मक- रचनात्मक वातावरण का निर्माण करना है.

वर्तमान जीवनशैली की बात करते हुए उन्होंने कहा कि परिवार में परस्पर संवाद होना चाहिए. दूर रहने वाले परिजनों को साल में एक दो बार एकत्रित होना चाहिए. नई पीढ़ी को अपने परिवार के इतिहास, पूर्वजों, सगे संबंधियों, कुल स्थान, तीर्थ आदि  के बारे में बतलाना चाहिए.

कार्यक्रम का प्रारंभ गौ पूजन, तुलसी पूजन,  दीप प्रज्वलन और भारत माता को पुष्पांजली से हुआ. डॉ. भागवत के उद्बोधन के पहले “वसुंधरा परिवार हमारा…”  गीत का गायन हुआ. मंच के सामने विशाल रंगोली बनाई गई थी.
मंच पर क्षेत्र संघचालक श्री अशोक सोहनी, प्रांत संघचालक डॉ प्रदीप  दुबे, विभाग संघचालक डॉ कैलाश गुप्ता उपस्थित थे. साथ ही संघ के केंद्र, क्षेत्र, प्रांत, विभाग, भाग और नगर के कार्यकर्ता उपस्थित थे. कार्यक्रम में 50 प्रतिशत संख्या महिलाओं की थी.. कार्यक्रम में आने से पहले सभी परिवारों से कार्य करके आने को कहा गया था जिसमें वृक्षारोपण, प्लास्टिक निषेध, जल संरक्षण की व्यवस्था, घर में काम करने वाले- अखबार लाने वाले- दूध लाने वाले, सफाई करने वाले आदि के हालचाल की पूछताछ और उन्हें नाश्ता करवाना, अपनी शाखा अपने पास पड़ोस में कुटुंब के महत्व पर चर्चा आदि शामिल थे.