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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन जी भागवत ने मझगवां में किया वीरांगना रानी दुर्गावती की प्रतिमा का अनावरण

  • वीरांगना रानी दुर्गावती के शौर्य व पराक्रम के कारण ही आक्रांता इस क्षेत्र को तीन दशकों तक स्पर्श भी नहीं कर सके.
  • व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए देश को आहत करने के बारे में कभी नहीं सोचना चाहिए. 

मझगवां – वीरांगना दुर्गावती के शौर्य एवं पराक्रम के कारण इस क्षेत्र को स्पर्श करने में आक्रांताओं को दो से तीन दशक तक का समय लग गया। वीरांगना दुर्गावती के व्यक्तित्व एवं कार्यशैली से प्रभावित यहां के लोगों ने आपस के विवादों से दूर रहकर विदेशियों से सतत संघर्ष किया। यहां के लोगों ने अपने छोटे-छोटे व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए कभी भी देश का अहित करने को नहीं सोचा इस आशय के विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन राव भागवत ने शनिवार को आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र मझगवाँ -सतना में स्थित महर्षि वाल्मीकि परिषर दीनदयाल शोध संस्थान में नव स्थापित वीरांगना दुर्गावती की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद उपस्थित विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

कार्यक्रम में डॉ. मोहनराव भागवत, सरसंघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ मंच में मण्डला के दिगंबर स्वामी मदन मोहन गिरी महाराज, वीरेन्द्र पराक्रमादित्य अध्यक्ष दीनदयाल शोध संस्थान, चूडामणि सिंह (सामाजिक कार्यकर्ता), बुद्धा मवासी, बेटाई काका (नानाजी देशमुख के सहयोगी कार्यकर्ता), रामराज सिंह (सामाजिक कार्यकर्ता), अतुल जैन प्रधान सचिव दीनदयाल शोध संस्थान रहे।

सरसंघचालक भागवत ने अपने उद्बोधन के दौरान वीरांगना दुर्गावती के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रानी दुर्गावती के जीवन से हमें सीख लेनी चाहिए कि राष्ट्र की रक्षा और राष्ट्र का सम्मान सर्वोपरि होता है, व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए देश को आहत करने के बारे में कभी नहीं सोचना चाहिए। राष्ट्र के विकास में समाज के सभी वर्गों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

उन्होंने वीरांगना दुर्गावती के जीवन प्रसंगों से जुड़ी अनेक हृदयस्पर्शी बातों को बताते हुए डॉ भागवत ने कहा कि वीरांगना दुर्गावती के विषय में, उनकी शौर्य गाथा और उनके पराक्रम से सभी परिचित हैं। दीनदयाल शोध संस्थान के इस परिसर में वीरांगना दुर्गावती की प्रतिमा लगाने से उनकी छवि जनमानस में निरंतर उभरती रहेगी और लोग उनकी सद्प्रेरणा से सदैव प्रेरित होते रहेंगे।

डॉ मोहन भागवत ने वीरांगना दुर्गावती के कौशल को बताते हुए कहा कि वह प्रजाप्रिय एवं प्रजा की हितैषी तथा न्याय पालक थीं। उन्होंने विधवा होने के बाद व्यक्तिगत दुख में अपने को नहीं धकेला बल्कि अपनी प्रजा के कल्याण एवं प्रजा के हित में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया, जिसका परिणाम यह रहा कि आक्रांताओं को इस क्षेत्र में कब्जा पाने के लिए 20 से 30 वर्षो की प्रतीक्षा करनी पड़ी।

वीरांगना दुर्गावती अपने लोगों द्वारा की गई किसी गलती के लिए उन्हें दंडित करने की पक्षधर नहीं बल्कि उसे क्षमा कर भूल सुधारने की हिमायती थी। वीरांगना दुर्गावती अपनी वीरता के कारण कभी किसी से पराजित नहीं हुई बल्कि विश्वासघात की शिकार हुईं। इससे सीख लेना चाहिए कि हम सभी राष्ट्र प्रेमीजनों का दायित्व होता है कि देश हित में कभी भी कोई विश्वासघात ना करने पाए।

भारतरत्न राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों को इस क्षेत्र के सेवा में समर्पित कर दिया। यहां के निवासियों को स्वावलम्बी एवं स्वाभिमानी बनाने के लिए तैयार किया है। आदिवासियों, वनवासियों बन्धुओं की बड़ी आबादी वाले इस क्षेत्र में प्रभु श्री राम ने अपने 14 वर्षों के वनवासकाल में से साढ़े ग्यारह वर्ष का समय व्यतीत किया है। डॉ मोहन भागवत ने वीरांगना दुर्गावती के शौर्य एवं पराक्रम की गाथा व्यक्त करते हुए उनके जीवन से जुड़े विभिन्न प्रसंगों को स्पर्श किया और कहा कि महाराज पति की मृत्यु के बाद वीरांगना दुर्गावती ने अपने पुत्र को उत्तराधिकारी राजा बनाकर अपनी प्रजा के कल्याण के लिए सराहनीय कार्य किए।

डॉ मोहन भागवत ने आगे कहा कि गोंडवाना वीरांगना दुर्गावती का एक समृद्ध राज्य था। धन – धान्य से परिपूर्ण था। पति के बाद वीरांगना दुर्गावती ने महिला के रूप में राज्य संभाल कर प्रजा को सुख, समृद्धि और सम्मान दिया। राज्य की आर्थिक समृद्धि का ध्यान रखा। इसी सब वैशिष्ट्य को जन-जन से परिचित कराने के लिए वीरांगना दुर्गावती की प्रतिमा स्थापित की गई है। वीरांगना दुर्गावती द्वारा की गई लड़ाई में मुसलमान भी शामिल थे, बगैर किसी भेदभाव के राष्ट्र के कल्याण एवं सुरक्षा के लिए आगे बढ़ना चाहिए उन्होंने कहा कि भारत विविधताओं का देश है हम इससे अलग नहीं हो।

इस दौरान दीनदयाल शोध संस्थान के अध्यक्ष श्री वीरेंद्र पराक्रमादित्य द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। मंडला से पधारे संत मदन मोहन गिरी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि हमारे देश में सनातन धर्म शाश्वत रहे, हम परम वैभव को प्राप्त करें इसके लिए सबको प्राणपण से जुटना होगा।

कार्यक्रम के अंत में दीनदयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय संगठन सचिव श्री अभय महाजन ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए बताया कि हम पिछले कई वर्षों से वीरांगना दुर्गावती की जयंती एवं बलिदान दिवस मनाते आ रहे है। काफी समय से प्रतिमा स्थापना को लेकर विचार चल रहा था। चित्रकूट-मझगवां जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र है। नाना जी ने इन्हीं सब लोगों को साथ लेकर उनकी पहल पुरुषार्थ से ही सेवा का प्रकल्प खड़ा किया है। ग्रामोदय विश्वविद्यालय के ललित कला के विद्यार्थियों के सहयोग से प्रतिमा तैयार की गई है। दुर्गावती जी के जीवन पर साहित्य, कैलेंडर, ब्रोसर दो लाख की संख्या में सौजन्य से प्राप्त हुए हैं, जिसे पूरे क्षेत्र के प्रत्येक घरों तक पहुंचाने का कार्य हुआ है। संपूर्ण कार्यक्रम जन सहयोग से आयोजित किया गया है। भंडारा प्रसाद की भी सारी व्यवस्थाएँ समाज के सहयोग से हुई है, जिसके लिए मझगवां क्षेत्र के 50 हजार परिवारों से लगभग सवा 11 लाख रुपए संकलन रूप में प्राप्त हुए हैं।

कार्यक्रम का शुभारंभ सरसंघचालक डॉ मोहन राव भागवत द्वारा उपस्थित जनसमूह द्वारा किये गए आत्मीय स्वागत से हुआ। बैंड बाजे की स्वागती धुन के मध्य डॉ मोहन भागवत बाल्मीकि परिसर में बनाये गए किले के शीर्ष पर पहुंचे और डोरी खींच कर वीरांगना दुर्गावती की आकर्षक प्रतिमा का अनावरण किया।इसके पश्चात डॉ भागवत कार्यक्रम मंच पर पहुँचे। इस दौरान उन्हें डिंडोरी के मशहूर बांस से बनी टोपी व माला और ग्रामोदय विश्वविद्यालय के ललितकला संकाय के छात्रों द्वारा तैयार की गई वीरांगना दुर्गावती की चल प्रतिमा स्मृति चिन्ह के रूप भेंट की गई।

कार्यक्रम की प्रमुख झलकियाँ

~ प्रतिमा स्थल को दिया गया कालिंजर किले का स्वरूप, जहां जन्मीं थी चंदेलों की बेटी एवं गोंडवाना की महारानी दुर्गावती।

~ वीरांगना के जीवन से जुड़े विभिन्न छुए-अनछुए पहलुओं का बाल्मीकि परिसर में देखने को मिला प्रदर्शन।

~ चित्रकूट के ऐतिहासिक, धार्मिक स्थलों सहित महापुरुषों के जीवन दर्शन को भी परिसर में किया गया प्रदर्शित।

~ विश्व की पहली महिला योद्धा थी महारानी दुर्गावती, उनका मनाया जा रहा है 500 वी जयंती वर्ष।

~ 50 हजार स्क्वायर फीट में बनाया गया सभा मंडप, मुख्य मंच पर जनजातीय समाज का दिखा प्रतिनिधित्व।

~ परिसर में जनजातीय गौरव एवं पोषक अनाजों पर लगाई गई आकर्षक प्रदर्शनी।

~ प्रवेश स्थल पर आगंतुकों का पेठा से मुंह मीठा करके तिलक एवं गमछा से स्वागत के साथ दिया गया प्रवेश।

~ मुख्य मंच के बाएं तरफ बना था संत समाज का मंच और दाएं तरफ था सांस्कृतिक मंच, जहां से जनजातीय विरासत एवं परंपरा को प्रदर्शित करने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की हुई प्रस्तुति।

~ कार्यक्रम के उपरांत हुआ सहभोज का आयोजन, हजारों की तादात में आए वनवासी बंधुओं एवं दूर-दराज से आए लोगों ने किया प्रसाद ग्रहण।

~ सरसंघचालक के साथ जनजातीय समाज एवं विविध सेवा क्षेत्रों से जुड़े 29 लोग रहे सहभोज में शामिल।

जनजातीय नायकों एवं श्रीअन्न-पोषक अनाज की प्रदर्शनी बनी आकर्षण का केंद्र

बाल्मीकि परिसर में स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान की प्रदर्शनी अखिल भारतीय वनवासी कल्याण परिषद द्वारा लगाई गई। जिसमें जनजाति समूह के लगभग 60 नायकों का जीवन वृत्त प्रदर्शित किया गया, साथ ही स्वराज संस्थान, संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन द्वारा वीरांगना दुर्गावती जी के जीवन चरित्र पर एक भव्य प्रदर्शनी लगाई गई।

श्रीअन्न एवं उसके निर्मित विभिन्न उत्पादों की प्रदर्शनी में दुनिया में मिलेट की 13 वैरायटी मौजूद है, अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 के लिए 8 अनाजों- बाजरा, रागी, कुटकी, साँवाँ, ज्वार, कंगनी, चीना और कोदो को शामिल किया गया है उसकी बृहद प्रदर्शनी कृषि विज्ञान केंद्र गनीवां, मझगवाँ, डिंडौरी, मण्डला एवं जबलपुर कृषि विश्व विद्यालय के अंतर्गत आने वाले कृषि विज्ञान केंद्रों ने प्रदर्शित की। तो वहीं महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्व विद्यालय के फाइन आर्ट विभाग द्वारा अमर शहीदों एवं बलिदानियों के चित्रों की प्रदर्शनी प्रदर्शित की गई।

वहीं दूसरी ओर आज़ादी का अमृत महोत्सव अंतर्गत भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक पहचान को प्रगति की ओर ले जाने वाली प्रदर्शनी लगाई गई।