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कश्मीरी पंडितों का दर्द अब सामने आया

कश्मीर विद्वानों और ऋषियों की तपस्या स्थली रही है। उन्होंने अपने कर्म और तप के माध्यम से भारतीय संस्कृति को न केवल समृद्ध किया, वरन् संवारा और सजाया जिसके कारण कश्मीर दर्शनीय एवं आकर्षण का केन्द्र सदियों तक बना रहा। कश्मीर को भारत से भिन्न मानने वाले अराष्ट्रीय तत्वों ने सदैव अलगाव पैदा करने की शर्मनाक कोशिशें की है।
कश्मीरी पंडितों के साथ घोर अत्याचार होते रहे, तत्कालीन कांग्रेस सरकारें हाथ पर हाथ रखे बैठी रहीं। उन्हें दहशत में और दबाव बनाकर रखा गया, जो कि अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कृत्य था।
इसी तथ्य को ‘‘द कश्मीर फाईल्स’’ फिल्म में दिखाया गया है। आजादी के बाद पहली बार किसी फिल्म के माध्यम से कश्मीरी पंडितों के साथ हुये अत्याचारों को दिखाया गया है। उसे देखकर पता चलता है कि अत्याचारों-दर्दनाक हादसों के चलते कांग्रेस सरकारों ने कुछ नहीं किया।
अब जब किसी एक निर्देशक ने उस सत्य को दिखाने का हौसला दिखाया है, तब उसका विरोध किया जा रहा है। यह तथ्य विरोधी मानसिकता को दिखाता है। उस दर्दनाक हादसों के बाद लम्बे समय तक विस्थापित कश्मीरी पंडित परिवार केम्पों में नारकीय जीवन जीने बाध्य हुये। वे जम्मू में कितनी तकलीफ में रहे, उसे देख- समझकर-सुनकर रूह ही काँप उठती है। कितने लोग बीमारियों से ग्रस्त होकर अकाल मौत मर गये।
प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा ‘‘द कश्मीर फाईल्स’’ का विरोध करना समझ में आता है, अब उन्हें भी वह डर सताने लगा है, जो फिल्म के माध्यम से बाहर आ सकता है। उन्होंने भी इसी तरह के अत्याचारों को प. बंगाल में न केवल खुली आँख देखती रहीं वरन् आततायियों को उनके शासन द्वारा प्रोत्साहन भी मिलता रहा है। अब इस फिल्म ने नया रास्ता भी खोल दिया है।
बंगाल विधानसभा चुनावों के पहले और बाद में तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने स्थानीय असमाजिक तत्वों के साथ मिलकर जिस प्रकार की हिंसा और आगजनी, विरोधी नेताओं की हत्यायें की थी, उनके घर जलाये गये थे, वह अखबार के पन्नों तक कुछ अंशों तक पहुंचा लेकिन उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा अब तक जनता के बीच आने नहीं दिया गया। आने वाले समय में संभव है, वह भी हमें उसी प्रकार की फिल्म के जरिये देखने को मिल सकता है। इसलिये देश के विरोधी अधिकांश राजनेता भयभीत और आशंकित हैं।
आज कांग्रेस सांसद और मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं, वह नफरत फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। जब कश्मीरी पंडितों पर लगातार अत्याचार हो रहे थे, उनकी पार्टी सत्ता में थी, तब उनके मुँह से कश्मीरी पंडितों के प्रति सहानुभूति के दो शब्द तक क्यों नहीं निकल सके? वहीं जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि उनका प्रशासन केन्द्र शासित इस प्रदेश को आतंकवाद और भृष्टाचार से मुक्त कराना चाहता है। उन्होंने घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करने और मादक द्रव्यों तथा हथियारों की तस्करी रोकने जैसी विभिन्न चुनौतियों का बहादुरी से सामना करने में सुरक्षाबलों की भूमिका की भी सराहना की। सुरक्षाबलों ने उग्र विरोधी ताकतों के मंसूबों को विफल करके एक नये जम्मू-कश्मीर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
‘‘द कश्मीर फाईल्स’’ फिल्म देखने के बाद जनता का गुस्सा चरम पर है। दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में हिन्दुओं को न्याय दिलाने के लिये भारतीय आपराधिक कानून के अंतर्गत कहीं भी प्राथमिकी दर्ज कराने की सीमा को परिभाषित किया जायगा। 32 साल की देरी के बाद कानून विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है।
आशुतोष टपलू के पिता की 32 साल पहले आतंकवादियों द्वारा हत्या कर दी गयी थी, जिसके बाद से अब तक न्याय नहीं मिल सका। आशुतोष ने 14 सितम्बर 1990 को श्रीनगर में आतंकवादियों की गोलियों से जम्मू कश्मीर में भाजपा के सबसे बड़े नेताओं में से एक अपने पिता को टिकललाल टपलू को खो दिया। तब से आशुतोष ने केवल अपराधियों की पहचान करने, उन पर मुकदमा चलाने और कोशिश करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि मृत्यु का प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। 32 साल बीत चुके हैं। अभी तक दस्तावेज नहीं मिल सके। काफी चर्चित मामला होने के बाद भी प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गयी।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा कि इस फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है, सच्चाई उससे काफी ज्यादा है। भारत दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है, जहाँ का बहुसंख्यक वर्ग प्रताड़ित होता है और उसके प्रति सहानुभूमि नहीं दिखायी जाती।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र:- 9424744170