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कोरोना काल मे संवेदनशील भारत की सेवा गाथा

भारत में कोरोना वाइरस, ‘कोविड – १९’ का पहला संक्रमित मिला, ३० जनवरी को, केरल में. प्रारंभ में केरल में रोगियों की संख्या बढ़ रही थी. किन्तु बाद मे, मार्च के प्रारंभ से, लगभग सारे देश में कोरोना के संक्रमित मिलने लगे. तब इस महामारी के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं थी, इसलिए प्रारंभ में थोड़ा संभ्रम का वातावरण था. इस के प्रसार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री ने रविवार २२ मार्च को जनता कर्फ़्यू का आवाहन किया और २५ मार्च को सारे देश में लॉकडाउन की घोषणा हुई.

यह अभूतपूर्व परिस्थिति थी. इससे पहले अपने देश ने इस प्रकार के ‘बंद’ को कभी देखा नहीं था. सारे देश का रेल नेटवर्क पूरी तरह से ठप्प होना, यह इस देश में पहली बार हो रहा था. आवागमन के सारे साधन/संसाधन बंद थे. जो जहां पर हैं, वही पर रुक गए या अटक गए.

स्वाभाविक हैं, ऐसी परिस्थिति में अनेकों को बहुत कष्ट हुए. बड़े शहरों में रहने वाले विद्यार्थी, श्रमिक, प्रवासी इन लोगों के सामने भोजन का संकट था. इस आपातकालीन परिस्थिति के साथ चलने का प्रयास देश का प्रशासन कर रहा था.

ऐसी विषम और संकटकालीन स्थिति में संपूर्ण देश के, उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम छोर तक, चट्टान के भांति, सामान्य लोगों के लिए खड़ा रहा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ..! पूरे देश में संघ की शाखाओं का एक मजबूत तंत्र (network) हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महाबली भीम नगर की शक्ति शाखा ने मनाया भव्य वार्षिकोत्सव,स्वयंसेवकों की प्रस्तुति ने मोहा सबका मन

संकट की इस घड़ी में यह तंत्र अत्यंत प्रभावी सिध्द हुआ. स्वयंसेवक भाव का विस्तार हुआ और देखते-देखते समाज सक्रिय हुआ. इसके साथ ही समाज के ‘विराटता’ का दर्शन भी हुआ. आपदा की इस घड़ी में सारा समाज एक साथ खड़ा होकर एक-दूसरे की सहायता कर रहा था, यह चित्र अत्यंत सकारात्मक था. समाज में काम करने वाली अनेक संस्थाओं ने इस कोरोना काल में सेवा के अलग-अलग कीर्तिमान रचे.

देशभर में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही अनेक संस्थाओं ने, लगभग सभी प्रान्तों में, ‘हेल्पलाइन’ की सेवा तुरंत शुरू की. सामान्य व्यक्ति की समस्या एवं आवश्यकता समझने के लिए, इन हेल्प लाइन्स का प्रयोग अत्यधिक सफल रहा. संक्रमितों का मिलना, केरल से प्रारंभ हुआ था. इसलिए लॉकडाउन प्रारंभ होने से पहले ही, वहां हेल्पलाइन की व्यवस्था प्रारंभ हो गई थी. इस सेवा के द्वारा जरूरतमंदों को ढूंढने में मदद हुई.

अप्रैल में विभिन्न स्थानों पर अटके हुए प्रवासी श्रमिक, अपने गावों की ओर जाने के लिए निकले. सार्वजनिक परिवहन के सभी साधन बंद थे. इसलिए ये श्रमिक साइकिल से या पैदल ही निकल पड़े. ये श्रमिक जहां-जहां से निकले, उन सभी रास्तों पर संघ के स्वयंसेवक, अनेक सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता, मठ, मंदिर, गुरुद्वारे सारी व्यवस्थाओं के साथ तैयार थे. इन श्रमिकों को मात्र भोजन-पानी ही नहीं, वरन उनके स्नान की, विश्राम की व्यवस्था भी की गई. अनेकों के पैरों में जूते-चप्पल पहनाएं गए. ये सारे प्रसंग भावविभोर करने वाले थे. देश में एक उदात्त भावना जागृत हुई थी. बंधुता, समता, समरसता का यह दृश्य अद्भुत था. संघ स्वयंसेवकों के साथ सारा समाज, पुलिस और प्रशासन खड़े थे.

सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव पहुचने वाले मजदूर हो, या फिर अपना बड़ा सा उद्योग – व्यवसाय बंद कर के घर में बैठा एखादा उद्योगपति. सायकल रिक्शा चलाने वाला मेहनतकश हो, या रास्ते पर व्यवसाय करने वाला, रोज की रोटी की फिकर करने वाला एखादा छोटासा ठेले या रेहड़ी वाला…. इन सब को तकलीफ जरूर हुई. बहुत ज्यादा हुई. लेकिन किसी ने सरकार को गाली नहीं दी. सरकार के विरोध में पत्थर नहीं उठाएं. दुकाने नहीं लूटी.

बल्कि, चाहे २२ मार्च का जनता कर्फ़्यू और कृतज्ञता ज्ञापन हो या फिर ५ अप्रैल की रात नौ बजे एकजूटता के दीप जलाने का प्रधानमंत्री का आवाहन हो…. इस देश की जनता ने जो एकता दिखाई, उसने विश्व में इतिहास रच दिया. यह सब अद्भुत था. फूटपाथ की छोटीसी झोपड़ी हो या बड़े महल, कोठियाँ, राजभवन, अपार्टमेंटस हो… सारा देश उस दिन एक ही समय जगमगा रहा था….!

इस विपदा में प्रशासन पर बहुत ज्यादा बोझ था. एक ओर कोरोना के संसर्ग का खतरा, तो दूसरी ओर कर्तव्य की पुकार. प्रशासन के इस तनाव को कम करने के लिए अनेक स्थानों पर संघ के स्वयंसेवक आगे आए. घर घर जाकर कोरोना की जांच करने से लेकर, कोरोना रोगियों की सेवा करने से लेकर तो कोरोना पीड़ित मृत व्यक्तियों के शवों को दहन करने तक, सभी कार्यों में संघ के स्वयंसेवक, सेवा भारती तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता, प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे थे. अनेक स्थानों पर स्थानिक प्रशासन ने, महत्वपूर्ण काम, बड़ी ज़िम्मेदारी से संघ स्वयंसेवकों को सौंपे. स्वयंसेवकों ने भी वे काम अत्यंत विश्वास से, लगन से और मेहनत से पूर्ण किए.

इस दौरान संघ के स्वयंसेवक अनेक गावों में गए, छोटी छोटी बस्तियों में गए. समाज के उपेक्षित समूहों के पास भी गए. उनकी आवश्यकता समझी और उस प्रकार से उन्हे मदद कर, ढाढ़स बंधाया. पशु – पक्षियों को पानी पिलाने, खाना खिलाने के काम भी स्वयंसेवकों ने अनेक संस्थाओं के सहयोग से किए.

यह सारे कार्य अत्यंत सहज और निरपेक्ष भाव से किए गए. सेवा कार्य में लगे संघ के अनेक स्वयंसेवक कोरोना से संक्रमित हुए. कुछ कार्यकर्ता, यह कार्य करते हुए, वीरगति को प्राप्त हुए. किन्तु कोई भी कार्य रुका नहीं. संघ की शाखाओं में सिखाएं जाने वाले अनुशासन से, यह सभी कार्य सुसूत्रता से एवं निर्विघ्नता से पूर्ण हुए.

मात्र संघ ही नहीं, तो समाज में प्रामाणिकता से काम करने वाले सभी संगठन इन संपूर्ण कालखंड में सक्रिय रहे. गायत्री परिवार, आर्ट ऑफ लिविंग, पतंजलि परिवार, रामकृष्ण मठ, स्वामीनारायण संप्रदाय, मां अमृतानंदमयी मठ, चिन्मय मिशन, इस्कॉन… ऐसी अनेक संस्थाएं. इनके साथ अनेक मठ, मंदिर और गुरुद्वारा. अनेक संगठन. इन सभी ने इस आपदा काल में समाज के जरुरतमंदों की पूरी मदद की. सारा समाज एकजुटता के साथ खड़ा था.

शहरों के अपार्टमेंट में काम करने वाले सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मीयों को रोज चाय, नाश्ता, भोजन आने लगा. अनेक स्थानों पर सफाई कर्मियों का सम्मान हुआ. पंजाब सहित कई प्रान्तों में उन पर फूल बरसाएं गए. अनेक चौराहों पर पुलिस कर्मियों को नाश्ता-पानी पहुंचाया गया.

पुलिस कर्मियों ने भी गज़ब की संजीदगी दिखाई. शहरों से अपने गांव लौटने वाले मजदूरों को संघ स्वयंसेवकों ने, सामाजिक संस्थाओं ने, पुलिस कर्मियों ने भोजन खिलाया, उनके रुकने का प्रबंध किया. जहां संभव हुआ, वहां उन्हे गांव तक पहुंचाने की व्यवस्था भी की. एक स्थान पर तो लगभग एक हजार किलोमीटर पैदल चल कर आने वाले मजदूर के पैर के छाले देखकर, पुलिस का दिल पसीज गया. उसने स्वतः उस मजदूर के पाव में मलहम लगाया…! यह अद्भुत दृश्य था. इस कोरोना काल ने पुलिस की छबि पूर्णतः बदल दी. अब पुलिस की ओर नकारात्मक दृष्टि से नहीं देखा जाता. एक मदद करने वाले, संवेदनशील तंत्र के प्रतिनिधि के रुप में पुलिस का चित्र सामने आता हैं.

इस कोरोना काल में सरकारी तंत्र खड़ा हो रहा था. लेकिन हमारा देश केवल सरकारी तंत्र से नहीं चलता. एक सौ तीस करोड़ की जनता यह इस देश की ताकत हैं. ऐसे ही प्रसंगों में साबित होता हैं, की यह मात्र नदी, नालों, पहाड़ों, मैदानों, खेतों, खलिहानों का देश नहीं, यह एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष हैं…!

कोरोना के इस वैश्विक आपदा के समय, कोरोना की पहली लहर में, इस राष्ट्रपुरुष के जागने की गाथा, अर्थात यह पुस्तक..!

(यह पुस्तक ‘सुरुचि प्रकाशन’, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई हैं, तथा ऑन – लाइन उपलब्ध हैं.)

लेख्ग्क:- प्रशांत पोळ