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हिन्दूत्व का बढ़ता प्रभाव                                             

इतिहास की कुछ घटनाएं पूरे मानव जाति के लिए परिवर्तनकारी हो जाती है। इंडोनेशिया के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी और पाँचवें राष्ट्रपति मेगावती सोकर्णोपुत्री की बहन सुकमावती सुकर्णोपुत्री ने कुछ समय पूर्व इस्लाम का त्याग कर दिया है और हिंदू धर्म को अपना लिया है। इसके साथ ही इंडोनेशिया में 500 साल पुरानी उस भविष्यवाणी के सच साबित होने की बात की जाने लगी है, जिसमें कहा गया था, ”मैं वापस आऊँगा और हिंदू धर्म फिर से लौटेगा।”

सुकमावती ने कड़ी सुरक्षा के बीच अपने 70वें जन्मदिन पर हिंदू धर्म को आत्मसात किया है। कोविड महामारी के कारण सुधी वदानी रस्म के दौरान लगभग 50 मेहमान ही थे, उसमें से भी अधिकतर परिवार के सदस्य ही थे। इसके लिए बाली में सुकर्णो सेंटर हेरिटेज एरिया में एक पारंपरिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।

सुकमावती की दादी न्योमन राय सिरिम्बेन हिंदू बनने के इस फैसले के लिए काफी हद तक वजह बनी हैं। उनकी दादी न्योमन राय सिरिम्बेन भी एक हिंदू हैं, जो बाली की रहने वाली थीं।

उल्लेखनीय है कि आज इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल देश है। एक समय में यहाँ हिंदू धर्म का मजबूत प्रभाव था। यह पहली शताब्दी की शुरुआत में जावा और सुमात्रा के द्वीपों में फैल गया और 15 वीं शताब्दी तक समृद्ध हुआ। हालाँकि, यहाँ इस्लाम के आगमन के बाद हिंदुओं की संख्या घटने लगी, जिससे देश में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा दे दिया गया। आज भी इंडोनेशिया के हिंदू अपने पूर्वजों विशेष रूप से राजा जयभय और पुजारी सबदापालन की भविष्यवाणियों पर विश्वास रखते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि इस समय वास्तव मे मानव का अस्तित्व ही संकट मे है,इसके दो प्रमुख कारण है,पहला इस्लामिक आतंकवाद और दूसरा आर्थिक आतंकवाद।पिछले कुछ दशकों के घटनाक्रम को यदि विश्लेषण करें तो वर्ड ट्रेड सेंटर मे आतंकी हमला, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों मे आतंकी घटनाएं, पाकिस्तान के पेशावर सैनिक परिसर के विद्यालय मे आतकंवादी हमला से132 बच्चों की नृशंस हत्या और अफगानिस्तान पर तालिबान का नंगा नाँच आखिर क्या है।

आश्चर्य तो तब होता है जब सलमान रशीद, तारिक फतेह और तस्लीमा नसरीन जैसे इस्लामिक विद्वान जब कुछ सुधार की बातें करतें है,तब उन पर मौत का फतवा जारी कर दिया जाता है। संक्षिप्त मे आर्थिक आतंकवाद की चर्चा करले, विकसित देश दुनिया के बहुत बड़े सम्पदा का भोग कर रही है। अमेरिका सहित इन देशों ने ही अपनी मनमानी एवं अपने हितों के लिए अनेक वैश्विक संगठन बनाये हे। विकसित राष्ट्र अपने नागरिकों के भौतिक भोगविलास के दुनिया मे व्यापार नीति से आर्थिक आतंकवाद (चीन को छोड़कर)के रास्ते मे चल रहा। इस्लामिक और आर्थिक आतंकवाद के कारण आज दुनिया मौत के कुआँ मे खड़ी है।

अब प्रश्न उठता है कि आखिर मानव और दुनिया को बचाने का रास्ता क्या है,तो दुनिया मे चार प्रमुख व्यवस्था है, एक ईसाई, दूसरा इस्लाम, तीसरा हिन्दू, चौथा साम्यवाद। इस्लाम अपने उत्पत्ति समय से जीवन जीने के अनुकूल व्यवहार नहीं दे सका,अति उग्र रूप ने उसे आध्यात्म से शान्ति  स्थापित करने मे सफल नहीं रहा।

ईसाई जगत मे बड़े विकसित देश भोगविलास मे डूबे है, इन देशों ने विज्ञान के नये खोज के कारण भौतिक प्रगति तो किया किन्तु अति भोगवाद के कारण सामाजिक और आध्यात्मिक शान्ति नही दे सके।चेरेटी के नाम पर सेवा कार्य उनके मतान्तरण का हथियार बन गया।

पश्चिम मे जब औद्योगिक करण प्रारंभ हुआ तो उद्योगपतियों ने मजदूरों का शोषण प्रारंभ शुरु कर दिया, तो मजदूरों के शोषण के विरुद्ध काल मार्क्स ने एक हिंसक विचार दिया, जिसे दुनिया साम्यवाद के नाम से जानती है, साम्यवादी विचारधारा केवल समाज को भौतिक सुख सुविधा सम्पन्न कराने वाली विचारधारा है, इसमेँ आध्यात्म का कोई स्थान नहीं, बल्कि काल मार्क्स ने धर्म को अफीम की संज्ञा दिया है। इस विचारधारा मे एक समय दुनिया के एक तिहाई जनसंख्या आ गई थी, पूरी दुनिया के अधिकांश दो भागों मे बट गई थी।

भारत मे भी साम्यवादी विचारधारा की राजनीतिक दल बनाए गये और चल भी रहे है, किन्तु वास्तविकता तो यह है कि भारत मे आम व्यक्ति बहुत ही प्रकृतोपासक सहिष्णु होता है, इसलिए यहाँ के साम्यवादी राजनीतिक दल मे काम करने वाले नेताओं का अन्तश कभी अधार्मिक नहीं हुआ, वाह्य रूप से साम्यवादी नेता विदेशी चन्दा लेने एवं धर्मनिरपेक्षता के आडम्बर के लिए खूब प्रदर्शन करते है,इसलिए साम्यवाद भारत मे सहित दुनिया से ही समाप्त होने की स्थिति मे है।

हिन्दू धर्म, दर्शन, चिन्तन और विचार का विषय आता है तो उसका केन्द्र भारत है, भारत के हिन्दूत्व का प्रभाव ही दुनिया के अन्य देशो मे रहने वाले हिन्दुओं के गौरव, स्वाभिमान और सम्मान पर निर्भर करता है।

सन् 1893 मे शिकांगो धर्म सभा मे सनातन मतावलंबियों के किसी प्रतिनिधि को आमंत्रित नहीं किया गया था क्योंकि सनातनी (हिन्दू) भारत मे रहते हैं और भारत उस समय दुनिया के मानचित्र मे परतन्त्र था, इसी प्रकार नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर को जापान मे कोई सुनने नहीं आया क्योंकि जापान के लोगों का मत था कि परतंत्र राष्ट्र के नागरिक का चाहे कितना बड़ा पुरस्कार क्यों न पाया हो, हम जापानी सम्मान नहीं करेंगे। अर्थात भारत का वैभव और भवितव्य हिन्दुत्व पर है।

यह नहीं है कि दुनिया मे आज हिन्दू से प्राचीन कोई भी विचार या चिन्तन नहीं है, ऐसा भी नहीं की दुनिया मे प्राचीन देश नहीं है,वहाँ की जीवन शैली, संस्कृति सभ्यता नहीं थी,ग्रीस, यूनान और चीन सहित अनेक प्राचीन देशों की अपनी पूजा पद्धति और अपने जीवन जीने के तरीक़े थे, किन्तु आज उन प्राचीन देश के लोगों को न तो अपनी प्राचीता के बारे कुछ ज्ञान है और न ही गौरव। कुछ मिश्र आदि कुछ देशों मे जो प्राचीन अवशेष है वे श्रद्धा या गौरव के केन्द्र नहीं बल्कि पर्यटन के केन्द्र के लिए रूप मे है। जब किसी समाज या राष्ट्र को समाप्त करना हो तो उसके गौरव को शून्य कर दो,वहाँ के नागरिक को आत्मविस्मृत कर दे, पूर्वजों,पराम्पराओ और मान्यताओं पर भ्रम पैदा करके अश्रद्धा का भाव उत्पन्न कर दे,आने वाली पीढी को पुराने सभी आयामों मे रूढता प्रचारित कर दे। ये सब कर देने से सभी प्राचीन देशों ने अपना प्राचीन सब कुछ खो दिया, नष्ट कर दिया। ऐसा नहीं कि हिन्दू धर्म मे भी निरन्तर आक्रमण और आघात हुआ, किन्तु इन संघर्षों और आघातों से बचकर सुरक्षित बने रहने के कारण ही वास्तव मे हिन्दू और भारत को मृत्युंजय कहते है।

थोड़ा सा चर्चा हम हिन्दू क्या है इस पर करेंगे,पहला हिन्दू आत्मा को अमर मानता है, केवल शरीर से आत्मा त्याग देती है।दूसरा हिन्दू आत्मा के अमरत्व पर विश्वास और साक्षात्कार के कारण हिन्दू व्यक्ति पूजक नहीं होता, हा यह है कि कुछ-कुछ श्रेष्ठ मानव जीवन मे उत्कृष्ट कार्य किये इसलिए उन उत्कृष्ट कार्यों को सामान्य मनुष्य भी कर सकता है,ऐसे श्रेष्ठ मानवो के प्रति अनन्य निष्ठा और समर्पण के कारण कुछ समूह मे पूज्य हो गए, किन्तु वास्तव मे वह व्यक्ति पूजा नहीं वह तत्व रूपी श्रेष्ठ कार्य की पूजा है।

हिन्दू धर्म के तत्व पूजा को एक रूप और है,सनातन मे कोई भी छोटी होती हैं तो जो जय घोष होता हैं,उसे समझने की आवश्यकता है,ये जयघोष है,धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो,विश्व का कल्याण हो। पूरे देश मे यह जय घोष होता है, इसमें कही भी व्यक्ति पूजा नही है, भारत का सामान्य व्यक्ति कि इन उद्घोषो के प्रति जीवनचर्या और निष्ठा होती है, यही इस धर्म और राष्ट्र के मृत्युंजय का कारण है।

आज दुनिया का जीवन विश्व के दो देशों के ब्लैक बाक्स मे टिका है,मध्य पश्चिम एसिया, उत्तरी यूरोप सब बारूद मे खेल रहे, न जाने कब ये चिनगारी विश्व युद्ध मे बदल जाय।इस स्थिति मे हिन्दू जीवन पध्दति और दर्शन की उपयोगिता ज्यादा प्रासंगिक होगी, पिछले कुछ वर्षों मे और कोरोना की वैश्विक महामारी ने योग एवं आयुर्वेद के प्रभाव का दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया, कोरोना मे लाकडाउन के कारण प्रकृति के अद्भुत और विहंगम दृश्य ने भी भोगवादी संस्कृति मे जीवन जीने वालों को प्रकृति के साथ दोहन का संदेश देकर हिन्दू जीवन मे प्रकृति के साथ एकात्व भाव के विचार को पुष्ट किया।

माता भुमि:, पुत्रो अहं पृथिव्यां—ऐसा हिन्दू शास्त्रों मे लाखों वर्ष पूर्व जीवन का सूत्र दिया। इसमें न जाति है, न भाषा, न ही किसी क्षेत्र का उल्लेख।सम्पूर्ण पृथ्वी को माता जैसे पूज्य एवं श्रध्दवत का स्थान हिन्दू समाज का जीवन का व्यवहार है।इसी के आधार पर हम “वसुधैव कुटुम्बकम कहते है, इन्हीं सूत्रों के आधार पर उपरोक्त घोष करते है।

इस समय इग्लैण्ड और अमेरिका सहित दुनिया के करीब एक दर्जन से ज्यादा देशों मे दीपावली जैसे त्यौहार मे अवकाश घोषित कर दिये, उसका प्रमुख कारण उन देशों मे निवास करनेवाले हिन्दुओं ने उन-उन देशों मे रहकर वहाँ भी हिन्दुओं के संस्कृति को बनाए रखते हुए उन देशों के विकास मे अपना अमूल्य योगदान दिया, अपने धर्म, संस्कृति को युगानुकूल बनाकर उन देशों रच बस गये,किन्तु अपने मूल्य और व्यवहार को बनाए रखें।

दुनिया के जिन-जिन देशों मे हिन्दू है, उन देशों के लिए समस्या नहीं समाधान बनें। हिन्दू के आचार-विचार से वहाँ के शासक वर्गों मे भी हिन्दूत्व के प्रति सकारात्मक भाव अंकित हुआ। सबसे बड़ी बात तो सयुंक्त अरब अमीरात की है,जो इस्लामिक देश होते हुए भी वहाँ विशाल हिन्दुओं के लिए शिवमंदिर बनाने की अनुमति दे दिया। ये वो इस्लामिक देश है,जहाँ एक समय कोई हिन्दू अपने धार्मिक ग्रंथ भी वहां नही रख सकते थे।

सन 2015 मे इन्डोनेशिया की एक मुस्लिम जज इफा सुदेवी ने इस्लाम छोड़कर यह कहकर इस्लाम छोड़ा दिया था कि उनके पूर्वज हिन्दू थे।

भारत मे भी इस्लाम छोड़कर हिन्दू धर्म मे आना प्रारंभ कर दिया, इस क्रम मे “मलयालम फिल्म के निर्देशक अली अकबर (Ali Akbar) अपनी पत्नी के साथ हिंदू धर्म में शामिल हो गए। उन्होंने अपना नया नाम भी रखा है। उनका नया नाम रामसिम्हा (Ramsimha) होगा। उनके द्वारा हिंदू धर्म में शामिल होने के बाद ही कई सोशल मीडिया यूजर्स तारीफ करते हुए ट्वीट करते नजर आ रहे हैं।

अली अकबर कई फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के प्रमुख मुस्लिम चेहरों में शामिल रहे वसीम रिजवी इस्लाम छोड़कर हिन्दू बन गए हैं. आज गाजियाबाद में यति नरसिंहानंद सरस्वती ने सनातन धर्म में शामिल कराया.

वसीम रिजवी ने कहा कि मुझे इस्लाम से बाहर कर दिया गया है,वसीम रिजवी हिन्दू मे हमेशा सकारात्मक व्यवहार रखते थे, जिससे उनके सिर पर हर शुक्रवार को ईनाम बढ़ा दिया जाता था,इससे क्षुब्ध और परेशान होकर अन्ततः हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया और अब हिन्दू धर्म मे जीतेन्द्र नारायण सिंह त्यागी हो गये। इन दोनों बड़े चेहरों का हिन्दू धर्म मे आने से भारत मे इस्लाम छोड़ हिन्दू धर्म की ओर काफी मात्रा मे लौट रहे है,यह हिन्दूत्व और भारत जैसे मृत्युंजय राष्ट्र के लिए जहाँ विकास के राह तय होगे,राष्ट्रीय एकात्मकता स्थापित होगी ,वहीं भारत मे हिन्दूओं के वैचारिक अनुष्ठान बढ़ने से दुनिया मे हिन्दूत्व का प्रभाव भी बढ़ेगा।

लेखक – डॉ. हरिश्चन्द्र द्विवेदी