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अनुसंधान बिना विकास हानिकारक

1. परम्परागत प्राकृतिक जैविक खेती की जगह आधुनिक यांत्रिक, रासायनिक कृषि का विकास-हमारे पूर्वज गाँव में देशी पशुपालन के साथ विविध फसलों की कृषि, वानिकी, बैलों व श्रमिकों द्वारा पशु पौधों के जैविक खादों से, जैविक कीटनाशकों के छिड़काव, खरपतवारों की निदाई कर, वर्षा जल का संरक्षण, सिंचाई करके फसलें उपजाई जाती थी, पकी फसलों की कटाई श्रमिकों द्वारा बैलों, से फसलों की गहाई व वायु के सहारे उड़ावनी करके भूसा दाना अलग किये जाते रहें हें, उपजे शुद्ध होती रही है। पाले हुए पशुओं को फसलों का भूसा व फसलों की निदाई से निकला हरा चारा, ज्वार, बाजरा, मक्का की कर्बी एवं अन्नों की पिसाई से जो चुनी, चोकर, तिलहनों से निकला तेल खली, सब्जियों के छिलके खिलायें जाते थे। गाँव के सभी श्रमिकों को किसानों के कृषि, पशुपालन, खाद्य उद्योग, हल बखर की बनवाई व तालाब निर्माण मकानों के निर्माण मरम्मत में रोजगार मिलता था। श्रमिकों का जीवन यापन गाँव के कृषि कार्यों से हो जाता था, और वे गाँव से पलायन नहीं करते थे। परन्तु वर्ष 1960 के प्रश्चात् शासन द्वारा प्रति प्रदेश से फसलों की कृषि करवाने प्रसार किया जाने लगा। अतः किसानों की कृषि की लागत बढ़ गई है, व यंत्रों से कृषि करने के कारण श्रमिकों को काम न मिलने से वे गाँव से पलायन कर शहरों में आ गये। पशुविहीन यांत्रिक रासायनिक कृषि करने से भूमि व पर्यावरण तत्वों में प्रदूषण होने लगा व उत्पादित अन्न सब्जी फल प्रदूषित होने लगे, सेवन करने वाले मानव बीमार होने लगे। किसानों द्वारा खेतों की जुताई, फसलों की बूबाई ट्रैक्टर से किये जाने से वायु में प्रदूषण, ताप बढ़े है। पकी फसलों की कटाई हारवेस्टर से करवाई जाती है उसे फसलों के डंठल (पराली) खेतों में रह जाती हैं, किसानों द्वारा पराली खेत में जलाई जाती हैं, जिससे भूमि सूक्ष्मजीव जल जाते हैं, वायु में धुआँ प्रदूषण व तापमान बढ़ते हैं।

2. जलस्रोत बनाने की प्राचीन विधियाँ और आधुनिक समय की विधियाँ- प्राचीन कुआँ बावली की जगह नलकूपों का निर्माण किया जाना-पूर्वज जो कुंआ, बावली बनाते थे उनसे पेयजल, सिंचाई जल मिलता था और वर्षा जल संचय होता था, भू-जल स्तर कायम रहता था। आधुनिक समय में नलकूप निर्माण किये जाते हैं, जिनसे पेयजल व सिंचाई जल कुछ वर्षों तक मिलता है परन्तु वर्षा जल संरक्षित नहीं होता है, भू-जल घटता जाता है, कुछ वर्षों बाद इनसे पानी मिलना बंद हो जाता है।

प्राचीन सरोवरों तालाबों की जगह आधुनिक युग में शासन द्वारा बड़े-बड़े डेम बनाये जाना।

3. मकान निर्माण की प्राचीन विधि और आधुनिक समय में मकान निर्माण की विधि- प्राचीनकाल में मिट्टी के घर बनाये जाते थे जिससे मिट्टी बर्बाद नहीं होती थी, मकान कम लागत में बन जाते थे, वे गर्मी में गर्म नहीं होते थे, स्वास्थ्यवर्धक होते थे। मकान गिरने पर उसमें खेती की जाती थी। परन्तु आजकल उनकी जगह, सीमेन्ट कान्क्रीट के जो मकान बनाये जाते हैं उससे मिट्टी पौधे सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। मकान स्वास्थ्यवर्धक नहीं होते हैं। वे गर्मी में गर्माते हैं।

4. गाँव के ऊपर कांक्रीटी शहर, कांक्रीटी मकान, दुकान, कार्यालय, विद्यालय, अस्पताल, मन्दिर, मस्जिद, फ्लाई ओवर बनाते बढ़ाते जाने से कृषि भूमि पौधे बर्बाद होते जाते हैं, भू-जल स्तर घटते जाता है, और गर्मी में तापमान बढ़ जाता है। कांक्रीटी इमारतें गिरने पर पीढ़ियों के लिये मलबा फैकना समस्या होगी। उस समय उसमें रह रही पीढ़ियाँ दब कर मर सकती हैं।

5. आजकल जरूरत से ज्यादा बड़े प्रति व्यक्ति कांक्रीटी मकान, दुकान व शासकीय निजी कार्यालय, विद्यालय, अस्पताल, अधिकारियों नेताओं के आवास, मंदिर, मस्जिद बनाये जाते हैं, जिससे ज्यादा कृषिभूमि पौधे जल बर्बाद होते हैं, भू-जल घटता है एवं तापमान में वृद्धि होती है। जबलपुर में शासन द्वारा बनवाये गयी कई भव्य कांक्रीटी ईमारतें खाली पड़ी हैं।

6. त्यौहारों पर्वों के मनाने की प्राचीन विधि एवं त्यौहारों पर्वों के मनाने की आधुनिक विधि- हमारे पूर्वज हर त्यौहार पर्व सादगी से परम्परा विधि विधान से मनाते थे, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण नही होता था, बल्कि हर त्यौहार पर्व में घर परिसर की स्वच्छता की जाती थी, दूसरों से मेल-मिलाप किया जाता था। परन्तु आजकल ज्यादातर नागरिक हर त्यौहार पर्व भौतिकवादी ढंग से मनाते हैं, पटाखे फोड़ते हैं, मूर्तियों को नदी-तालाब के जल में बहाते हैं जिससे पर्यावरण तत्वों में प्रदूषण तत्वों में प्रदूषण बढ़ता है, तापमान में वृद्धि होती है, कई लोगों के जीवन खतरे में पड़ते हैं।

7. मानवों के यातायात के प्राचीन साधन और यातायात के आधुनिक साधन- हमारे पूर्वज प्रायः पैदल, घोड़े से व साईकिल रिक्शा से चलते थे जिससे शरीर का व्यायाम हो जाता था। आकाश वायु में प्रदूषण व तापवृद्धि नहीं होते थे। परन्तु आधुनिक समय में व्यापारियों द्वारा ज्यादा धन के लिये पृथ्वी के तत्वों से निर्मित कार, मोटर, स्कूटर, मोटरसाईकिल से अधिकांश शहरी मानव यात्रा करते हैं, उनके बच्चे भी इन्हीं वाहनों से चलते हैं, जिससे आकाश वायु में प्रदूषण एवं तापमान में वृद्धि प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। इन वाहनों में खर्च भी ज्यादा लगता है और मानवों की एक्सीडेन्ट से मुत्यु या अपंगता भी होती है ज्यादा वाहनों से विश्व की वायु में प्रदूषण ताप वृद्धि ज्यादा होते हैं। आज वे मजदूर भी स्कूटर से चलते हैं जिन्हें भारत शासन मुफ्त में अन्न देती है।

8. प्राचीन काल के उद्योग धंधे एवं वर्तमान काल के उद्योग धंधे- हमारे पूर्वज छोटे-छोटे उद्योग धंधे श्रमिकों द्वारा संचालित करवाते थे, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण नहीं होता था। वर्तमान समय में बड़े-बड़े उद्योग, यंत्रों से संचालित किये जाते हैं जिनसे जलवायु में प्रदूषण होते हैं, और सूर्यताप मंें तापवृद्धि होती है।

9. शहरों में कचरे के ण की विधि- शहर में एकत्र हुए जैविक कचरे से खाद बनाई जानी चाहिए, परन्तु जहाँ नगर निगम के सफाई कर्मी व नागरिक कचरे को आग लगाकर जलाते हैं उससे आकाश वायु में प्रदूषण व तापवृद्धि होती है।

10. प्राचीन काल के युद्धों और वर्तमान समय के युद्धों के हथियार, शस्त्र- प्राचीन काल में जैसा इतिहास बताता है, शिव जी, श्री रामचन्द्रजी व श्रीकृष्ण अर्जुन, जिन राक्षसों से युद्ध किये थे ये धनुष बाण से सिर्फ योद्धाओं का बध किया था। उनके हथियारों व शस्त्र :-  से प्रकृति पौधे व प्राणियों के विनाश नहीं हुये थे, परन्तु वर्तमान समय में जिन हथियारों से दो देशाों के बीच युद्ध किये जाते हैं उससे पर्यावरण पौधे प्राणियों के विनाश होते है जैसे आजकल यूक्रेन देश के राष्ट्रपति को मारने के लिये रूस के राष्ट्रपति श्री पुतिन जी जिन हथियारों एवं औजारों का उपयोग कर रहे हैं उससे यूक्रेन के पर्यावरण व बनी इमारतें एवं प्राणी विविधता नष्ट तो हो ही रहे हैं, उसके अलावा पूरी दुनिया के पर्यावरण तत्वों में प्रदूषण एवं तापमान की वृद्धि हो रही है जो विश्व मानवों, प्राणियों के सेहत पर लम्बे समय तक असर करेगा।

11. देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिरों एवं आजकल शासन द्वारा निर्मित मंदिरों में अन्तर है- प्राचीन देवी-देवताओं के मंदिर प्रायः उन जंगली पहाड़ियों पर जहां उनका निवास स्थान था वही बनाये जाते थे व इस ढंग से बनाये गये थे ताकि उनका कार्य निवास जीवन शैली प्रदर्शित हो। परन्तु आजकल रहन-सहन जीवन शैली प्रतिबिम्बित नहीं होती है। कांक्रीट बिछाने से पीढ़ियों की भूमि बर्बाद हो जाती है।

उपरोक्त प्रकार के अनुसंधान बिन किये गये विकास कारण देश दुनिया में पर्यावरण पौधे, प्राणियों के विनाश होते हुए अब स्पष्ट दिखने लगा है। इस वर्ष विश्व स्तर पर बढ़े हुए वायु में प्रदूषण, तापमान वृद्धि कारण, सूर्य वायु के प्रकोप कारण अधिकांश देशों के अधिकांश प्रदेशों में जुलाई से अक्टूबर तक अतिवर्षा बाढ़ हुई है, जिससे कई पहाड़ टूटे हैं, लाखों हेक्टर की कृषि एवं हजारों इंसानों पशुओं एवं मानवों के बनाये घरों, धन की क्षति हुई है, व बीमारियाँ बढ़ी हैं। इसके अलावा कई देशों में वैश्विक गर्मी के कारण ग्लेशियर पिछल रहे हैं, जिससे समुद्रों का जल स्तर बढ़ा है, और समुद्रों में तूफान उठे हैं। यदि इसी तरह वायु में प्रदूषण व गर्मी बढ़ाने वाले विकास कार्य देश दुनिया में होते रहेंगे तो भविष्य में कुछ वर्षों में सूर्य द्वारा ऐसा जल प्रलय होगा कि देश के वैज्ञानिकों की समझ के अनुसार भारत सरकार के माननीय प्रधानमंत्री जी व प्रदेश सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने पर्यावरण सुधार हेतु भारत स्वच्छता अभियान के अलावा वर्ष  2020-21 से आत्मनिर्भर भारत बनाने, प्राकृतिक खेती बढ़ाने, वर्षा जल संरक्षण हेतु सरोवरों, तालाबों के निर्माण, जल जीवन मिशन एवं ग्रीनसिटी, वायु स्वच्छता हेतु कार्यक्रम पौधों रोपण प्रारम्भ किये गये हैं। परन्तु उन कार्यक्रमों की सफलता सही क्रियान्वयन से होगी। करीब 1 वर्ष पूर्व विश्व राष्ट्र संघ की बैठक अमेरिका के राष्ट्रपति  श्री वाईडेन द्वारा आयोजित की गई थी, जिसमें कई राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों ने अपने राष्ट्र में कार्बन उत्र्सजन 2050 तक बंद करने वचन दिये थे, और भारत के प्रधानमंत्री जी स्वदेश में 2070 तक कार्बन उत्सर्जन बंद करने का वचन दिये थे। मेरे अनुमान के मुताबिक यदि आज जैसे ही देश दुनिया में कार्बन उत्सर्जन एवं तापमान की वृद्धि होते रहेंगे, तो 2050 से 2070 तक 2 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान बढ़ जायेगा, और उस समय तक दुनिया की ज्यादा से ज्यादा जमीन जल प्रलय कारण डूब जायेगी, और तब तक ये राष्ट्राध्यक्ष भी नहीं रहेंगे, उनके वचन व्यर्थ है। उन्हें अभी से सही करना चाहिये। जिन्हें स्वपीढ़ियों को बचाने की फिक्र हो, वे मेरे साथी और सारथी बन जायें। पर्यावरण पौधे प्राणियों की रक्षा हो, शासकों तक यह संदेश पहुँचायें। प्रकृति की रक्षा मानवों का काम है, मानवों की रक्षा प्रकृति का काम है। देश  पृथ्वी को बचाना शासन का काम है, जो प्राणियों, पीढ़ियों का धाम है। दिनांक 07 से 18 नवम्बर 2022 के दौरान मिश्र में पर्यावरण शिखर सम्मेलन होने वाला है। हमारी आवाज वहाँ तक पहुँचेगी, तो कार्यक्रम निर्धारण में मदद मिलेगी।

     लेख़क
 डाॅ. प्रेमसिंह
9977237560