Trending Now

आजादी के उपरान्त भारतीय अर्थव्यवस्था का सफर

– डाॅ. मीरा सिंह

आजादी के उपरान्त हमारी अर्थव्यवस्था 75 वर्षों का एक लम्बा सफर तय करके दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही  एक मजबूत और बड़ी अर्थव्यवस्था बन कर उभरी है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो आजादी से पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था एक मजबूत अर्थव्यवस्था होती थी और दुनिया के अन्य देशों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे।

औपनिवेशिक शासन युग (1773-1947) के दौरान ब्रिटिश शासक भारत से सस्ती दरों पर कच्चा माल खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक कीमतों पर बेचा जाता था। इसके परिणाम स्वरूप, हमारे देश के स्रोतों का क्षीण होना शुरू हो गया और विदेशी अर्थव्यवस्थाएँ आगे बढ़ने लगी।

1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था की पुनर्निर्माण प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की नीतियाँ और योजनाएँ बनाई गई। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश का आर्थिक विकास करना सुनिश्चित हुआ।

वर्ष 1947 से लेकर 1991 तक के समय को, भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रारम्भिक अवस्था का दौर कहा जा सकता है। इसमें देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़-कृषि और उद्योगों के विकास पर टिकी हुई थी। इस दौर में दो तरह की क्रान्तियाँ देखने को मिली, एक हरित क्रान्ति और दूसरी सफेद क्रान्ति। इन क्रान्तियों के परिणास्वरूप अर्थव्यवस्था काफी सक्षम बनी और आयात निर्भरता भी कम हो गई।

प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा सन् 1951 में देश में आर्थिक विकास को गति देने के लिए पंचवर्षीय योजना शुरू की गई। वर्ष 1966-69 के दौरान चली वार्षिक योजनाओं को छोड़कर ये पंचवर्षीय योजनाएँ लगभग नियमित रूप से चलाई गई थी। लेकिन वर्तमान सरकार ने देश के विकास को नई दिशा देने के उद्देश्य से बारहवीं पंचवर्षीय योजना को 31 मार्च 2017 से समाप्त करने की घोषणा की।

सरकार ने योजना आयोग को समाप्त कर इसके स्थान पर 1 जनवरी 2015 को ‘‘नीति आयोग’’ की स्थापना की थी। हाल ही में नीति आयोग ने देश में विकास को संघात्मक ढांचे के अनुकूल योजनाएँ बनाने के लिये ‘‘राष्ट्रीय विकास एजेंडा’’ के माध्यम से दीर्घावधि विकास को साधने का लक्ष्य बनाया है। अभी तक की जितनी पंचवर्षीय योजनाएँ हुई, हर योजना को एक उद्देश्य के आधार बनाया गया। जैसे औद्योगिक विकास एवं कृषि विकास को बढ़ावा देना, अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाना और लोगों को आत्मनिर्भर, सशक्त और मजबूत बनाना, नए रोजगार के अवसर देना और शिक्षा स्तर को बढ़ाना।

पहली पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत कृषि विकास पर ज्यादा ध्यान दिया गया, क्योंकि उस समय देश में अनाज की कमी को लेकर सभी चिन्तित थे। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का केन्द्र बिन्दु रहा है क्योंकि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है और इससे देश की आधी से भी अधिक आबादी सीधे तौर पर जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है।

दूसरी पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य उद्योगों को बढ़ावा देना रखा गया तथा घरेलू उत्पादन से औद्योगिक उत्पाद का विकास इसके प्रमुख कार्य थे। इस योजना के अतंर्गत भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला जैसे स्टील प्लान्ट मिल शहरों में पनबिजली और भारी परियोजनाओं को स्थापित किया कि जो देश के विकास के लिए एक बहुत सही कदम था।

तीसरा पंचवर्षीय योजना के समय कृषि विकास को और अधिक बढ़ावा दिया गया ताकि किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो, उसी दौरान 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ, इसके बाद 1965 में भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ। जिससे देश को बहुत नुकसान हुआ जिसके कारण इस योजना का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो सका। परन्तु फिर भी कई कार्यों को जारी रखा गया जैसेः कृषि विकास का कार्य, बांध बनाने का निर्माण कार्य, ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए स्कूल बनाने का कार्य शुरू हुआ और मानव संसाधन से संबंधित जैसे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक विकास हेतु नई नीतियाँ बनाई। आर्थिक नीति जैसेः उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण, पंचायत राज, नगर पालिका, मानव संसाधन की नींव को और अधिक मजबूत बनाने की नीति बनाई, खासकर 1991 में भारतीय सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों और उपायों से भारतीय अर्थव्यवस्था को गति मिली और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था में स्थान हासिल हुआ।

1947 में आजादी के समय देश का जीडीपी 2.7 लाख करोड़ रूपये थी लेकिन वर्तमान में आईएमएफ ने यह रिपोर्ट सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आधार पर पेश की है। आईएमएफ ने इस रिपोर्ट में कहा है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था के विकास की मौजूदा गति के आधार पर अगले पांच सालों में दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो जाएगा। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास को जीडीपी से मापा जाता है। जीडीपी के बढ़ने का मतलब है देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। यदि जीडीपी कम हो रही है तो इसका मतलब है देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है। जीडीपी के आंकड़ों को आठ सेक्टरों से पता किया जाता है। इनमें कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रिसिटी, माइनिंग, ट्रेड और कम्यूनिकेशन, रियल एस्टेट और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज और सार्वजनिक सेवाएँ शामिल हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार देश में औद्योगिकीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्टि से विभिन्न नीतिगत उपाय करती रही है। इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम के रूप में औद्योगिक नीति-1948 पारित हुआ। 1991 से लेकर 2014 तक को भारतीय अर्थव्यवस्था का विकासशील दौर माना जाता है और 1991 के बाद देश की अर्थव्यवस्था और अधिक ग्लोबलाइज हो गई। अमृत महोत्सव पर 75 सालों की सबसे बड़ी उपलब्धि देश में गरीबों की संख्या में कमी आना है।

बीते 75 सालों में व्यापार घाटा, युद्ध, तेल कीमतों का संकट, आर्थिक मंदी जैसे कारणों की वजह से हमारी मुद्रा में लगातार गिरावट बनी रही। डाॅलर लगभग 80 के स्तर पर आ गया है जिससे विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है। हाल ही में नीति आयोग ने देश में विकास को संघात्मक ढांचे के अनुकूल बनाने के लिये राष्ट्रीय विकास एजेंडा तैयार किया है। आर्थिक समीक्षा के साथ-साथ टैक्स चोरी पर अंकुश लगाने के लिए उपाय किये गए हैं। इसी वजह से जीएसटी का संग्रह भी बढ़ा है। कोरोना के समय में भी देश ने आत्मनिर्भर बनने के महत्व को समझाा।

डिजिटलाइजेशन से समय और लागत की बचत से देश लगातार प्रगति की ओर अग्रसर है। लोकल फाॅर वोकल अभियान के तहत देश में लघु और मध्यम उद्योगों के विकास को सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके परिणाम स्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार तरक्की की ओर प्रयासरत है।