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कमल पवित्रता का प्रतीक

कमल कीचड़ जैसी जगह में उगने वाला एक साधारण फूल नहीं है। इसे कई देशों और धर्मों में अति पवित्र माना गया है। देवताओं को भी यह प्यारा है। दुर्गा पूजा तथा कई दूसरे पूजा अनुष्ठानों में यह आवश्यक है। पुराणों में इसका वर्णन बहुत बार हुआ है।

लक्ष्मी जी, ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी का आसन लाल कमल है और सरस्वती जी का सफेद कमल, या श्वेत  पद्मासन…या मां पातु सरस्वती (सरस्वती वन्दना से) ऐसा माना जाता है कि बुद्धदेव जब भी पानी में पैर रखते थे तो उनके पैर के पास कमल की पत्ती आ जाती थी।

महावीर जैन पावापुरी में समाधि की वह जगह भी कमल से भरे फूल के बीच के टीले पर हैं। अभी भी वहां कमल के बीच मंदिर है। नई दिल्ली में वहाई सम्प्रदाय वालों ने कमल मंदिर खिलते कमल के आकार का बनाया। इसी पवित्रता के कारण भारत और वियतनाम का राष्ट्रीय फूल भी कमल है। सभी मंदिर तथा अजन्ता एलोरा की गुफाओं में भी कमल फूल की नक्काशी की गई है।

कमल की पत्तियाँ पानी के ऊपर तैरती हैं तथा फूल सदा पानी के ऊपर ही रहता है बिना गंदगी लगे। संतों और कवियों ने कमल पर बहुत कुछ कहा और लिखा है। इसकी पत्तियां जरा रोयेंदार होती है जिससे उन पर पानी की बूदें अधिक देर तक नहीं ठहरती, लुढ़क कर नीचे गिर जाती हैं। उनका जीवन क्षणभंगुर होता है। शंकराचार्य जी ने भजगोविन्दम में मनुष्य जीवन की क्षणभंगुर की तुलना कमल के पत्ते पर के पानी के बूंद से की है-‘नलिनी दलगत जलमति तरलं तद्वज्जीवित मतिशय चपकम (4) भगवद्गीता में भी लिखा है- आशक्ति रहित कर्म करने वाला पाप (दुष्कर्म) से अलिप्त रहता है जैसे पानी में रहने वाला कमल पानी और कीचड़ से अलग रहता है-5/10। चीन के कनफूशियश धर्मग्रंथ में भी। लिखा है- मैं कमल को पसन्द करता हूँ क्योंकि कीचड़ में जन्म लेकर भी कमल खिलते हैं उसी प्रकार दरिद्र के यहां भी प्रतिभाशाली पैदा होते हैं।

कमल सदैव गंदे पानी के ऊपर रहता है उसी प्रकार सज्जन लोग बुरे माहौल में पहुंच जाने पर भी उससे अलग रहते हैं। सुन्दर आंखों को कमलनयन कहा जाता है। ऐसी बहुत सी बातें सदियों से लिखी और सुनाई गई है। इसके कमल के अतिरिक्त कई और नाम हैं जैस पù नलिनी, पंकज आदि और अंग्रेजी में लोटस इसके फूल लाल, गुलाबी, नीले और पीले रंग के होते हैं और यह गर्म देश में होता है, इसे बीज से और जड़ के टुकड़े से भी लगाया जाता है। इसके बीज बहुत वर्षों तक नष्ट नहीं होते।

चीन के एक सूखे झील की खुदाई में 1300 वर्ष पुराना बीज मिला जिसे बोने पर कमल का पौधा उगा। इसकी फूल की पंखुड़ियां, कोमल पत्तियाँ, बीज (कमलगट्टा) तथा जड़ (कमलककड़ी) भारत और एशिया के दूसरे देशों में कई तरह से जिसे पीस कर केक-पेस्ट्री में डालने पर स्वाद अच्छा हो जाता है। हाॅल के अनुसंधानानुसार कमलककड़ी बहुत पौष्टिक है और इसमें लाभदायक रेशे के अतिरिक्त विटामिन-सी और बी-6, थायामिन, रीवोल्फाविन, पोटेशियम, ताँबा, मैंगजीन आदि बहुत से गुणकारी तत्व होते हैं। देशी दवाईयों में भी इसका उपयोग होता है।

कमलककड़ी – यह डंडी है। अधिक प्यास, पीलिया, मूल की कमी, पित्त के रोगों से लाभदायक है। हृदय और मस्तिष्क को बल देती है।

कमल बीज – ठंडा और तर है। कफ, वायु, रक्त तथा हृदय रोगों मेें हित कर है। जरा कब्ज कर भी है। पीलिया मं इसके फूल और बीज दोनों ही लाभदायक है। इसके बीज के मखाने को दूध में रबीर बनाकर खाने से शरीर पुष्ट होता है। इस पवित्र और सुन्दर फूल को आप भी अपने बगीचे में उगा सकते हैं। बस एक छोटा सा कमल कुण्ड बना लीजिये। जहां कहीं कमल हो वहां से थोड़ा जड़ मांग के कीचड़ में लगा दीजिये।

लेकक- डाॅ. सुरेन्द्र प्रसाद