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भारतीय संस्कृति को अंग्रेज और मुगल बदल नहीं सके।

हिन्दू धर्म ही सब धर्मों का आधार है। हिन्दूधर्म का विक्रमसंवत् इस समय 2079 चल रहा है। इस विक्रमसंवत् से 5000 साल पहले इसी धरती पर भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में आगमन हुआ था। उनसे पहले त्रेतायुग में भगवान श्रीराम आये। जब से पृथ्वी पर करोड़ों वर्ष पुराना हमारा सनातन धर्म अस्तित्व में है।

भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र प्रतिपदा हिन्दुओं द्वारा मान्य नववर्ष का शुभदिन है। अपनी संस्कृति का ज्ञान न होने के कारण आज हिन्दू भी 31 दिसम्बर की रात्रि के बाद से “हैपी न्यू ईयर” कहकर नववर्ष की शुभ कामनायें देने लगे हैं।

प्राचीन सनातन धर्मी इतिहास पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि नववर्ष का उत्सव 4000 वर्ष पहले बेबी लोन में भी मनाया जाता थाए लेकिन उस समय नया वर्ष का यह उत्सव 21 मार्च को मनाया जाता था। यह तिथि बसंत के आगमन की तिथि (हिन्दू धर्मावलम्बियों का नववर्ष) भी मानी जाती थी।

प्राचीन रोम में भी इसी तिथि को नव वर्षोंत्सव मनाये जाने की प्रथा का उल्लेख मिलता है। लेकिन बाद में रोम के तत्कालीन तानाशाह जूलियस सीजर को भरतीय नववर्ष मनाना उचित नहीं लगा। इसलिये उसने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन केलेन्डर की स्थापना कराते हुये उस समय प्रथम बार एक जनवरी को नया वर्ष का उत्सव मनाया गया। इस कारण उस वर्ष 445 दिनों का (ईस्वीपूर्व 46) करना पड़ा था। उसके बाद भारतीय नववर्ष की तिथि को छोड़कर ईसाई समुदाय भी एक जनवरी को नववर्ष मनाने लगे।

भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना अंग्रेजों ने सन् 1757 में की थी। उसके बाद से लगभग 190 वर्षों तक भारत को अंग्रेजों की गुलामी में रहना पड़ा। इस कालखण्ड में विदेशियों, सनातन धर्म विरोधी ताकतों ने भारत की प्राचीन परम्पराओंए ऋषि-मुनियों का ज्ञान भण्डार, संस्कृति सब कुछ मिटा देने के निन्दनीय कृत्य किये।

लार्ड मैकाले ने शिक्षा पद्धति में परिवर्तन किया और भारत के गौरव पूर्ण इतिहास को बदलने की कोशिशें कीं। परिणाम स्वरूप भारतीय मूल इतिहास और परम्पराओं को भूलते चले गये। उन्हें सिर्फ गुलाम बनाये जाने वाले इतिहास की जानकारी दी जाती रही। इसी में क्रमशः भ्रमित होते भारतवासी भी चेत्रशुक्ल प्रतिपदा को मनाये जाने वाले नववर्ष को भूलकर अंग्रेजों द्वारा मनाये जाने वाले एक जनवरी के नववर्ष की चकाचैंध में अपनी संस्कृति और संस्कारों को भी भुला बैठे।

सभी भारतवासियों को यह स्मरण रखना चाहिये कि अंग्रेजी केलेंडर बदलने से हिन्दू कलेंडर नहीं बदलता। जन्मतिथि, विवाह के लिये वर-वधु का मिलान हिन्दू पंचाग के अनुसार ही क्यों होता है।

सारे व्रत त्यौहार का हिसाब, नक्षत्रों- ग्रहों की गणनाए मरण पर तेरहवीं के दिन प्रथा, हिन्दू पंचाग से ही निर्धारित की जाती है। राम नवमीं, जन्माष्टमी, होली, दीपावली, रक्षाबंधन, भाई-दूज, शिवरात्रि, नवरात्रि दुर्गा-पूजन-विसर्जन आदि हिन्दू पंचाग (विक्रमी संवत् केलेण्डर) द्वारा ही निर्धारित होते हैं।

सनातन धर्म की इसी विशेषता को तोड़ने में अंग्रेज सफल नहीं हो सके क्योंकि भारतीय संस्कृति भारी अशिक्षा के वातावरण के विस्तार के बावजूद हमारे घरों कोए कुटुम्बों को गहराई से प्रभावित किये हुये थी। हमें तो वे केवल ऊपरी दिखावे में -बाध्य आडम्बरों में रहन-सहन, पहनावा आदि में ही प्रभावित कर पाये थे।

भारत में न तो ऋतुयें बदली थीए न ही मौसमए न फसल बदली थी, न ही पेड़.पौधों की रंगत। बदली थी तो हमारी चमक.दमक। कम से कम अब तो जागें और अपनी संस्कृति और संस्कारों, परम्पराओं को कसकर थाम लें।

हर भारतीय सनातन धर्मी है। वह केवल “वसुधैव कुटुम्बकम” को मानता है। केवल मानता ही नहीए उसके अनुसार आचरण भी करता है। चीटियों को शक्करए वृक्षों को जल देता है।

पाकिस्तान, बाँग्लादेश और अफगानिस्तान में निवास कर रहे हिन्दुओं की चिन्ता कौन करता हैघ् उनकी दारूण दशा पर कौन आँसू बहाता हैघ् कौन क्रोध व्यक्त करता हैघ् दूसरी तरफ मुस्लिम और जेहादी मुसलमान बन जाने के लिये बाध्य करते हैंए क्रिश्चियन मिशनरी ईसाई बनाने के प्रयत्न में दिन-रात लगे हुये हैं। ऐसे तमाम तत्वों के चेहरे, चाल-चरित्र और षड़यंत्रों का संज्ञान लेने की जरूरत है।

अमरीकी दार्शनिक व इतिहासकार बिल ड्यूरेन्ट ने भी माना है कि “इस्लाम द्वारा किये गये भारत पर हमले विश्व इतिहास के सबसे रक्तरंजित अध्याय हैं।” सन् 1947, 1971, 1999 को कैसे भुलाया जा सकता है।

सनातन धर्म की काल गणना के अनुसार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग माने गये हैं। इन कालखण्डों में धर्मी भी रहे हैंए अधर्मी भी। जब तक धर्म की रक्षा करने के लिये किसी न किसी महान आत्मा का धरती पर अवतरण भी हुआ है।

ब्रास्का विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद् प्रोण् जान फोर्ड श्रोडर के अनुसार अफगानिस्तान में मानव सभ्यता का इतिहास पचास हजार साल पुराना है। वैदिक काल से 1026 ई. शताब्दी तक वहाँ हिन्दू व बौद्ध साम्राज्य एवं बीसवीं शताब्दी तक हिन्दू.बौद्ध व सिख परम्परायें सजीव रही है।

महाभारत में गांधारी एवं गांधार नरेश शकुनी के संदर्भ इसके प्रमाण है। मुल्तान में प्रहलादपुरी का प्राचीन नरसिंह मंदिर विश्वविख्यात हैए जहाँ हिरण्यकशिपु की राजधानी थी। विविध हिन्दू.देवी देवताओं के पुरावशेषों को काबुल, गजनी से ताजकिस्तान तक के संग्रहालयों में देखा जा सकता है। मजार-ए-शरीफ का हिन्दूशाही कालीन शिलालेख से पता चलता है कि हिन्दूशाही के राजा कल्लर का काल 843 से नहीं 821 से था।

ऐसा नहीं है कि सनातन धर्मियों ने इस्लामी आक्रान्ताओं को आसानी सेए या किसी कमजोरी वश घुसने का अवसर दिया। हिन्दुओं ने इन आतंकियों का लम्बे समय तक मुकाबला ही नहीं किया वरन् खदेड़ कर बाहर किया था। हिन्दुओं ने उग्रवादी इस्लाम को सात सौ वर्षों तक पीटा और परास्त किया।

हिन्दू समाज की इस्लामी साम्राज्यवाद से पहली टक्कर सातवीं शताब्दी ईस्वी से आरम्भ हुयी। 650 से 711 तक उन्होंने फिर आक्रमण कियाए हिन्दू राजाओं ने उन्हें फिर बुरी तरह परास्त कर खदेड़ दिया। यह क्रम लम्बे समय तक चलता रहा।

पश्चिमी आक्रान्ता वैदिक युग को नीचा दिखाना चाहते थे। इस हेतु उनके द्वारा कई कपोल कल्पित कहानियाँ भी गढ़ी गयीं।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
संपर्क सूत्र- 94247 44170