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गौ-पालन सभी दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी – डाॅ. किशन कछवाहा

व्यक्ति वर्तमान युग में लोभ-मोह के कारण उत्पन्न कुप्रयासों, कुप्रवृत्तियों से निरन्तर घिरता चला जा रहा है, इसी का परिणाम है, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश सभी का निरन्तर नुकसान दायक बनते जाना।

वातावरण के विषाक्त होने के कारण व्यक्ति के मन और बुद्धि द्वारा भी उत्पन्न विचार भी लगभग वैसा ही प्रभाव छोड़ रहे हैं। यह सब प्रकार की विषाक्तता मनुष्यों को प्रभावित करेगी ही, प्राणियों को भी बर्दास्त करना पड़ेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्थिति ऐसी ही बिगड़ती चली गयी तो आगामी तीस-चालीस वर्षों में 70प्रतिशत लोग केंसर जैसे खतरनाक रोग से बच नहीं सकेंगे।

देश के प्रत्येक भाग से गाय और उसके वंश को कत्लखानों में पहुँचाया जा रहा है। यह एक मात्र प्राणी है जो प्रत्येक मानव के लिये हर तरह से न केवल उपयोगी है, वरन् सर्व कल्याणकारी भी है। यह सर्वोपयोगी भी है भविष्य की आधार है। गौवंश के साथ यह अत्याचार तो है ही, इसमें दो राय हो ही नहीं सकती।

गौपालन – आर्गेनिक एग्रीकल्चर के लिए एक नई कार्ययोजना – आओ गाय से प्रेम करे

पुराणों में इसकी उपयोगिता एवं मान्यता का विशद वर्णन मिलता है। यहाँ तक कहा गया है कि गाय में और निर्गुण निराकार सच्चिदानंद परमात्मा बिल्कुल अंतर नहीं है। दुग्ध का निर्माण वात्सल्य से होता है और वात्सल्य की जननी गाय है। गाय के मल-मूत्र की पवित्रता ही यह सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है कि गाय त्रिगुणातीत प्राणी है।

प्राचीन काल से हमारे देश के आध्यात्मिक संत, ऋषि-मुनियों ने पृथ्वी के सात स्तम्भों की कल्पना कर रखी है। वे हैं-ब्राह्मण, वेद, सती-नारियाँ, सत्यवादी पुरूष, लोभरहित पुरूष और दान शील पुरूष। गाय के सुरक्षित रहने से वेद-पाठी ब्राह्मण सुरक्षित रहता है।

गाय और ब्राह्मण के सुरक्षित रहने से वेद-पुराण संरक्षित और इनके सुरक्षित संरक्षित रह पाने से समाज में सदाचार और सदाचारी पुरषों की उत्पत्ति संभव हो सकेगी। सदाचारी पुरूष जिस समाज में होंगे, वहां नारियों का सतीत्व भी सुरक्षित रहेगा। यह तथ्य तो उजागर है ही कि स्त्रियों को दूषित करने वाले समाज के दुराचारी पुरूष ही होते हैं।

सदाचार और सदाचारी पुरूषों की उपस्थिति में नारी का सतीत्व अपने आप संरक्षित हो जाता है। इस श्रृंखला पवित्रता का वातावरण निर्मित होकर न केवल वातावरण पावन बनेगा वरन् नारी का शेरनी, स्वेच्छाचारिणी और कुलटा स्वरूप भी देखने को नहीं मिलेगा। सभी नारियाँ सच्चरित्र होंगी और सत्यवादी व्यक्ति ही उनके गर्भ से जन्म लेकर सदाचार की, सुगंध बिखेरेंगे। स्वेच्छाचार, उच्छंखलता, और अव्यवस्था के दुर्गुणों से केवल व्यक्ति का नहीं पूरे समाज का नाश होता है।

इसके साथ ही यथा साध्य यह प्रयास भी होना चाहिये, ऐस दृढ़ निश्चय होना चाहिये कि हम गाय के दूध, दही और घी का ही सेवन करें। भारतीय संस्कृति में गाय को माता की मान्यता है। माता का स्थान स्वर्ग से श्रेष्ठ बतलाया गया है। भारतीय विचारधारा के अनुसार गायों में तैंतीस करोड़ देवताओं के निवास की कल्पना की गयी है। इसका मुख्य कारण यह है कि देवताओं के अनेक कल्याणकारी कार्य, स्वभाव और क्रियायें गायों में देखने को मिलते हैं।
गौ माता की हालत दयनीय - cow
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी गाय मानव जीवन के लिये अत्यन्त उपयोगी है। देश के लिये भी विभिन्न दृष्टियों से वरदान है-गौपालन। प्रायोगिक निष्कर्षों से भी पता चलता है कि स्वदेशी गाय के दूध में विशेष गुण एवं स्वास्थ्यवर्धक तत्व मौजूद रहते हैं। यही कारण है कि समस्त पूजा-विधियों में गाय के दूध और घी को आवश्यक वस्तु के रूप शामिल किया जाता है।

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डाॅ. किशन कछवाहा