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वीरशिरोमणि महाराणा प्रताप

भूल गये हम अपने ही, वीरों की अजेय थाती को।
वीर महाराणा के संघर्षों की, पावन मेवाड़ी माटी को।।

भारत की माटी में जितने देश भक्त पैदा हुए उतने ही कहीं और हो परंतु माँ भारती के कुछ सपूतों के स्मरण मात्र से रक्त में उबाल आ जाता है. ऐसे ही एक वीर योद्धा थे “वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप” जिन्होंने जाति, धर्म से उठकर प्रत्येक जीव जगत को अपनाया चाहे वह राजपूत हो, हिंदु हो, मुस्लिम हो, भील हो, हाथी या घोड़ा हो.

बप्पा रावल, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा और उदयसिंह के सिसोदिया राजवंश में अगली पीढ़ी हुई “कीका” अर्थात महाराणा प्रताप  सिसोदिया वंश को आगे बढ़ाते हुए महाराणा प्रताप ने अपने कुलदेव एकलिंग महादेव का आशीर्वाद प्राप्त किया. आप कभी भी शत्रुओं के सम्मुख नहीं झुके.

वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुटमणि राणा प्रताप का जन्म हुआ. महाराणा का नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिये अमर है.

एक संस्मरण आता है कि जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए? तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना निष्ठावान था, कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना” लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था. “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट” यु एस ए ‘किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं.

युद्ध भूमि में महाराणा- युद्ध भूमि में महाराणा-प्राता जी की भेष-भूषा कुछ इस तरह थी. महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 72 किलोग्राम ही था. कवच, भाला, ढाल, और हाथ में दो तलवारों का वजन मिलाएँ तो कुल वजन 208 किलो था. महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’ 5” थी, दो म्यान वाली तलवार और भाला युद्ध में साथ में रखते थे इसके पश्चात उनका स्वामी भक्त घोड़ा चेतक युद्ध भूमि में महाराणा की मन की गति से चलकर हवा से बातें करता था.

हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से बीस हजार सैनिक थे और अकबर की ओर से लगभग एक लाख सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए. महाराणा प्रताप और अकबर के मध्य हल्दी घाटी के युद्ध में किसी की भी हार जीत का निर्णय नहीं हुआ. जहाँ मुगलों की सेना अधिक थी वहीं महाराणा प्रताप की सेना मातृभूमि के प्रति समर्पित और साहसी थी भले संख्या बल में कम थी. यह युद्ध इतना विनाशकारी था मानों महाभारत का द्वितीय युद्ध हो.

महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं. इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है. मैं नमन करती हूँ ऐसे महान सपूत को.
Maharana Pratap History : भारत के गौरव महाराणा प्रताप की वीरता का इतिहास जानिए

हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई. आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था. यह प्रमाण है महाराणा प्रताप के युद्ध प्रबंधन का राज महल से दूर, बिना आर्थिक सहायता के मात्र प्रेम और समर्पण से इन अन्य जातियों ने प्रताप को तन, मन, धन से सहयोग दिया.

महाराणा प्रताप को शस्त्र की शिक्षा “श्री जैमल मेड़तिया जी” ने दी थी. महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट देते थे. ऐसा युद्ध कौशल उन्हें अपने गुरु श्री जैमल जी से शस्त्र शिक्षा में सीखा था. जैमल जी जो मात्र आठ हजार राजपूत वीरों को लेकर साठ हजार मुसलमानों से लड़े थे. उस युद्ध में अडतालीस हजार मारे गए थे जिनमें राजपूतों की संख्या मात्र आठ हजार थी शेष मुगलों के सैनिक थे. यह प्रमाण राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए पर्याप्त है.

आन, बान ,शान ।
राजपूतों की जान।।

मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे. आज भी मेवाड़ के ‘राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील’ उदयपुर महल के गाईड भी ऐसा बताते हैं और हमने राजचिन्ह देखा भी है.

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक परम स्वामी भक्त था. जो महाराणा प्रताप को मुगलों से युद्ध करते समय लगभग 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ. उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया. जहाँ वो घायल हुआ वहाँ आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है,

जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है. राणा का घोड़ा चेतक बहुत शक्तिशाली था, उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी,

मृत्यु से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85% मेवाड फिर से जीत लिया था. सोने चाँदी और महलों को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमें.

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की तरह उनका हाथी रामप्रसाद भी स्वामी भक्त था. रामप्रसाद हाथी का उल्लेख

“अल-बदायुनी” जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था उसने अपने एक ग्रन्थ में किया था. उसके अनुसार जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी, तब उसने दो शर्त रखी थी- एक महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद इन्हें बंदी बनाकर अकबर के सामने पेश करना था.

आगे अल बदायुनी लिखता है कि वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था. उसे पकड़ना सरल न था अतः राम प्रसाद हाथी को पकड़ने के लिए सात बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया और उन पर 14 महावतों को बिठाया तब कहीं जाकर मुगल उसे बंदी बना पाये.

उस हाथी को अकबर के समक्ष प्रस्तुत किया गया. रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिनों तक मुगलों का दिया न तो भोजन खाया और न ही पानी पिया और अंत में वह वीरगति को प्राप्त हुआ.

स्वामी भक्त हाथी की वीरगति के पश्चात अकबर समझ गया- “जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा.”

महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी 10 बातें - 10 facts u know about ruler of mewar maharana pratap - AajTak

इतिहासकार कहते हैं, कि महाराणा अकबर से हार गये किंतु उस समय के भील कबीलों के सरदारों के पास से लगान माफ करने की स्वीकृति का एक ताम्रलेख आज भी उनके वंशजों के पास है. जो यह प्रमाणित करता है कि अकबर ने जीत के लिए स्वयं सामने न आकर कभी मानसिंग, कभी सलीम (शाहजहां) तो कभी अन्य अन्य योद्धाओं को भेज कर महाराणा प्रताप से युद्ध लड़ा पर कभी जीत प्राप्त नहीं की.

मुझे भी उदयपुर जाने का सौभाग्य मिला. आज भी महाराणा प्रताप की तलवार, भाला, कवच आदि उदयपुर राजमहल के संग्रहालय में सुरक्षित हैं. मैंने पूरा महल देखा! अद्भुत वास्तु है उदयपुर राजप्रासाद का, पहाड़ों को काटकर पाँच मंजिला महल इस तरह बनाया गया है कि- भू तल से लेकर छत तक पेड़ पौधे बड़े-बड़े वृक्ष, सुंदर बगीचे हैं. छत पर आम पीपल सीताफल के पेड़ों के साथ चंपा गुलमोहर के पेड़ भी है. वहाँ एक बड़ा नक्काशीदार संगमरमरी (स्नान के लिए) हौज है, जहाँ सुगंधित द्रव्य मिलाकर स्नान किये जाते थे. कृष्ण भक्त मीरा बाई जी भी इसी वंश की बहु थी. उनके ठाकुर जी का मंदिर महल के लिए जाते समय रास्ते में दाहिने हाथ की ओर बना हुआ है.

इतिहासकारों के भ्रमित लेखों से भारतीय युवाओं में महाराणा प्रताप को लेकर जो भ्रांतियाँ है, वह दूर होनी चाहिए. महाराणा प्रताप एक अजेय महाराजा थे. भले उनका साथ सभी राजपूत राजाओं ने न दिया हो परंतु उनके नेतृत्व में राजपूतों के साथ साथ लुहार, भील, मुस्लिम आदि जाति और धर्म के लोगों ने अंतिम साँस तक देश की आन-बान-शान के लिए युद्ध लड़ा. महान और आदर्श व्यक्तित्व को शत-शत नमन……

लेखक:- डॉ. नुपूर निखिल देशकर