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तो आखिरकार आतंकवाद की दुकान पर ताला लगना प्रारंभ हो गया

केंद्र सरकार ने पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट इंडिया) पर 5 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया यह सवाल 2014 से बहुत से लोग पूछ रहे थे सबके मन में था की आखिर केंद्र सरकार पीएफआई पर बैन क्यों नहीं लगा रही है.

यह संगठन आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त है यह संगठन आतंकवादी ट्रेनिंग देता है हथियार चलाने बम बनाने की ट्रेनिंग देता है यह संगठन “गजवा ए हिंद” की बात करता है इस संगठन के लोगों का संबंध पाकिस्तान की एजेंसी आई एस आई से है और देश में जितने भी दंगे हो रहे हैं सांप्रदायिक सद्भाव माहौल बिगाड़ने का काम होता है उन सब के पीछे इस संगठन पीएफआई का हाथ है जो हत्याएं हो रही है.

इस्लाम के नाम पर मजहब के नाम पर उनके पीछे यह संगठन है इसके बावजूद क्यों नहीं प्रतिबंध लग रहा है! तो इन सब बातों का जवाब आज सबको मिल गया है जब केद्र सरकार का इतना बड़ा ऑपरेशन हम सबके सामने हैं जो केंद्र सरकार द्वारा चला गया ऑपरेशन है उसका परिणाम हमारे समक्ष है और हमें यह बात भी समझनी होगी की इस ऑपरेशन की तैयारी लगभग 6 महीने से चल रही थी किसी को कानों कान खबर तक नहीं लगी इस ऑपरेशन के तहत 20 राज्यों में 90 जगह पर छापे पड़े और पीएफआई के 100 नेताओं की गिरफ्तारी हुई और इस छापे से पहले एजेंसी को पता था कि पीएफआई का कौन सा नेता कहां है कहां ठहरा हुआ है कहां रुका हुआ है.

अगर ट्रेन में सफर कर रहा है तो ट्रेन की किस बोगी में है किस बर्थ पर है और यह ऑपरेशन शुरू हुआ सुबह 3:00 बजे बिल्कुल ब्रह्म मुहूर्त में और जो नेता पकड़े गए सीधे से उठे और सीधे पुलिस वैन में मिले पीएफआई कार्यकर्ताओं को जब तक पता चलता तब तक वह जा चुके थे कस्टडी में और 20 राज्यों की सरकारों से को ऑर्डिनेशन भारत में इस तरह का ऑपरेशन पिछले 75 वर्षों में कभी नहीं हुआ और इतना ही नहीं पीएफआई के साथ-साथ उनके सभी सहयोगी संगठनों पर भी यह बहुत बड़ी कार्यवाही हुई और हम लोगों को इसकी भनक भी नहीं पड़ी। यह कार्यवाही कोई एक रात में नहीं हो गई यह कार्यवाही एक सोची समझी रणनीति के अनुसार की गई है जिसमें गलती से भी पीछे हटने की कोई गुंजाइश ना हो न्यायालय के समक्ष मुंह की भी ना खानी पड़े यह सब सोच समझकर नियम व तरीके से केंद्र सरकार की ओर से यह कदम उठाया गया क्योंकि पिछले 75 वर्षों का इतिहास बताता है कि आतंकवादियों के मामले में हमारी अदालत किस तरह से बड़ी संवेदनशील हो जाती है जो मानव अधिकार के मुद्दे पर आम आदमी गरीब आदमी के मुद्दे पर इतनी संवेदनशीलता नहीं दिखाती वो आतंकवादी के मामले में बहुत अधिक संवेदनशील हो जाती है.

पीएफआई पर यदि छापे से पहले कार्यवाही होती, तो यह तय मानिए कि वह रिजेक्ट हो जाता और वो लोग हंसते हुए बाहर निकलते और पूरा विपक्ष पूरा लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम केंद्र सरकार पर टूट पड़ता की यह मुसलमानों के खिलाफ है यह मुसलमानों को और हिंदुओं को बांटने का काम है यह देश में सांप्रदायिकता को बढ़ाने के लिए हो रहा है यह चुनाव जीतने के लिए हो रहा है तमाम प्रकार के आरोप लगते तो पहले क्या किया गया पहले इनके बारे में सबूत इकट्ठे किए गए लगातार इनकी गतिविधियों पर नजर रखी गई और उसके बाद जब यह छापा पड़ा है उसमें जो दस्तावेज मिले हैं उससे यह बात डंके की चोट पर कह सकता हूं कि इसे कोई भी अदालत निरस्त नहीं कर सकती है यह बैन किसी भी हालत में सुप्रीम कोर्ट से निरस्त नहीं हो सकता है. यह सब हो रहा था किसी ने सोचा भी नहीं होगा किसी को कानों कान खबर तक नहीं हुई यह जो छापा पड़ा गिरफ्तारी हुई यह एक योजनाबद्ध तरीके से किए गए सुचारू रूप से कार्य का परिणाम है जो एक केंद्र सरकार का सराहनीय कदम है। यह कार्यवाही रुक रुक कर जो एक के बाद घाव दिए गए वह सराहनीय कदम है एक के बाद एक छापे जिसमें लगभग 1300 F.I.R. हुई 100 से ज्यादा गिरफ्तारी हुई और पूरी कार्यवाही केवल 45 मिनट में हुई 20 राज्यों की सरकारों में तालमेल और पूरी तरह से गोपनीयता को बनाए रखते हुए इस ऑपरेशन को अंजाम देना कोई मामूली घटना नहीं है यह मोदी है तभी मुमकिन है बिना मोदी के यह मुमकिन नहीं था यह हो ही नहीं सकता था किसी और के समय में, अब रोना गाना शुरू होगा पाकिस्तान में सीरिया में तरकी में और विलाप चल रहा है भारत में पीएफआई को बचाने की कोशिश हो रही है मेरा तो मानना है मैं कई बार बोल चुका हूं लेख भी लिख चुका हूं कि आतंकवाद के समर्थकों को भी आतंकवादी घोषित किया जाना चाहिए उनके खिलाफ उन्ही धाराओं में कार्यवाही होनी चाहिए, जितने विपक्षी दल हैं वे या तो चुप हैं या परोक्ष रूप से पीएफआई के समर्थन में है और आश्चर्य से पीएफआई के बैन का समर्थन कुछ मुस्लिम संगठन कर रहे हैं क्यों कर रहे हैं यह एक सोचने का विषय है क्योंकि उन संगठनों को अपने अस्तित्व पर खतरा नजर आ रहा है वह इसलिए नहीं कि किसी को बुरा मानते हैं या पीएफआई पर एक्शन होने से उनको कोई खुशी हुई है उनको खुशी इस बात से हुई है कि उनका अस्तित्व बच जाएगा.

पीएफआई शक्तिशाली हो जाता तो यह कमजोर हो जाते इनकी कोई पूछ नहीं होती इसलिए यह पीएफआई के बैन का समर्थन कर रहे हैं तो गलतफहमी में मत रहिए दूसरी बात फर्क देखिए फर्क बड़ा साफ है पहले की सरकार में और वर्तमान की सरकार में वर्तमान की सरकार में बुनियादी फर्क है वह यह है कि उस समय सरकार को पता नहीं होता था कि आतंकवादी क्या कर रहे हैं क्या करना चाहते हैं संसद में हमला हो गया कंधार कांड हो गया मुंबई जैसा हमला हो गया आए दिन बम ब्लास्ट हो रहे थे महीनों में होने लगे थे आज इस शहर में कल उस शहर में और यह आम घटना हो गई थी कि लोग मान कर चलते थे कि हिंदुओं का त्यौहार आ रहा है तो बम ब्लास्ट कहीं ना कहीं तो होगा ही। तो फर्क साफ है.

आज यह स्थिति है कि आतंकवादियों को पता नहीं होता कि सरकार क्या सोच रही है क्या कर रही है. इतना बड़ा ऑपरेशन और किसी को भनक तक ना लगे यह कोई सामान्य बात नहीं है यह हो गया तो हम लोग को लगता है कि बड़ी सामान्य बात है हम लोग बहुत जल्दी किसी भी घटना या बात का सामान्यी करण कर देते हैं.

जम्मू कश्मीर से 370 & 35-A का हटना हमने मान लिया हां हो गया जैसे कोई बड़ी बात ना हो अयोध्या में बड़ा भव्य राम मंदिर बन रहा है उसको भी सामान्य मान लिया है जो भी बड़ा काम हो रहा है उसको हम बड़ी आसानी से पचा ले रहे हैं जैसे यह कोई बड़ी बात ना हो कोई बड़ी उपलब्धि ना हो. यदि वर्तमान सरकार को समझना है तो आप धैर्य रखिए देखिए आगे आगे क्या होता है शायद हम आपकी सोच से भी परे हो वह काम हो जाये और एक बात और हमें अपने मतदान की शक्ति को समझना होगा और थोड़ा धैर्य रखना होगा। क्योंकि यह सब जो हो रहा है वह हमारे उसी एक मतदान की शक्ति का परिणाम है.

     लेख़क 
  अमित गर्ग 
89659 95102