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त्रिपुरी में स्व की विजय से स्वतंत्रता के शिखर तक : नेताजी सुभाष चंद्र बोस”

“जय हिंद”

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक महारथी सुभाष बोस को सन् 1939 में जबलपुर के पवित्र तीर्थ त्रिपुरी में भारत का शीर्ष नेतृत्व मिला था। भारत देश के युवा और प्रतिनिधियों ने कहा जी के नेतृत्व को नकार दिया था। जबलपुर के नेता जी सुभाष चंद्र बोस का 4 बार शुभ आगमन हुआ और कार्यकाल त्रिपुरी अधिवेशन से नेता जी सुभाष चंद्र बोस की स्व के लिए विजय और उन्हें प्राप्त करने की शुरुआत हुई।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पहली बार 22 दिसंबर 1931 से 16 जुलाई 1932 तक (जबलपुर सेंट्रल जेल में पहला प्रवास लगभग 6 माह 25 दिन), दूसरी बार 18 फरवरी 1933 से 22 फरवरी 1933 तक (जबलपुर सेंट्रल जेल में दूसरा प्रवास 4 दिन का प्रवास) ) ) ) ), तीसरी बार 5 मार्च 1923 से 11 मार्च 1939 (त्रिपुरी अधिवेशन में जबलपुर में 7 दिन का प्रवास) और चौथी बार 4 जुलाई 1939 को अपना अंतिम प्रवास पर आए। 

सच तो यह था कि महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन की किस्मत से खास युवा मिले थे और वह अब सुभाष बाबू के साथ जाना चाहते थे, इसलिए सन् 1938 में हरिपुरा कांग्रेस में सुभा चंद्र बोस विक्टर रहे।

सन् 1939 में कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर गहरे संकट के मामले थे। महात्मा गांधी नहीं चाहते थे कि अब सुभाष चंद्र बोस अध्यक्ष पद के लिए अलग हों, इसलिए उन्होंने कांग्रेस के सभी शीर्षस्थ नेताओं को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ चुनाव में ब्रेक होने के लिए कहा लेकिन सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए के लिए जब कोई भी तैयार नहीं हुआ तब महात्मा गांधी ने पट्टाभि सिताररमैया को अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनाव में खड़ा होने का फैसला लिया ताकि दक्षिण भारत के प्रतिनिधियों का पूर्ण समर्थन प्राप्त हो सके।

सन् 1939 में नर्मदा के पुनीत तट पर त्रिपुरी में कांग्रेस के 52 वें स्थान पर आने के लिए जबलपुर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सेठ गोविंद अधिपति दास, पंडित द्वारका प्रसाद संयोजन, ब्यौहार राजेंद्र सिंहा, पंडित भवानी प्रसाद तिवारी, सवाईमल जैन और श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान आदि का विशेष योगदान हो रहा है।

धरतापुरी तीर्थ क्षेत्रान्तर्गत तिलवारा घाट के पास विष्णुदत्त नगर बनाया गया। इस नगर में बाजार, भोजनालयों और चिकित्सा की व्यवस्था की गई। जल प्रबंधन पर 90 हजार की क्षमता वाला विशाल जलकुंड बनाया गया है। अस्थाई रूप से टेलीफोन और बैंक और पोस्ट ऑफिस की व्यवस्था की गई। दस द्वार बनाए गए। बाज़ार का नाम फ़्लैग किया गया था।

जनवरी सन् 1939 से ही जबलपुर में कांग्रेस के प्रतिनिधि आए थे। अंततः 29 जनवरी को सन् 1939 को मतदान हुआ और परिणाम अत्यंत विस्मयकारी आए। 1580 वोट नेताजी सुभाष चंद्र बोस को मिले और महात्मा गांधी व अन्य सभी प्रतिनिधियों को भागीदार सितारमैय्या को 1377 ही वोट मिले। इस तरह सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी के प्रतिनिधि पट्टाभि सिताररमैया को 203 वोट के अंतर से हरा दिया और महात्मा गांधी ने इसे अपनी व्यक्तिगत हार के रूप में स्वीकार कर लिया। मामूली अब हाथ से निकल गया था इसलिए दुबारा नेतृत्व ने हाथ में हाथ लिया। फिर क्या था? ऐसा कोई भी इतिहास नहीं बताया गया है कि ऐंशिया छोड़ दिया गया है! विश्वव्यापी विश्व की राजनीति की सबसे घातक धारणाएं हैं “पट्टाभि की हार मेरी (व्यक्तिगत) हार है”। अकादमी जी जान गए थे,किस देश की युवा पीढ़ी और नेतृत्व में अब सुभाष चंद्र बोस का हाथ चला गया है? इसलिए जोखिम समझौता किया गया। अबपुरी काँग्रेसवेशन में पट्टाभि की हार को गाँधी जी ने अपनी प्रतिष्ठा का अधिमान्य प्रश्न बनाया था।

5 मार्च को 52 वें अधिवेशन में नेताजी की जीत पर 52 हाथियों का खुलासा हुआ, नेताजी अस्वस्थ थे इसलिए रथ पर उनकी एक बड़ी तस्वीर रखी गई थी।

10 मार्च सन् 1939 को तिलवारा घाट के पास विष्णुदत्त नगर में 105 डिग्री बुखार होने के बाद भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपना बयान दिया जिसे उनके बड़े भाई श्री शनिवारचंद्र बोस ने पूरा किया। इस दिन 2 लाख स्वतंत्रता के दीवाने उपस्थित रहे यह आपके लिए एक रिकॉर्ड है। महात्मा गांधी नेवेशन को केवल अपनी प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाया था, वर्नम और उनकी चोट को यह स्पष्ट हो गया था कि अब देश का नेतृत्व उनके हाथ से निकल गया है, इसलिए कांग्रेस की गलती ने सुभाष चंद्र बोस के साथ असहयोग किया। यह अलोकतांत्रिक था, परंतु गांधी जी का समर्थन और सिद्धांतवादी भी था। साथ ही सुभाष बाबू को गांधी जी के निर्देश पर काम करने के लिए कहा गया था जबकि अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस थे।

10 मार्च सन् 1939 को त्रिपुरी अधिवेशन में संदेश हुए सुभाष बाबू ने अपना मंतव्य रखा कि अब अंग्रेजों को 6 माह की अल्टीमेटम दिया जाए वह भारत छोड़ दें। इस बात पर गांधी जी और उनके संबंधों के हाथ पांव फूल गए उद्र अंग्रेजों को भी भारी तनाव हो गया। इसलिए एक गहरे संयुक्त प्रवाह के कारण नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने असहयोग कर विरोध किया। अंततः नेताजी सुभाष चंद्र बोस सुभाष बाबू ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दिया। स्व का चरमोत्कर्ष होने के बाद त्याग पत्र के बाद। त्रिपुरी अधिवेशन में 10 मार्च सन् 1939 को उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत होने के संकेत मिल रहे हैं इसलिए यही सही समय है कि अंग्रेजों से आर-पार की बात की जाए। परंतु गांधी जी और उनके घावों ने विरोध किया।सच तो यह है कि सुभाष बाबू की बात मान ली गई तो देश 7 साल पहले आज़ाद हो जाता है और विभाजन की विभीषिका नहीं कहते।

 सन् 1940 में उपराष्ट्रपति चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की, लेकिन बरतानिया सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तब सुभाष चंद्र बोस ने आमरण अनशन का दृश्य देखा। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मुक्त कर दिया। तदुपरांत जनवरी 1941 को सुभाष चंद्र बोस वेशकोलकाबुल से काबुल, मास्को होते हुए जर्मनी पहुंचे जहां जापान सेदात्म्य के बाद हिटलर से मिलने के बाद सिंगापुर पहुंचे। आजाद हिंद फौज के महानायक बने।

5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के कस्बे में हाल के सामने कमांडर सुप्रीम के नेता के रूप में सुभाष चंद्र बोस जी ने सेना को प्रभावित करते हुए दिल्ली चलो! का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर बर्मा सहित आज़ाद हिन्द फ़ौज रंगून (यांगून) से हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई 18 मार्च सन 1944 ई. कोहिमा और इम्फाल के भारतीय इलाकों में पहुंचे और ब्रिटिश व कामवेल्थ सेना से मोर्चा संभाला। बोस ने अपने लोगो को जय हिंद का अमर नारा दिया और 21 अक्टूबर 1943 को सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौजों के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार मुक्त हिन्द सरकार की स्थापना की। उनके अनुयायी प्रेम से उन्हें नेताजी कहते थे। आजाद हिन्द फौज की दृष्टि सुभाष चन्द्र बोस

अपनी इस सरकार के अध्यक्ष, प्रधान मंत्री और वरिष्ठ नेता तिकड़ी के पद के नेताओं ने अकेले सम्भाल लिया। इसके साथ ही अन्य जिम्मेदारियां जैसे वित्त विभाग एस.सी. चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को तथा महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को कहा गया। उनकी इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मांचुको और आयरलैंड को मान्यता दी गई है। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप समूह को यह अस्थायी सरकार प्रदान की है। उन द्वीपों में नेताजी गए और उनकी नई बातें हुईं। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप और निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया है। 30 पासपोर्ट 1943 को इन द्वीपों पर स्वतन्त्र भारत का ध्वज भी फहराया गया। इसके बाद के नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर एवं रंग में फ्री फ़ौज का मुख्यालय बनाया।4 रेटिंग 1944 को आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर फिर से भयंकर आक्रमण किया और कोहिमा, पल्ले आदि कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त कर लिया। 21 मार्च 1944 को दिल्ली चलने के नारे के साथ छठा हिंद फौज का हिंदुस्तान की धरती पर आया।

22 सितंबर 1944 को शहीद दिवस राजदूत सुभाषचंद्र बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा “हमारी गणतंत्र स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे रक्त दो, मैं सर्वोच्च स्वतंत्रता दूंगा। यह स्वतन्त्रता की देवी की मांग है।” जापान के पराजय के नेता जी सुभाष चंद्र बोस वास्तविकता से अवगत होने के लिए हवाई जहाज जापान रवाना हुए 18 अगस्त सन् 1945 को फरमोसा में विमान दुर्घटना में मृत घोषित कर दिया गया लेकिन यह सच नहीं था और अब इसके प्रमाण भी सामने हैं। इसके बावजूद नेता जी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज की स्व के लिए पूर्णाहुति ही बरतानिया सरकार से भारत की आजादी के लिए राम बाण प्रमाण पत्र।

 विभाजन को लेकर तथाकथित राष्ट्रीय आंदोलन बिफर गया था। स्वाधीनता की श्रेय लेने वाला उदारवादी दल अलग हो गया था और उसे जिन्ना को संभालने नहीं आया। अंततोगत्वा भारत के विभाजन को लेकर हिंदू-मुस्लिम विरोध शुरू हो गया और बरतानिया सरकार के खिलाफ संग्राम लगभग समाप्त हो गया।

सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन ने 3 माह में ही दम तोड़ दिया था तो दूसरी ओर विभाजन बना लिया। ऐसी स्थिति में महात्मा गांधी किंकर्तव्यमूढ़ हो गए थे और बाद में विनाशकारी निर्णय में भी शामिल हो गए। सन् 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ और उसके बाद इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार बनी।

इंग्लैंड के प्रधान मंत्री क्लेमेंट एटली ने जून 1948 तक भारत में वापसी की घोषणा की लेकिन विभाजन कर दिया, एक साल पहले ही अंग्रेजों ने 15 अगस्त सन् 1947 में भारत छोड़ दिया। यह सन् 1956 तक बहुत ही रहस्यमयी बनकर रह गया था कि आख़िरी ऐंसा क्या हो गया था? कि ब्रिटानिया सरकार ने 1 साल पहले ही भारत छोड़ दिया। इस रहस्य का खुलासा सन् 1956 में क्लेमेंट एटली ने किया, जब वे अभिषेक होने के बाद कलकत्ता आए, वहां के गवर्नर ने एक भोज के दौरान उन्हें पूंछा कि आखिरकार ऐसी सी कौन हड़बड़ी थी कि आपने 1 साल पहले ही भारत छोड़ दिया, तब क्लेमेंट एटली ने जवाब दिया कि सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के घायल हो जाने के बाद महात्मा गांधी हमारे लिए कोई समस्या नहीं थी, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनके आज़ाद हिंद दोषों के कारण भारतीय सेना ने हमारे खिलाफ विद्रोह कर दिया था।अचिनलेक ने अपने विरोध में सन् 1946 में जबलपुर से थल सेना के संकेत कोर के विद्रोह, बांबी से नौसेना के विद्रोह, करांची और कृष्ण से वायु सेना के विद्रोह का हवाला देते हुए छोड़ दिया था कि अब भारतीय सेना पर हमारा नियंत्रण समाप्त हो रहा है जिसका विवरण है कि अब भारत पर और अधिक समय तक शासन करना असंभव होगा, और यदि ही यहां से हम लोग वापस नहीं गए तो बहुत से विध्वंसक लगभग निर्मित हो सकते हैं और यही विचार अन्य विचारकों का भी था। इसलिए हमने 1 साल पहले ही भारत छोड़ दिया लेकिन भारतीय इतिहास में सेना की स्वाधीनता संग्राम को विद्रोह का दर्जा देकर घोषित कर दिया। स्वतंत्रता के उत्सव अमृत पर श्रेयसी नेता जी सुभाष चंद्र बोस और मुक्त हिंद फौज के साथ भारतीय सेना को ही जाना चाहिए।यह ज़मानत है कि माउंटबेटन और एडविना ने जो अपनी डायरियाँ लिखी थीं, वे वसीयत के अनुसार इंग्लैंड के एक विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में सुरक्षित थे, उसी में इंग्लैंड में एक पत्रकार ने सूचना के अधिकार के तहत अपनी जानकारी दी है, और एक पुस्तक और यदि शीघ्र ही यहां से हम लोग वापस नहीं गए तो बहुत ही विध्वंसक चतुर्भुज निर्मित हो सकते हैं और यही विचार अन्य विचारकों का भी था। इसलिए हमने 1 साल पहले ही भारत छोड़ दिया लेकिन भारतीय इतिहास में सेना की स्वाधीनता संग्राम को विद्रोह का दर्जा देकर घोषित कर दिया। स्वतंत्रता के उत्सव अमृत पर श्रेयसी नेता जी सुभाष चंद्र बोस और मुक्त हिंद फौज के साथ भारतीय सेना को ही जाना चाहिए।यह ज़मानत है कि माउंटबेटन और एडविना ने जो अपनी डायरियाँ लिखी थीं, वे वसीयत के अनुसार इंग्लैंड के एक विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में सुरक्षित थे, उसी में इंग्लैंड में एक पत्रकार ने सूचना के अधिकार के तहत अपनी जानकारी दी है, और एक पुस्तक और यदि शीघ्र ही यहां से हम लोग वापस नहीं गए तो बहुत ही विध्वंसक चतुर्भुज निर्मित हो सकते हैं और यही विचार अन्य विचारकों का भी था। इसलिए हमने 1 साल पहले ही भारत छोड़ दिया लेकिन भारतीय इतिहास में सेना की स्वाधीनता संग्राम को विद्रोह का दर्जा देकर घोषित कर दिया। स्वतंत्रता के उत्सव अमृत पर श्रेयसी नेता जी सुभाष चंद्र बोस और मुक्त हिंद फौज के साथ भारतीय सेना को ही जाना चाहिए।यह ज़मानत है कि माउंटबेटन और एडविना ने जो अपनी डायरियाँ लिखी थीं, वे वसीयत के अनुसार इंग्लैंड के एक विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में सुरक्षित थे, उसी में इंग्लैंड में एक पत्रकार ने सूचना के अधिकार के तहत अपनी जानकारी दी है, और एक पुस्तक “एक जीवन कई प्रेम” नेता जी सुभाष चंद्र बोस का अवदान वर्तमान और पीढ़ी को लगातार याद रहेगा कि “मैं रहूं या नूं, मेरा ये देश भारत रहना चाहिए”। जय हिंद शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है, लेकिन इंग्लैंड की सरकार दबाव बना रही है, कि माउंटबेटन की डायरियों का पता चला यदि माउंटबेटन और एडविना की डायरियों का खुलासा हुआ तो बहुत से उदारवादी निर्वस्त्र हो जाएंगे और सत्ता के लिए संघर्ष का भी आईना साफ हो जाएगा। आशा करते हैं कि बहुत जल्दी ही यह किताब प्रकाशित हो जाएगी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्भुत और अद्वितीय महारथी अमर बलिदानी श्रीयुत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को स्व की विजय और दर्शन के लिए चिरकाल तक जाना जाएगा।

!!जय भारत !!

~ डॉ. आनंद सिंह राणा