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नरेंद्रनाथ से स्वामी विवेकानंद बनने के पहले कदम का साक्षी रहा जबलपुर

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आध्यात्मिक पिता एवं वीर ऋषि स्वामी विवेकानंद के कदम जबलपुर में भी पड़े। जब वे छोटे थे तब परिवार के साथ ट्रेन में निकले थे तो जबलपुर स्टेशन पर ठहरे थे। जबलपुर शहर के गौरवशाली इतिहास में कई ऐसे महान व्यक्तित्व शामिल हैं, जिनके कदम संस्कारधानी की धरती पर पड़े हैं। ऐसा ही एक नाम है स्वामी विवेकानंद। स्वामीजी ने अल्पायु में ही पूरी दुनिया को अपने विचारों से हिला कर रख दिया। उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए इस वाक्य से युवाओं को जीवन में आगे बढ़ने की दिशा दिखाने वाले स्वामी विवेकानंद का शहर भी आगमन हुआ है। प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य, के आलोक में नरेंद्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) के रायपुर जाने व वापसी के समय जबलपुर आने के प्रमाण मिलते हैं। आज स्वामी विवेकानंद की जयंती- युवा दिवस के अवसर पर आइए जानते हैं इस शोधपरक जानकारी के बारे में।

1877 में रायपुर चला गया था परिवार: इतिहास से मिली जानकारी के अनुसार 1877 में नरेंद्रनाथ दत्त का परिवार रायपुर चला गया था। करीब दो वर्ष रायपुर में रहने के बाद नरेंद्रनाथ दत्त का परिवार 1879 में वापस कोलकाता लौटा। रामकृष्ण मिशन द्वारा स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी किताबों के मुताबिक दत्त परिवार नागपुर होते हुए रायपुर पहुंचा। उन दिनों नागपुर से रायपुर तक की यात्रा के लिए बैलगाड़ी के उपयोग का उल्लेख मिलता है। लेकिन कोलकाता से नागपुर पहुंचने के लिए जबलपुर एक माध्यम स्टेशन बना। जहां जबलपुर स्टेशन पर दत्त परिवार ने विश्राम करने के बाद आगे की यात्रा की। जबलपुर स्टेशन पर रुकना इसलिए भी सही है क्योंकि 1877 में हावड़ा-मुंबई रेलवे लाइन में जबलपुर एक मुख्य स्टेशन के रूप में स्थापित हो चुकने के पुख्ता प्रमाण हैं। जबलपुर में 1867 में इलाहाबाद-जबलपुर शाखा लाइन खुली। ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे कनेक्शन 7 मार्च 1870 को इटारसी से जबलपुर आ चुका था और जबलपुर हावड़ा-मुंबई लाइन के प्रमुख स्टेशन था। इस तरह नरेंद्रनाथ दत्त 14 वर्ष की आयु में अपने परिवार के साथ जबलपुर होते हुए नागपुर गए और वापसी के लिए भी रायपुर से जबलपुर का मार्ग लिया। इस तरह 14 से 16 वर्ष की आयु में नरेंद्रनाथ के दो बार जबलपुर आगमन की पुष्टि होती है।यही वह समय था, जब स्वामी विवेकानंद को बैलगाड़ी की लंबी यात्रा, रायपुर से जबलपुर आते समय दिव्य अनुभूतियां हुई थीं।

लेखक
डॉ. आनंद सिंह राणा
7987102901