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प्रकृति वंदन : पर्यावरण संरक्षण की दिशा में संघ का सराहनीय कदम

रा. स्व. संघ को उसके विरोधी सांप्रदायिक संगठन मानते हैं | हिन्दू समाज को अनुशासन और एकता के सूत्र में पिरोने के लिए 1925 से कार्यरत संघ का विस्तार जिस तरह हुआ वह समाजशास्त्रियों के लिए जिज्ञासा का विषय रहा है |

अपनी स्थापना के समय से ही प्रचार और आत्मप्रशंसा से दूर रहने की वजह से इस संगठन के बारे में भ्रांतियां भी बहुत फैलाई गईं | लेकिन उन सबसे अविचलित रहते हुए उसने कार्य जारी रखा और 2025 में शताब्दि वर्ष की ओर बढ़ रहे संघ ने सामाजिक जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है | उसके लगभग तीन दर्जन अनुषांगिक संगठन विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं | संघ चूंकि खुद को सांस्कृतिक संगठन कहता है और भारतीय संस्कृति में उसकी अगाध श्रृद्धा है इसलिए उसके हर प्रकल्प में भारतीय परम्पराओं का पालन किया जाता है |

आज देश का एक भी भाग ऐसा नहीं है, जहाँ संघ की उपस्थिति न हो | वैचारिक तौर पर भी उसकी स्वीकृति और आकर्षण बढ़ा है जिसका सबसे बड़ा कारण उसकी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता और लक्ष्य केन्द्रित कार्यशैली है |

भारतीयता से सराबोर इस संगठन को पुरातनपंथी या दकियानूसी कहने वाले कथित प्रगतिशील लोगों के लिए ये बात शोचनीय होना चाहिए कि जिस वामपंथी विचारधारा से प्रेरित होकर वे संघ को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करते रहे वह अपनी जन्मभूमि में ही दम तोड़ बैठी, जबकि तीन-तीन बार प्रतिबंधित किये जाने के बावजूद संघ शक्तिशाली होता गया और उसके प्रभावक्षेत्र में भी वृद्धि हो रही है | अब तो विदेशों में भी उसकी जड़ें जम रही हैं | ये बात पूरी तरह सही है कि समाज के एक बड़े वर्ग को संघ में भारतीय संस्कृति का संरक्षक नजर आता है |

आज जब राजनीति पूरी तरह कलुषित हो चुकी है तब संघ राष्ट्रवाद , निःस्वार्थ सेवा और अनुशासन के प्रतीक के तौर पर लोगों का विश्वास अर्जित करने में सफल है | पश्चिमी संस्कृति को ही प्रगतिशीलता का परिचायक मानने वाले लोगों के दुष्प्रचार के बावजूद वह भारतीय जनमानस में ये बात स्थापित करने में सफल हुआ है कि भारत की सारी समस्याओं का हल भारत में ही है परन्तु उसके लिए हमें अपने सामर्थ्य पर भरोसा करना होगा | यही वजह है कि संघ ने दैनिक शाखाओं के जरिये हिन्दू समाज को संगठित करने के अपने मूल कार्य के अलावा समाज की रचनात्मक शक्तियों को देश के विकास और मजबूती के लिए एकजुट करने का अभियान शुरू किया जिसके उत्साहजनक परिणाम आने लगे हैं | इसी दिशा में उसने पर्यावरण संरक्षण का अभियान हाथ में लिया |

आगामी 28 अगस्त को प्रकृति वंदन नामक कार्यक्रम के अंतर्गत देश भर में 55 लाख पर्यावरण प्रेमी प्रकृति की पूजा, वृक्षारोपण और तालाबों की सफाई जैसे कार्य करेंगे | इसके अंतर्गत देश के 150 से भी अधिक विश्वविद्यालयों के छात्र एक सप्ताह तक पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न कार्यों में योगदान देंगे | जिसे वन वीक फार नेशन का नाम दिया गया है |

गत वर्ष भी संघ द्वारा आयोजित प्रकृति वंदन दिवस के साथ 52 लाख लोग जुड़े थे | यह आयोजन निश्चित रूप से धर्म और आध्यात्मिक क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों और संगठनों के लिए प्रेरणादायक है |

हमारे देश में राजनीति और धर्म दो ऐसे क्षेत्र हैं जो हर समय सक्रिय  रहते हैं और जिनसे करोड़ों लोगों का सीधा जुड़ाव है | यदि इस जनशक्ति का उपयोग प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण हेतु किया जा सके तो देश में शुद्ध हवा की उपलब्धता बढ़ सकती है, जलस्रोतों को सूखने से बचाया जा सकता है और औसत जन स्वास्थ्य में सुधार के कारण लोगों की जीवनशैली में गुणात्मक सुधार होना भी संभव है |

अब चूंकि संघ जैसा समर्पित संगठन प्रकृति वंदन अभियान के साथ पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय हुआ है तब ये मानकर चला जा सकता है कि प्रकृति की रक्षा के लिए लाखों समर्पित व्यक्ति संगठित होकर जो कुछ भी करेंगे उसके सुपरिणाम आने वाले समय में महसूस किये जा सकेंगे | इस बारे में ये भी अपेक्षित है कि जिस तरह राजनीतिक पार्टियाँ सत्ता की खातिर वैचारिक मतभेदों के बावजूद भी एकजुट हो जाती हैं ठीक वैसे ही संघ की विचारधारा से असहमति रखने वालों को भी चाहिए कि प्रकृति वंदन के इस अनुष्ठान का हिस्सा बनकर प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण में योगदान दें |

अनुभव बताते हैं कि संघ ने जो भी कार्य हाथ में लिया उसे सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाया है | कन्याकुमारी में समुद्र के बीच विशाल चट्टान पर निर्मित विवेकानंद शिला स्मारक और अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर जैसे प्रकल्प को साकार बनाने में संघ की भूमिका और योगदान किसी से छिपा नहीं है |

शिक्षा, कला, संस्कृति, इतिहास, विज्ञान और अब प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में संघ का आगे आना आश्वस्त करता है | प्राप्त जानकारी के अनुसार संघ राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण हेतु कार्यरत विभिन्न संगठनों के साथ ही शिक्षण संस्थानों को भी इस अभियान में शामिल करने के लिए प्रयासरत है। उसकी संगठन क्षमता को देखते हुए इस कार्य की सफलता सुनिश्चित लगती है। संघ के आलोचकों को भी इस अभियान में सहयोग देना चाहिये क्योंकि इसके साथ देश का भविष्य जुड़ा हुआ है।

लेख़क – रवीन्द्र वाजपेयी