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रासायनिक खेती का प्रकृति एवं मानव जीवन पर दुष्प्रभाव

रासायनिक खेती के मानव जीवन एवं प्रकृति पर भयानक दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं समूचा पंचतंत्र, जीवमंडल वायुमंडल इससे अछूता नहीं है, जहां लगातार बढ़ते यूरिया के उपयोग से जमीन में रिसकर यूरिक एसिड बनने, जल प्रदूषित होने की प्रक्रिया तेजी से जारी है, साथ ही साथ डीएपी उर्वरक के लगातार उपयोग से जमीन में संचित 70% अघुलनशील फास्फोरस के द्वारा मिट्टी कड़ी होती जा रही है एवं मिट्टी की जल धारण क्षमता घटती जा रही है ,साथ ही जमीन का जलस्तर भी घटता जा रहा है एवं मिट्टी के सूक्ष्म जीव नष्ट होने से जमीन बंजर होते जा रही है।

“मिट्टी को मिट्टी तब तक ही कहा जा सकता है जब तक उसमें जीवाणुओं का वास होता है”।

सेंटर फॉर साइंस एवं एनवायरनमेंट की रिपोर्ट के अनुसार देश की 30% जमीन बंजर होने की कगार पर है, दूसरी ओर लगातार घातक रासायनिक कीटनाशकों, खरपतवारनाशाको के उपयोग से पानी में कई घातक रसायन लेड, कैडमियम, आर्सेनिक, मर्करी जैसे हानिकारक तत्वों की मात्रा तय सीमा से 2 से 3 गुना ज्यादा मात्रा में चले गए हैं, साथ ही प्रकृति के मित्र कीट भी नष्ट होते जा रहे हैं, लगातार रासायनिक दवाओं के उपयोग से कई प्रकार की बीमारियां जैसे मानव के पैंक्रियाज में स्थित बीटा सेल को नष्ट करने के कारण डायबिटीज की बीमारी, अस्थमा, ब्लड प्रेशर, कैंसर जैसी बीमारियों का प्रतिशत कई गुना बढ़ गया है, इसके अलावा भोजन में पोषक तत्वों की मात्रा एवं खाने योग्य फल सब्जी का प्रतिशत भी घटता जा रहा है, फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया 2020 की रिपोर्ट में कहा गया है की भारत की 9.5% फल एवं सब्जियां खाने योग्य नहीं है।

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन 2020 के रिपोर्ट अनुसार भारतीय भोजन में 30 साल पहले जैसी ताकत नहीं रही, दालों में प्रोटीन की कमी, मसूर की दाल में 9% प्रोटीन की कमी, टमाटर में 66 से 73% विटामिन बी की कमी, सेब में 60% आयरन की कमी, मूंग की दाल में 6.12% आयरन की कमी, गेहूं में 9% कार्बोहाइड्रेट की कमी, बाजरा में 8.5% कार्बोहाइड्रेट की कमी, आलू में मैग्नीशियम एवं जिंक की कमी देखी गई।

पौधों एवं फसलों में लगभग 90% परागण का कार्य मधुमक्खी करती है, इसका सीधा संबंध खाद्यान्न उत्पादन से है, मधुमक्खियों की जनसंख्या में भारी कमी के कारण 5 से 7 प्रतिशत खाद्यान्न उत्पादन में कमी देखी गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यदि इसी तरह रासायनिक उर्वरक, कीटनाशकों एवं खरपतवारनाशको का उपयोग चलता रहा तो,2040 तक देश की 30% आबादी कैंसर, ब्लड प्रेशर से पीड़ित होगी एवं किडनी, लिवर, डायबिटीज से संबंधित बीमारियां बहुत ज्यादा विकराल रूप ले चुकी होगी।

सभी कारकों के दुष्प्रभाव यही बताते हैं कि रासायनिक उर्वरकों एवं दवाओं के अंधाधुंध उपयोग से भूमि का बंजर होना, मिट्टी में सूक्ष्म जीव की संख्या में कमी होना, पानी का दूषित होना, हवा का दूषित होना, अनाज का विषैला होना, प्रकृति ने मित्र कीट की संख्या में भारी कमी होना, मधुमक्खियों की जनसंख्या में भारी कमी होना, जमीन की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना, पौधों की आत्मरक्षा प्रणाली कमजोर होना, जीव जंतुओं की प्रजातियों का लुप्त होना, यहां तक की प्रसूति महिलाओं के प्रथम दूध की बूंद में भी रसायनों की मात्रा बताती है कि रासायनिक उर्वरक एवं दवाइयों के अंधाधुंध उपयोग ने हमारे समस्त पंचतंत्र, जीव मंडल, प्रकृति एवं मानव जीवन पर कैसे प्रभाव डाला है।

            लेखक
     रविंद्र कुमार हनवत
संपर्क सूत्र- 7692024098