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“भारतीय इतिहास लेखन के पुरोधा : श्रीयुत बाबा साहब आपटे”

अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के मूलाधार एवं प्रवर्तक-श्रीयुत उमाकान्त केशव उपाख्य बाबा साहेब आपटे की जयंती पर शत् शत् नमन है।

जब भारत के गौरवमयी इतिहास और संस्कृति के विरुद्ध पाश्चात्य इतिहासकारों के साथ मिलकर एक दल विशेष के परजीवी इतिहासकार और कुत्सित विचारधारा के संपोषक वामपंथी इतिहासकार – विष वमन कर रहे थे, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से श्रीयुत बाबा साहेब आपटे ने इन सभी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।

श्रीयुत बाबा साहेब आपटे संस्कृत, मराठी, हिंदी एवं इतिहास के प्रकाण्ड विद्वान्, भारतीय-संस्कृति के मनीषी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रथम प्रचारक एवं उसके अखिल भारतीय प्रचारक-प्रमुख थे। वह एक मौलिक चिन्तक एवं विचारक थे।

भारतीय जीवन-मूल्यों, आदर्शों एवं सांस्कृतिक विशिष्टताओं के वह जीवन्त प्रतीक थे। आप वेदों , पुराणों, रामायण, महाभारत के साथ भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के गम्भीर अध्येता थे। उनकी मान्यता थी कि जब तक हम अपने स्वत्व को नहीं समझेंगे, तब तक इतिहास-बोध और राष्ट्र-बोध से वंचित रहेंगे।

बाबा साहेब आपटे यह भी धारणा थी कि जब तक विदेशियों द्वारा रचित विकृत इतिहास का समूलोच्छेदन कर सही इतिहास का लेखन प्रारम्भ नहीं होता, तब तक राष्ट्रीय अस्मिता को सदा ख़तरा बना रहेगा। इसलिए उनकी तीव्र अभिलाषा थी कि आदि काल से लेकर वर्तमान तक का देश का सच्चा इतिहास लिखा जाए जिससे भारत की गौरवशाली परम्परा और जीवन का वास्तविक परिचय हो सके और विलुप्त सही तथ्य खोजे जाएँ।

अतएव उन्होने संघ-कार्य के लिए देश के अपने लगभग 42-वर्षीय सतत् और विस्तृत प्रवास में विदेशी इतिहासकारों, उन पर आश्रित एक दल विशेष के परजीवी इतिहासकारों और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा विकृत किए गए भारतीय-इतिहास को परिष्कृत कर उसका पुनर्लेखन करने के लिए इतिहास के अनेक विद्वानों को प्रेरित किया। इसके अतिरिक्त वह संस्कृत के पण्डितों से भी सम्पर्क कर उनसे विचार-विमर्श कर निवेदन करते थे कि संस्कृत को आमजन की बोलचाल की भाषा बनाने के लिए व्याकरण पर अधिक बल न देते हुए संस्कृत सिखाने के लिए एक नयी और सरल पद्धति का निर्माण करना चाहिये।

श्री बाबा साहेब आपटे का जन्म 28 अगस्त, 1903 ई. यवतमाल (महाराष्ट्र) में हुआ था। अपने प्रारम्भिक जीवन में वह कुछ दिन घामण गाँव (महाराष्ट्र) में शिक्षक रहे, किन्तु पढ़ाते समय राष्ट्रवाद का पुट देते रहने तथा लोकमान्य तिलक की जयन्ती मनाने पर देशद्रोही करार दिए जाने के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया है, तदुपरांत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने।

1927 ई. में वह प्रथम संघशिक्षा वर्ग में बौद्धिक विभाग के प्रमुख रहे। सन् 1930 ई॰ में सत्याग्रह-आन्दोलन में संघ-संस्थापक डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार की अनुपस्थिति में संघ-शाखाओं में सुचारु रुप से चलाने का दायित्व भली-भाँति पूरा किया।

सन् 1931 में वह संघ के प्रथम प्रचारक होकर निकले। अगले दो वर्ष तक नागपुर और विदर्भ में प्रवास के बाद अन्य प्रांतों में भी जाने लगे। गाँव-गाँव पैदल घूमकर उन्होंने संघ-कार्य का विस्तार किया। 1932 ई॰ में सभी नौकरियों से त्यागपत्र दे दिया और संघ के प्रति पूर्ण समर्पित हो गये। 1937 से 1940 तक सम्पूर्ण भारत में प्रवास किया।

अगस्त, 1942 ई॰ में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान बिहार का दौरा किया। 33 श्लोकोंवाले ‘भारतभक्तिस्तोत्र’की रचना की साथ ही अन्य रचनायें भी अत्यंत श्लाघनीय हैं। मृत्युपर्यंत (26 जुलाई 1972) आपने भारतीय इतिहास और संस्कृति पल्लवित और पुष्पित किया। आपकी तपस्या सफलीभूत हुई सन् 1973 को श्रीयुत मोरेश्वर नीलकंठ (मोरों पंत) पिंगले ने “बाबा साहब आपटे स्मारक समिति” की नींव रखी और अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना का बीजारोपण हुआ।

लेख़क – डॉ. आनंद सिंह राणा
संपर्क – 7987102901