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भटके राही को राह दिखाने, बेसहारों को सहारा देने साक्षात आते हैं ‘बसामन मामा’

सिरमौर। निप्र कौन कहता है कि दुनिया में ईश्वर नहीं है. देवत्व शक्ति नहीं है. यह भारतवर्ष देवताओं एवं फकीरों की पावन पवित्र स्थली रही है और आज भी है। तो वही हिंदुस्तान की हृदय स्थली मध्य प्रदेश के ह्रदय कहे जाने वाले विंध्य क्षेत्र में आज भी ऐसे पवित्र स्थल हैं जहां देवत्व शक्ति का जाने मात्र से अनुभव किया जा सकता है।

हालांकि यह भी सत्य है कि विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता। क्योंकि मनुष्य के अंदर आत्मा का वास है और आत्मा ही परमात्मा का साक्षात रुप है। से दूसरे शब्दों में विश्वास भरोसा रूपी इस पर भी कह सकते हैं। आत्मा सदैव पवित्र रही है और पवित्र आत्मा ने परमात्मा का सच्चा रूप धारण कर समाज, देश के लिए कुछ करने को अगर ठान लिया तो वे शरीर नष्ट होने के बाद भी ईश्वरी सत्य के रूप में सदैव हमारे आस पास रहकर हमारी मनोकामना को पूर्ण करती है। साथ ही हमें भटक जाने पर सत मार्ग दिखाने का भी कार्य करती है।

ऐसा ही कुछ वर्तमान में है सिरमौर जनपद मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर ग्राम पंचायत पुर्वा स्थित “बसामन मामा” धाम। जहां कोई भी दिन दुखिया उनके धाम से खाली हाथ नहीं जाता। और दिन रात में कभी भी भटका हुआ व्यक्ति भटकता नहीं बल्कि उसे साक्षात बसामन मामा रास्ता दिखाते हैं। सच ही है कि अपने नाम के अनुरूप लोगों की इच्छा शक्ति को पूरा कर बसामन मामा सभी के मन में, दिलों में, दिमाग में बसे हैं।

जिला प्रशासन को चाहिए कि ऐसे पवित्र सौहार्द को कायम रखने वाले पवित्र स्थल के लिए कुछ सार्थक पहल करें। भटके हुए राही को मार्ग दिखाना. बेसहारों का सहारा बनना. परेशान व्यक्ति की परेशानियां क्षण भर में दूर करना. सब करिश्माई घटना वर्तमान समय या यूं कहें कि कलयुग में हो तो निश्चित ही आश्चर्य लगता है लेकिन यह है सच…पूर्ण सत्य ..!! यह कहीं और नहीं सिरमौर जनपद कार्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर सेमरिया मार्ग पर पूर्वा पंचायत अंतर्गत बसामन मामा धाम में देखा जा सकता हैl

यह तो सत्य है कि विंध्य क्षेत्र एवं इसकी मिट्टी ने जहां एक तरफ विद्वानों को जन्म दिया तो वही इस पावन पवित्र धरा पर खेलकूद कर बड़े हुए क्रांतिवीरो ने आजादी की लड़ाई में अपनी महती भूमिका निभाते हुए शहीद हुए औरतों और यही के इतिहासकारों कलाकारों ने देश के अलावा विदेशों तक अपनी काबिलियत का पताका फहराया। इसी तरह समय-समय पर जब-जब विंध्य की धरा पर आतताईयों का दबाव बढ़ा और जनता त्राहि-त्राहि कर उठी तब इश्वर स्वत: मनुष्य के रूप में सांसरिकता को आम आदमी की तरह झेलते हुए चमत्कारिक ढंग से प्राणो को त्यागने के बाद भी अपनी आत्म शक्ति के जरिए लोगों के दुख दर्द को चुटकी बजाते निपटाते रहे।

ऐसे ही देव पुरुष के रूप में आज से लगभग 932 वर्ष पूर्व वर्तमान में सेमरिया नगर पंचायत के ग्राम कुम्हरा खारा में अत्यंत गरीब गर्ग (शुक्ल) परिवार में जन्म लिया बसामन मामा ने। अपने नाम के अनुरूप अपने तथा आसपास के ग्रामीण अंचलों के लोगों के मन में अपनी अमिट छाप छोड़े हुए थे, धार्मिक प्रवृति के देव पुरुष बसामन मामा के पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था।

परिवार में मात्र मां और वे स्वत: थे। बताया जाता है कि धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण अपने घर के सामने एक पीपल का पेड़ उन्होंने लगाया और वही पूजा पाठ और उस पवित्र वृक्ष की सेवा में लगे रहते थे। उस समय सेमरिया के इलाकेदार सवाई लाल सिंह जो सेमरिया स्थित गढी चित्र सारी में रहते थे, उनकी एक गढी जहां वर्तमान में बसामन मामा का पवित्र धाम है वहां पर भी थी। क्योंकि रियासत के समय के इलाके दार थे इसलिए उनके पास ऊंट हाथी घोड़े पर्याप्त मात्रा में थे।

एक बार ऊंट और हाथियों को चराने के लिए इलाकेदार के कारिंदे निकले और कुम्हरा खारा गांव पहुंचे तथा जिस पीपल के वृक्ष को बसामन मामा ने लगाया था उसकी पत्तियां तोड़ने लगे तभी बसामन जी वहां पहुंचकर ऐसा करने से मना किया जिस पर कारिंदो ने कहा- जानते हो तुम किसके काम टांग अड़ा रहे हो ,इलाकेदार सेमरिया के। जिस पर बसामन मामा ने कहा कुछ भी हो जिस वृक्ष को मैंने पाल पोस कर बड़ा किया उसे हरगिज नहीं काटने दूंगा चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े और वे लोग चले गए, गढी पहुंचकर इलाकेदार को इस संबंध में जानकारी दिया जिस पर उन्होंने शांत रहने की बात कही और बात आई गई हो गई।

इसी दरम्यान बसामन मामा जी का विवाह पूर्वा पंचायत के पश्चिम स्थित थनवरिया गांव में लगी और वे शादी कराने गए। इसी मौके को ताड़कर इलाकेदार के कारिंदे ने बसामन जी के घर के सामने स्थित पीपल के पत्तों को छठवाकर ऊट हाथियों को खिलवा दिया। उधर बसामन जी डोली में बैठकर जब वापस आए और डोली से उतरते ही उनकी नजर जब पेड़ पर पड़ी तो उन्हें काफी दुख लगा और इसे किसी पर जाहिर नहीं होने दिया।

शांत भाव से बरात आने की रस्म यानी दूल्हा दुल्हन का परछन करवाया और शादी का लिबास पीला वस्त्र (जोड़ा जामा) पहने बगल में कटार खोसे हुए मां के पास गए और बोले कि आप मेहमानों को खाना खिलाओ और मैं थोड़ा काम निपटा कर आता हूं और इस तरह वर्तमान के पवित्र धाम स्थित गढी़ भटौउहां बहरा (छोटी नदी) को पार कर पहुंचे। उस समय इलाकेदार सेमरिया के चित्रसारी गढी़ में ना रहकर यही पर थे।

बसामन जी वहां पहुंचकर गढी़ के कारिंदे जो घाट से पानी भर रहा था, से कहा- कहां है इलाकेदार तो उसने कोई तवज्जो नहीं दिया गढ़ी के अंदर चला गया, दोबारा पुनः पानी लेने आया तो फिर उन्होंने पूछा और तब तक काफी क्रोधित मुद्रा में आ चुके थे तथा कहा कि जाकर बता दो कि बसामन आए हैं, हमारा पीपल कटवाकर इलाकेदार ने अच्छा नहीं किया। जिस पर वह कारिंदा जाकर इलाकेदार को बताया तो उन्होंने कहा-जाओ धक्के मार कर बाहर कर दो, कारिंदा लौटा तो देखा कि बसामन जी ने कटार से अपने आप को मार लिया है। यह देख कर भाग कर पुनः गढी के अंदर जाकर घटना को बताया जिस पर इलाकेदार ने कहा-जाओ उसे जला दो। इधर घाट के उस पर उनको जलाकर कारिंदे लोग लौटे तो देखा कि बसामन जी सशरीर पुन: घटना स्थल पर खड़े हैं उस समय इलाकेदार खाना खाने जा रहे थे, कारिंदों ने जाकर बताया कि जिसे हम लोग जलाकर आए वह साक्षात वही कपड़े पहने वही खड़ा है, तब इलाकेदार ने उन्हे डाट डफट कर भगा दिया।

मगर अब इलाकेदार के वंश का सर्वनाश होना तय था क्योंकि बसामन साक्षात ब्रम्ह के रूप में आ गए थे (यह समय था वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी का) इलाकेदार का खाना उस समय कीड़ों में तब्दील हो गया, किसी तूफान के जैसे पूरी गढी़ ढह गई और इलाकेदार सहित अन्य परिवार वही खत्म हो गया और बसामन निकल पड़े गढीय के अन्य लोगों का नामोनिशान मिटाने, उन्हें यह पता था कि इलाकेदार की लड़की थनवारिया में ब्याही है जहां स्वत: बसामन जी ब्याहे गए थे वह वहां चले कि उसकी भी समाप्ति करूंगा।

दूसरी तरफ गढी़ का सर्वनाश साक्षात ब्रम्ह बसामन के द्वारा किए जाने की खबर सुन वह अपने इकलौते पुत्र को लेकर चल पड़ी क्योंकि वह लड़की काफी चतुर थी उसने अपने बच्चे को समझाया कि जो भी पीला वस्त्र पहने मिले उससे यही कहना-मामा कहां जा रहे।

आखिरकार बसामन जी एवं इलाकेदार की पुत्री आमने सामने पहुंच इतने में ही बच्चे ने कहा मामा कहां जा रहे हो, जिस पर बसामन जी शांत हो गए और बसामन से बसामन मामा बन कर उसे अभयदान देकर पुर्वा स्थित अपनी बहन के यहां पहुंचकर बहन को खिचड़ी देते हुए कहा कि अब मेरे उस अंतिम संस्कार के स्थली गढी़ के परकोटे की रक्षा आपके ही वंशज करेंगे और मैं जन्म जन्मांतर तक यहां के भटके राही को राह दिखाऊंगा, बेसहारों का सहारा बनूंगा, परेशान लोगों की परेशानियां दूर करूंगा और यह कहकर अदृश्य हो गए। और तभी से अनवरत यहां पर पुर्वा के त्रिपाठी परिवार के लोग बसामन मामा के स्थली का रखरखाव करते आ रहे हैं। यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। साथ ही आसपास के हर जाति चाहे हिंदू हो या मुस्लिम सभी के आराध्य बनकर बसावन मामा रक्षा करते चले आ रहे हैं।चाहे शादी हो गया किसी के बच्चा हुआ हो य अन्य कोई पवित्र कार्य हो वह किसी धर्म का हो सबसे पहले बसामन मामा के धाम जाकर आशीर्वाद लेने नहीं भूलते।

हमारे नव स्वदेश सिरमौर प्रतिनिधि पत्रकार धर्मेंद्र पांडेय ने न वहां जाकर वहां की पवित्रता और लोगों की आस्था को देखकर अपने को भाग्यशाली पाया कि ऐसे पवित्र धाम पहुंचने का अवसर मिला। उन्होने आसपास के ग्रामीण अंचलों में पहुंचकर यहां की महत्ता पूंछा तो लोगों ने बताया कि चमत्कार तो यहां इतने हुए जिनती संभव नहीं। आज भी धाम के घाट पर कोई दुर्घटना नहीं हुई। अगर रात दिन किसी भी वक्त कभी भी कोई व्यक्ति भटक गया हो तो स्वत: बसामन मामा मानव का रूप धारण कर उसे रास्ता दिखा देते हैं। किसी भी परेशानी से परेशान अनेकों लोगों ने यहां आकर मनौती मान अपनी इच्छा पूर्ति को पूरा पाया। लोगों ने बताया कि आज जब भी कोई आतताई किसी निरीह के खेत को जबरदस्ती जोतने य काटना प्रयास करता है तो साक्षात नाग देव का रूप धार बसामन मामा रक्षा के लिए खड़े हो जाते हैं और आतताई मुंह की खानी पड़ती है।

लोगों ने यह भी बताया कि यही नजदीक गांव मऊ के नपित परिवार का 10 वर्षीय लड़का मित्रों के साथ ही घाट पर नहा रहा था,यह घटना 1993 की है। नहाते नहाते पानी में डूब गया और मृत अवस्था में पानी के अंदर 24 घंटे पड़ा रहा जिसकी सूचना मिलने पर परिवार के लोग घाट पहुंचकर ढूंढने लगे और उसमें बालक की लाश मिली जिसे उठाकर सीधे बसामन मामा के चौरा पर रख दिया गया, 2 घंटे बाद बालक स्वत: है उठ गया। मामा के इस चमत्कार से अभिभूत वह नापित परिवार आज भी वैशाख महीने में 1 हफ्ते का विशाल भंडार जिसमें शुद्ध देसी घी के पकवान बनते हैं, करता है और उस दरम्यान हजारों लोग प्रतिदिन भंडारे का प्रसाद 7 दिनों तक ग्रहण करते हैं। ऐसी अनगिनत चमत्कारिक घटनाएं हैं जो यह सिद्ध करती है कि बसामन मामा ने जो कुछ अंत समय में कहा उसे आज ब्रम्ह शक्ति के रूप में पूरा कर रहे हैं।

इस पवित्र धाम पहुंचने पर अपने आप में एक अजीब तरह की सुखद अनुभूति होती है। यहां पर वैसे तो प्रत्येक दिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है लेकिन सोमवार गुरुवार को विशेष रूप से दूरदराज से लोग आकर पूजा अर्चना करते हुए सवासेर खिचड़ी जनेऊ नारियल चुनरी धूपबत्ती चढ़ाते हैं।

इस धाम की विशेष बात यह है कि प्रसाद बसामन मामा को आप स्वत: चढ़ा सकते हैं उपस्थित पंडा आपकी पूजा में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे जो आप उन्हें देंगे वही लेंगे आपसे मांगेंगे नहीं। वहां कथा सुनाने वाले पुजारी कथा सुनाएंगे कितना क्या आपको देना है यह आप जाने या फिर आराध्य बसामन मामा जाने।

यहां पर गढी के परकोटे के अंदर बसामन मामा का सिद्ध स्थल और शंकर जी विराजमान है तो वहीं सिद्ध स्थल के सामने वासुदेव अर्थात पीपल का वृक्ष है साथ ही लगा हनुमान जी का एक मंदिर भी है। यहां पर एक पीपल का वृक्ष और इमली एक चिल्ला का वृक्ष इस पवित्र धाम में लगा हुआ जो भक्त गणों को शीतलता प्रदान करता है। गढी़ के नेस्तनाबूद होने के बाद गढी के अवशेष के रूप में गढी की सीढ़ियों स्पष्ट दृष्टव्य हैं।

बसामन मामा की सेवा में लगे पंडों (पुजारियों) ने बताया कि हमें सिर्फ इनकी सेवा से मतलब है, भक्तगण आते हैं मनोवांछित फल पाकर जो कुछ चढ़ाते हैं उसी से हम अपना जीवन यापन कर रहे हैं हम किसी से कुछ नहीं मांगते। पंडा व्यथित होते हुए कहा कि शासन को इस पवित्र स्थल को शासकीय घोषित कर यहां के रखरखाव जैसे यात्री प्रतीक्षालय पेयजल की व्यवस्था विद्युत की व्यवस्था करनी चाहिए,मगर ऐसा कुछ भी पहल नहीं हो रहा है।

श्री पांडेय ने भ्रमण के दौरान पाया कि बसामन मामा के पवित्र धाम को भी अपनी निजी संपत्ति बताने की लगातार होड़ लगी हुई है। जिला प्रशासन एवं धर्मस्व समिति के अध्यक्ष जिला कलेक्टर को चाहिए कि ऐसे पवित्र एवं सिद्ध स्थल के अस्तित्व पर लग रहे प्रश्न पर आवश्यक सार्थक पहल करें जिससे यहां नि: स्वार्थ भाव से बसावन मामा की सेवा में बैठे पुजारियों के परिवार का भी भरण-पोषण हो और इस पवित्र स्थल का भी रख रखा होता रहे।साथ ही जातिवाद एकता से परे हटकर सांप्रदायिक सौहार्द का अनोखा संगम जो यहां स्थित घाट की नदी में प्रवाहित सप्तधारा जो इस स्पष्ट अलग-अलग एक साथ प्रवाहित होती दिखती है ,के समान कायम रहे ऐसा प्रयास किया जाना बेहद आवश्यक है।