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“स्व के लिए आत्मोत्सर्ग का अनुष्ठान : गोंडवाना का जौहर”

!! वीरांगना रानी पद्मिनी और जौहर दिवस पर सादर समर्पित !!

माँ सती ने स्वयं महादेव के सम्मान और शौर्य तथा अपने आत्म सम्मान के लिए – जौहर ही तो किया था। वही परंपरा जौहर व्रत के रुप में भारतीय वीरांगनाओं ने शिरोधार्य की। यह प्राणोत्सर्ग का महायज्ञ- न केवल भारत वरन् विश्व के इतिहास का भारतीय वीरांगनाओं के शौर्य, त्याग, पवित्रता, सतीत्व, स्वाभिमान स्वतंत्रता और अमर प्रेम का अद्भुत एवं अद्वितीय अध्याय है।

धर्मांध, व्याभिचारी और क्रूर तथाकथित सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विरुध्द आज 26 अगस्त 1303 को वीरांगना रानी पद्मिनी ने 16 हजार वीरांगनाओं के साथ – “हर हर महादेव” व “जय भवानी” का उद्घोष करते हुए जौहर किया था। इस तरह अलाउद्दीन खिलजी जीत कर भी पराजित हुआ था। जौहर का इतिहास बहुत प्राचीन है। सिकंदर के आक्रमण के समय भी स्व के लिए वीरांगनाओं ने आत्मोत्सर्ग किया था। इस महान् अनुष्ठान की परंपरा के आलोक में गोंडवाना के जौहर का गौरवशाली इतिहास प्रस्तुत है।

स्वतंत्रता स्वाभिमान और शौर्य की देवी वीरांगना रानी दुर्गावती का आत्मोत्सर्ग 24 जून 1564 को बारहा ग्राम की नर्रई के मैदान में हुआ। नर्रई के महासंग्राम में वीरनारायण घायल हो गए थे। महारथी सेनापति अमात्य आधार सिंह, वीर नारायण को लेकर चौरागढ़, गोंडवाना की राजधानी चले गए और वही पर उनका राज्याभिषेक किया।

रानी दुर्गावती का महिला दस्ता भी कमलावती और पुरा गढ़ की राजकुमारी के साथ चौरागढ़ को रवाना हो गया था। जबलपुर में आसिफ खान दो महल रुका और उसने जबलपुर को कंगाल कर दिया और गढ़ा का खजाना भी लूट लिया। वर्षा काल के उपरांत आसिफ खान गोंडवाना की राजधानी चौरागढ़ की ओर बढ़ा, क्योंकि वहां पर गोंड राजाओं का द्वारा संग्रहीत खजाना थाह चौरागढ़ पर विजय प्राप्त करना आसान नहीं था क्योंकि वह अभेद्य किला था।

राजा वीरनारायण और अधार सिंह ने शीघ्र ही चौरागढ़ की किलेबंदी की और निरीक्षक भोज कायस्थ और मियां मियां बुखारी रूमी को नियुक्त किया। आसिफ खान मुगल सेना और तोपखाने के साथ सितंबर माह में 1564 में चौरागढ़ पहुंच गया। उसने चौरागढ़ पर 3 बार आक्रमण किया परंतु राजा वीरनारायण ने उसे परास्त कर दिया।

धूर्त आसिफ खान ने षडयंत्र पूर्वक एक सामंत से चौरागढ़ के बारे में गुप्त जानकारी एकत्र कर, किले की कमजोर भागों पर तोपखाने से हमला कर दिया। इसी के साथ भयानक युद्ध आरंभ हो गया। वीरनारायण और अधार सिंह ने इस बात का अनुमान लगा लिया कि अब विजयश्री मुश्किल होगी इसीलिए उन्होंने रनिवास में जाकर कुल की ललनाओं को जौहर करने की सलाह दी। जौहर का सारा कार्यभार राजा वीरनारायण ने भोज कायस्थ और मियां बुखारी रुमी को सौंपा।

किले के अंदर एक बड़ी चिता तैयार की गई जिसमें लकड़ियां और घी आदि डाला गया और यह तय हुआ कि महिला दस्ता की पराजय के उपरांत जौहर किया जाएगा। इसके उपरांत वीरनारायण और अमात्य अधार सिंह गोंड सैनिकों के साथ किले के उत्तरीय द्वार की ओर निकल कर महासंग्राम किया और स्व के लिए अपनी पूर्णाहुति दी। किले के अंदर महिला दस्ता ने रानी दुर्गावती की बहन कमलावती और वीरनारायण की होने वाली है,

सहधर्मचारणी पुरा गढ़ की राजकुमारी के नेतृत्व में मोर्चा संभाला परंतु दोनों वीरांगनाओं बलिदान हुआ। यह समाचार भोज कायस्थ और मियां बुखारी रुमी को मिला तो उन्होंने जौहर का आव्हान किया तब राजपूत और गोंड वीरांगनाओं ने अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए अपने बच्चों तक को लेकर चिता में बैठ गईं। जिन स्त्रियों ने जौहर करने में भय दिखाया उन्हें भोज कायस्थ ने तलवार से शहीद कर दिया। 4 दिन तक चिता जलती रही और इस प्रकार स्व की भावना को लेकर पूर्णाहुति हुई। यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रकारांतर से नीचा दिखाने के लिए मुगल लेखक और उनके आधार पर लिखे परजीवी भारतीय इतिहासकारों ने इतिहास में यह लिखा है कि कमलावती और पुरा गढ़ की राजकुमारी जौहर नहीं कर पाई थी और उन्हें आसिफ खान ने मुगल रनिवास में भेज दिया था यह पूर्णतया असत्य है और पूर्वाग्रह से ग्रसित है क्योंकि दोनों वीरांगनाओं ने मुगलों से स्व की लड़ाई लड़ते हुए अपनी पूर्णाहुति दी थी।

लेखक:- डाॅ. आनंद सिंह राणा
संपर्क सूत्र – 7987102901