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भारत का गौरवशाली अतीत

।।ॐ।।

भारतवर्ष का अतीत अत्यंत गौरवशाली रहा है। जिसकी गाथा अद्वितीय, अनुपम, अतुल्य व अनंत है। भारत विश्व का सनातन- पुरातन व विश्व का प्रथम राष्ट्र है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्रथम संस्कृति है। “सा प्रथमा संस्कृति विश्ववारा” – यजुर्वेद। “जब दुनिया में सब सोए हुए थे, तब भी जगा था यह देश। भारत वर्ष प्राचीन काल में जगतगुरु -विश्वगुरु रहा है।” (-पं श्रीराम शर्मा आचार्य)

संपूर्ण विश्व में ज्ञान- विज्ञान- दर्शन की अनेकों धाराएं भारत से फूटी। भारतीय ऋषियों ने “कृन्वंतो विश्वमार्यम्” व “सर्वे भवंतु सुखिनः” संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए संपूर्ण विश्व में संचार किया। कौडींय ऋषि- कंबोडिया ,अगस्त- आग्नेय दिशा में, शुक्राचार्य -अरब प्रदेश, मय / अनाम व आयंगर – अमेरिका, बोधिधर्मन -चीन गए। (ज्ञान- विज्ञान ,संस्कृति के प्रसार हेतु।)

भारतवर्ष के ऋषियों ने शरीर को यंत्र बनाकर व संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रयोगशाला बना कर लाखो वर्ष तक रिसर्च (अध्यात्मिक साधना) किया,ब्रह्मांड के रहस्यों को जाना। ज्ञान -विज्ञान-दर्शन, ‘जीवन जीने की कला’, योग ,आध्यात्मिक विधाओं को प्राप्त किया। पारा-अपरा विधा का आविष्कार किया। “अंतर्ज्ञान (अध्यात्म) द्वारा ही मानवता प्रगति की वर्तमान दशा तक पहुंची है।” – महर्षि अरविंद

संसार का सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद है। सृष्टि का संपूर्ण ज्ञान वेदों में सूत्र (ऋचाओं) के रूप में भरा हुआ है। वेदों का ज्ञान” द ला ऑफ यूनिवर्स “(ब्रह्मांड के साश्वत नियम/ सनातन धर्म) है। वेद में गायत्री मंत्र, सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन -नासदीय सूक्त में आता है। 64 कलाओं (विधाओ), संगीत, मंत्र -तंत्र- यंत्र विज्ञान का उल्लेख आता है। संपूर्ण विश्व के ज्ञान-विज्ञान के सूत्र का (केंद्र) वेद ही है। वेद अपौरुषेय हैं। ईश्वरी वाणी/ज्ञान है।” संसार में जो कुछ भी है ,सब वेदों में है और जो वेदों में नहीं है, वह कहीं नहीं है।” -महर्षि दयानंद सरस्वती

भारत में प्राचीन काल (सतयुग -त्रेतायुग) में मंत्र शक्ति से चलने वाले दिव्यास्त्र -ब्रह्मास्त्र, पशुपतास्त्र ,नारायणास्त्र ,अग्निबाण ,चक्र सुदर्शन ,त्रिशूल जैसे भीषण संहारक अस्त्र थे। अक्षय त्रोनीर (तरकस) थे। दिव्य रथ थे जो जल -थल- नभ में समान गति से चलते थे। रामायण-महाभारत, पुराणों में वर्णन आता है। महाभारत में द्रोपती के पास ‘अक्षय पात्र’ का वर्णन आता है। रामायण में भगवान श्रीराम लक्ष्मण व माता सीता को ऋषियों ने ‘दिव्य वस्त्र ‘भेंट किए थे। जो 14 वर्ष तक नॉ मर्लीन हुए, न हीं फटे थे।

रामायण काल में नल- नील नामक बंदर चीफ इंजीनियर (आर्किटेक्ट) थे। जिन्होंने सागर पर सेतु पत्थरों से बनाया था। मात्र 4 दिन में, (वह भी सागर पर किसी नदी पर नहीं) जो 100 योजन लंबा (1 योजन =8 km) था। रामायण काल में ‘पुष्पक विमान’ मन की गति से आकार वा चाल तय करने वाला था। भगवान श्रीराम की तरकस में ऐसे- ऐसे तीर थे जिनका सामना विश्व में कोई नहीं कर सकता था। हनुमान जी हिमालय 3200 किलोमीटर से पर्वत -‘संजीवनी बूटी ‘लेकर उड़ते हुए लंका पहुंचे। मात्र कुछ घंटों में। बाली को आधी शक्ति खींचने की विधा में महारथ थी, तो सुग्रीम विश्व के भूगोल के ज्ञाता थे। जटायु ज्योति शास्त्री थे, जामवंत जी अति ज्ञानी -शक्तिमान थे। रामायण काल में प्रजा को किसी प्रकार का दैहिक -दैविक -भौतिक कष्ट (ताप) नहीं था।

महाभारत काल में अर्जुन के पास भी अनेकों दिव्यास्त्र थे। जिनसे वह तत्काल (क्षण भर) में गंगा को प्रकट कर देते थे। (बाणगंगा -शहडोल वनवास काल का उदाहरण है) अग्नि वर्षा करना ,तूफान ला देना, बाणौ से पुल बना देना, पहाड़ को चूर- चूर कर देना इत्यादि उदाहरण है। भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण योग से कहीं भी प्रकट हो जाते थे। अनेकों प्रकार से भक्तों,संतो ,सज्जनों का कल्याण करते थे। द्वारकापुरी में एक ऐसा सभागार था जिसमें ना भूख, ना प्यास न गर्मी लगती थी। (वह AC वातानुकूलित से भी अधिक उन्नत प्रणाली थी)। श्रीकृष्ण के पास एक ऐसी विधा थी जिससे उन्होंने गुरु के पुत्र को सारी पृथ्वी पर खोजने के पश्चात ना मिलने पर यमलोक से उसकी आत्मा को लेकर आए व उसके मृत शरीर की राख से उसे वैसा ही सही का निर्माण कर (जीवित कर) गुरु माता को दक्षिणा में सौंपा था।

महर्षि अगस्त समुद्र को ही पी गए थे। महर्षि भरद्वाज विमान विधा के विशारद (ज्ञाता) थे। यंत्रसर्वस्व मे 32 प्रकार के विमानों का वर्णन आता है। महर्षि याज्ञवल्क्य- यज्ञ विज्ञान, चरक ,सुश्रुत- आयुर्वेद के ज्ञाता थे। महर्षि वाल्मीकि आदिकवि व रामायण के रचयिता थे। महर्षि पतंजलि -योग विज्ञान के प्रणेता थे। (बगैर पांच पैसा खर्च किए स्वस्थ रहने का विज्ञान)। विश्वकर्मा-देवताओं के चीफ आर्किटेक्ट थे। चरक संहिता में 350 प्रकार के यंत्रों का वर्णन आता है । जिसमें बाल को खड़ा करके फाड़ देने जैसा यंत्र भी था। ह्रदय ,आंख इत्यादि सभी अंगों की सर्जरी की जाती थी। भरतमुनि- नाट्यशास्त्र ,महर्षि श्वेतकेतु -परिवार व्यवस्था (फैमिली सिस्टम) के निर्माता थे।

पुराणों में ज्ञान -विज्ञान के अनेकों चमत्कृत करने वाले उदाहरण ,प्रसंग भरे पड़े हैं। भारत ने जीरो 0, पाई का मान , दशमलव, 9 ग्रह, 27 नक्षत्र, 12 राशियां, 7 लोक ,14 भुवन ,अंक प्रणाली ,पृथ्वी से सूर्य की दूरी, नोकाशास्त्र, वास्तु विज्ञान, हस्तरेखा विज्ञान ,योग विज्ञान, युद्ध शास्त्र ,विमान शास्त्र, मानव शास्त्र , न्याय की दिव्य प्रणाली, आर्ट ऑफ लिविंग “जीवन जीने की कला”, दर्शनशास्त्र ,धातु विज्ञान, विद्युत शास्त्र ,मैकेनिज्म, कोशितकि विज्ञान (क्लोनिंग साइंस), वस्त्र उद्योग, कालगणना ,खगोल विज्ञान, स्थापत्य शास्त्र, रसायन ,वनस्पति ,कृषि विज्ञान ,प्राणी विज्ञान, ध्वनि विज्ञान ,लिपि विज्ञान विश्व को दी।

इलेक्ट्रिक सेल का वर्णन -‘अगस्त्य संहिता’ मे, प्रकाश की चाल का वर्णन -(ऋग्वेद 1-50 -9 सायणाचार्य) ,एस्टॉनोमिकल यूनिट AU -आर्यभट्ट ने विभिन्न ग्रहों की दूरी मापन, गुरुत्वाकर्षण- भास्कराचार्य, – सिद्धांत शिरोमणि ,नागार्जुन पारे से सोना बनाते की विधा ज्ञाता, ढाका की मलमल (साड़ी को एक माचिस की डिब्बी में बंद) कर लिया जाता था। रक्तबीज -क्लोनिंग साइंस का उदाहरण है। ‘चितृग्नि’ – प्राचीन दूरदर्शन यंत्र था। गणेश जी के सिर में हाथी का सिर प्रत्यारोपण (जोड़ना) संसार के सबसे बड़े/ प्रथम शल्य चिकित्सक शिव (शंकर जी) द्वारा किया गया , मृत संजीवनी विद्या -शुक्राचार्य के पास थी।

1760 में भारत की जी. डी .पी. विश्व की कुल जीडीपी का 30% थी ।
भारत में अंग्रेजी शासन काल मे 18 वीं शताब्दी में मध्य भारत / (सी. पी. एन्ड वरार) रायगढ़ के लोहारों द्वारा जो लोहा स्वयं की कच्ची भत्टीयो में बनाया जाता था। वह इंग्लैंड के उत्कृष्टतम लोहे से भी उत्कृष्ट था। इस पर अंग्रेजी रेजीड़ेएंट ने इंग्लैंड की सरकार को पत्र लिखकर विचार करने का अनुरोध किया था। दिल्ली महरौली का लौह स्तंभ हजारों वर्षों से खुले आकाश मे खड़ा है, जिस पर आज तक जंग नहीं लगी है। यह धातु विज्ञान का श्रेष्ठतम उदाहरण है। एलोरा का कैलाश मंदिर, कोणार्क का सूर्य मन्दिर, विश्व में अद्वितीय है। दक्षिण भारत में वृद्धेश्वर मंदिर ,मीनाक्षी मंदिर भारतीय वास्तुकला के अनुपम, अद्वितीय उदाहरण है। भारत के गौरवशाली अतीत की गाथा अनंत है। इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने कहा था- “I am proud to call myself a hindu. “मुझे अपने आपको हिन्दु कहलाने में गर्व होता है।”

       लेख़क
डॉ. नितिन सहारिया
87208 57296