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“सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की कालजयी वीरांगना : झलकारी बाई कोली”

डॉ. आनंद सिंह राणा

 

“जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झाँसी की ही नारी थी।
गोरों से सिखाई थी,
इतिहास में झलक रही थी,
वह तो भारत की ही नारी थी।”

~ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण..मातृरूपेण संस्थिता..झलकारी बाई रूपेण संस्थिता..नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:। ऋग्वेद के देवी सूक्त में मां आदिशक्ति का उपदेश है, “अहं राष्ट्री संगमनि वसूनां, अहं रुद्राय धनुरा तनोमि”… यानि मैं ही हूं राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूं, और मैं ही रुद्र के धनुर्धर पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूं। हमारे तत्वज्ञ ऋषि मनीषा का उषा प्रतिपादन वस्तु: स्त्री शक्ति की अपरिमिता का द्योतक है, जिसका स्वरूप लोकालोकित में महान वीरांगना सोमारि बाई है। है। लक्ष्मीबाई की वीर गाथा का जब भी स्मरण करो तो क्यों उन्हें माता की महान वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई का अक्षर दिखता है, वही देवी स्वरूप, वही नैन-नक्श, वही तेज, वही कक्ष, वही कर्तव्य बोध, वही मातृ बोध , राष्ट्र के लिए आत्मोत्सर्ग की ललक- “मैं अपनी झाँसी की रानी (लक्ष्मी बाई) नहीं दूँगी”।

“अगर भारत की 1% महिलाएँ भी चीनी जैन्सी हो गईं तो सब कुछ ठीक कर यहाँ से चले जाएँगे” – जनरल ह्यूरोज़ – आखिर क्यों महान वीरांगना तट के इतिहास में जगह बना लें तो अपना इतिहास तोड़ दें – मरोड़ कर छोड़ो! आखिर क्यों? सच तो यह है कि पश्चिमी इतिहासकारों, चमत्कारी इतिहासकारों के साथ एक दल विशेष के समर्थक जत्थनखोर इतिहासकारों ने मुगलों और आदिवासियों का समूह बनाया और भारतीय अपने चमत्कारों का इतिहास में गुणगान कर अनाधिकृत रूप से शामिल किया ताकि हमारा वीरोचित इतिहास का रहस्योद्घाटन हो जाए! भावना से केवल हमारी पराजय का इतिहास, हमारी विजय और वीरोचित संघर्ष का नहीं! और भारतीय वास्तविक वीरांगनाओं के साथ तो दोयम दर्जे का व्यवहार हुआ!… वीरांगना शोभारी बाई भी इसी षडयंत्र का शिकार हुई हैं!

वीरांगना स्कूल प्रशासन का जन्म 22 मार्च 1830 को भोजला गाँव के पास निर्धन कोली परिवार में हुआ था। साड़ी बाबा बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह (मूलचंद कोली) और माता का नाम जमुना देवी था। जब आकर्षक बाई बहुत छोटी थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गई थी और उनके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। उन्हें घुड़सवारी और आराम का प्रयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया था। उन दिनों के सामाजिक परिदृश्य के कारण उन्हें कोई प्रभावशाली शिक्षा नहीं मिली, लेकिन वे स्वयं एक महान महान के रूप में विकसित हुए थे।

बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ गॉव्स थे। फैक्ट्री के अलावा जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का भी काम किया गया था। एक बार जंगल में मछली पकड़ने वाली मछली पकड़ने वाली मशीन एक खिलौने के साथ हो गई थी, और मछली ने अपनी बंदूक से उस जानवर को मार डाला था। एक अवसर पर जब डकैतों के एक अन्य गिरोह ने गांव के एक समूह पर हमला किया तब समर्थकों ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे से मजबूर कर दिया। उसकी इस बहादुरी से ख़ुशी गाँव वालों ने अपनी शादी रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक को पूरी कोरी से करवा दी, पूरी भी बहुत बहादुर थी और पूरी सेना उसकी बहादुरी के लौहपुरुषों की सरदार थी। एक बार गौरी पूजा के अवसर पर पैगाम गांव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देते हुए झाँसी के किले में दी गई, वहाँ की रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गईं, क्योंकि शोभाकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखती थीं। अन्य टोंस से महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता के किस्से ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। रानी ने दुर्गा सेना में शामिल करने का ऑर्डर दिया। बज़ारी ने यहां अन्य महिलाओं के साथ बंदूक बनाने, तोप ली और तलवारबाजी की ट्रेनिंग दी। यह वह समय था जब वर्जिनिया की सेना ने किसी भी ब्रिटिश डस्साहस का सामना करने के लिए इसे मजबूत बनाया था

लॉर्ड डलहौजी राज्य की नीति पर ईसा मसीह ने निश्चिन्त लक्ष्मीबाई को उनके उत्तराधिकारी के रूप में गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य पर अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालाँकि, ब्रिटिशों की इस कार्रवाई के विरोध में रानी की सारी सेना, उनके सेनानायक और दल के लोग रानी के साथ लामबंद हो गए और उन्होंने ब्रिटिशों के हथियार उठाने की जगह आत्मसमर्पण करने का संकल्प लिया।

अप्रैल 1858 के दौरान, लक्ष्मीबाई ने किले के अंदर अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा कई सैनिकों को विफल कर दिया गया। रानी के सेनानायकों में से एक प्रिय राव ने उसे धोखा दिया और किले के एक संरक्षित द्वार को ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी की सेना के दिग्गजों और जनरल बाई ने उन्हें कुछ किले के साथ ठीक करने की सलाह दी। रानी अपने घोड़ों पर सवार होकर अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ यात्रा पर निकलीं। बाबासारी बाई के पति पूर्ण किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गए, लेकिन अपने पिता की मृत्यु का शोक मनाने के बजाय, बाबासारी ने बाबासारी को धोखा देने की एक योजना बनाई। बशारी ने लक्ष्मीबाई की तरह के कपड़े पहने और माता की सेना की कमान अपने हाथ में ले ली। जिसके बाद वह पचंची से मिले किले के बाहर ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज के शिविर से बाहर निकले।

ब्रिटिश कैंप में पचहने पर शी चिल्लाकर ने कहा कि वो जनरल ह्यूरोज से मिलना चाहते हैं। ह्यूरोज़ और उनके सैनिक इस बात से सहमत थे कि उन्होंने सिर्फ डकैती की बात नहीं की बल्कि जीवित रानी भी उनके व्यवसाय में हैं। जनरल ह्यूरोज़ जो उसे रानी ही समझ रहे थे, उसने फ़ेसबुकरी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने विश्वास के साथ कहा, मुझे फाँसी दो। जनरल ह्यूरोज बेकरी के साहस और उनकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुए, और बॅपेरी को रिहा कर दिया गया। इसके विपरीत कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि इस युद्ध के दौरान वीरगति प्राप्त हुई थी।

एक बहुचर्चित किंवदंती है कि इस उत्तर से जनरल ह्यूरोज डांग रह गए और उन्होंने कहा कि “अगर भारत की 1% महिलाएं भी इसी तरह की हो गईं तो भारत को जल्दी ही भारत भेज दिया जाएगा।” यद्किंचित यह भी इतिहास में दर्ज है कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थी। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी यही कारण थी कि शत्रु को गिराने के लिए वे रानी के वश में भी युद्ध करते थे। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के जहाज़ों में युद्ध कर रहे थे और ब्रिटेन के हाथ किले की घेराबंदी करके रानी के किले की घेराबंदी से बाहर का अवसर मिल गया था। उन्होंने 1857 की स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता की लड़ाई में ब्रिटिश सेना के कई दुष्टों को विफल कर दिया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने भगवान के किले का अपमान किया तो ब्रिटिश सेना ने प्रार्थना की: अभेद्य था।

वीरांगना बाइबिल बाई के संबंध में एक और सिद्धांत यह है कि जब वह समय था तब किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए डीजे की सेना को मजबूत बनाया जा था। वे रानी लक्ष्मीबाई की भी यही वजह है कि शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी लक्ष्मीबाई भी युद्ध करती हैं। कहा जाता है कि प्रचारक बाई का पति पूर्ण किले की रक्षा के लिए शहीद हो गया था, लेकिन प्रचारक ने अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के बजाय, भाईचारे से संघर्ष का मार्ग चुना।

जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी की सेना के दिग्गजों और जनरल बाई ने उन्हें कुछ किले के साथ ठीक करने की सलाह दी। योजना के अनुसार महारानी लक्ष्मीबाई एवं दर्शन दोनों पृथक्करण-पृथक द्वार से बाहरी दृश्य। फ़बरी ने तामझाम को और अधिक पहना था क्योंकि शत्रु ने उन्हें ही रानी समझा और उन्हें ही घेरने का प्रयास किया था। रानी अपने घोड़ों पर सवार होकर अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ यात्रा पर निकलीं। शत्रु सेना से भीषण युद्ध करने लगी। अंततः बिज़नेस बैसबरी ली गया। ब्रिटिश कैंप में पचहने पर शी चिल्लाकर ने कहा कि वो जनरल ह्यूरोज से मिलना चाहते हैं। ह्यूरोज और उनके सैनिक सहयोगियों ने कहा कि केवल रात्रि विश्राम पर कब्जा नहीं किया गया है, बल्कि जीवित रानी भी उनके व्यवसाय में है। जनरल ह्यूरोज़, जो उन्हें रानी ही समझ रहे थे, ने फ़ेसबुकरी बाई से पूछा कि उनका साथ क्या दिया जाना चाहिए? तो उसने विश्वास के साथ कहा, मुझे फाँसी दो। एक अन्य ब्रिटिश गैजेट ने कहा… “मुझे तो यह महिला पगली लैंडफॉल है।” जनरल ह्यूरोज ने कहा था कि अगर भारत की एक प्रतिशत नारिया इसी तरह पागल हो तो हम सब कुछ ठीक कर यहीं से चलेंगे।

हॉर्स पर शोरूम बसाकरी बाई को देखने के बाद फिरंगी डेल हॉर्नचक्का रह गया। रानी आई थी, रानी की रानी ने दान कर दिया है, जैसे चर्चा हर सैनिक कर रहा था। दूसरी तरफ एक गद्दार ग्लैजू ने राष्टपति बाई को पहचान कर शोर मचा दिया कि ये रानी लक्ष्मी नहीं हैं, बल्कि महिला सेना की सेनापति बाजीजू ने पीआरओ को धोखा देने के लिए कहा है। रानी लक्ष्मीबाई बन कर लड़कियाँ रही हैं। ब्रिटिश सेनापति ह्यूरोज ने महारानी से दफ्ते हुए कहा था कि- “आपने रानी के आकर हमें धोखा दिया है और महारानी लक्ष्मीबाई को यहां से आने में मदद की है।” आपने हमारे एक सैनिक की भी जान ली है। मैं भी आपका प्राण लूँगा।”
फ़सारी ने गर्व से उत्तर देते हुए कहा- “मारा दे गोल, मैं प्रस्तुत हूँ।” सिपाहियों ने उन पर झपटते हुए, बोरा छापरी बाई तलवारें मियां से बाहर निकाल कर मारकाट करने लगी। ह्यूरोज ग्राउंड पर गिर पेड, और उसके मुंह से बेसाकाटा निकला – बहादुर महिला शाबास। जिस रानी की नौकरानी इतनी बहादुर है वह रानी कैसी होगी। काफी संघर्ष के बाद जनरल रोज ने फिल्म ‘सफलता पाई’ में लोक संगीत की प्रस्तुति दी और उन्हें एक तंबू में कैद कर लिया। इससे आगे क्या हुआ, अलौकिक बाई का अंत कैसे हुआ, इसे लेकर कुछ प्रतिष्ठा है। संस्थापक वृंदावनलाल वर्मा ने अपनी पुस्तक “झाँसी की रानी” में लिखा है कि ह्यूरोज ने स्वतंत्रता संग्राम से मुक्ति के बाद रानी और डेमोक्रेटिक के संभ्रम का रहस्योद्घाटन किया था। उनके अनुसार, एक लंबे समय तक रहने के बाद, बाबा साहेब बाई के नाती से जानकारी ली गई थी।

बद्री नारायण की भी अपनी पुस्तक “उत्तर भारत में महिला नायक और दलित अभिकथन: संस्कृति, पहचान और राजनीति” में वर्मा जी से विचार-विमर्श किया गया है। किंवदंती के अनुसार भी जनरल ह्यूरोज लिबासकारी के साहस और उनकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित थे, और निरपेक्ष बाई को रिहा कर दिया गया था। कई लोगों का मानना ​​है कि उनके प्रवेश से इंग्लैंड, लाखों, स्वतंत्र और अनगिनत क्रांतिकारी प्रभावित हुए, इस मानव की आशा संभव नहीं है, मूलतः यह केवल एक प्रस्तावक प्रतीत होता है।

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उनके अंग्रेज़ों के फाँसी ने उनके घाट पर ही प्राणघातक हमला कर दिया था। इसके विपरीत कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि इस युद्ध के दौरान ही वीरगति प्राप्त हुई थी जो सही रूप में सामने आती है। श्रीकृष्ण सरल ने अपनी “भारतीय क्रांतिकारी: एक व्यापक अध्ययन, 1757-1961, खंड 1” पुस्तक में उनकी मृत्यु के युद्ध के दौरान हुई थी, ऐसा वर्णन किया है। अखिल भारतीय युवा कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष। नरेशचन्द्र कोली की 4 अप्रैल 1857 को महारानी बाई ने वीरगति प्राप्त की।

बाबासारी बाई की गाथा आज भी बजरंगबली की लोकगाथाओं और लोकगीतों में समायी हुई है। अनेक विद्वानों, लेखकों, इतिहासकारों ने ईश्वरीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान का वर्णन किया है। 21-10-1993 से 16-05-1999 तक अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे श्री माता प्रसाद ने प्रचारक बाई की जीवनी की रचना की है। इसके अलावा चोखेलाल वर्मा ने उनके जीवन पर एक वृहद काव्य लिखा है, मोहनदास नैमिशराय ने उनकी जीवनी को पुस्तककार दिया है और भवानी शंकर विशारद ने उनके जीवन परिचय को लिपिबद्ध किया है।

भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण के प्रकाशन विभाग ने बाबा साहब बाई का विस्तृत इतिहास भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण के प्रकाशन विभाग के नाम से ही प्रकाशित किया है। बुंदेली के सुप्रसिद्ध लेखक महाकवि गोस्वामी ने एक नाटक की रिकॉर्डिंग में वीरांगना भगवती बाई की ऐतिहासिकता को प्रमाणित किया है। बाई की गाथा में आज भी पौराणिक कथाएँ और लोकगीत शामिल हो सकते हैं।

भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 को प्रचारक बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। यद्किंचित्त यह भी कि अब अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के अंतर्गत सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की महान वीरांगना बाजारी बाई के महान अवदान और गौरवशाली इतिहास पर उपजे मतान्तरों के अभिन्न अंग उद्दीपन के नवीन शिखर स्मरणीय कार्य पूर्ण हो चुके हैं, अल्पांश प्रस्तुत हैं, शीघ्र ही विहंगम इतिहास ने आपके सरदारों द्वारा प्रकाशित किया।

लेखक श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संग्रह समिति के विभागाध्यक्ष हैं।