Trending Now

हिन्दू संवत्सर के चलते पाश्चात्य नव वर्ष मनाया जाना औचित्यहीन है

हिंदू संवत्सर पिंगल, गज केसरी योग, नवपंचम राजयोग बुधादित्य योग के साथ चल रहा है, इन अद्भुत संयोगों के साथ अयोध्या जी में घाट वासी प्रभु रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत 2080 गुरु 22 जनवरी 2024 को आएंगे ।। मूलतः 1 जनवरी 2024 को अतिरिक्त पाश्चात्य नव वर्ष का कैलेंडर जारी करने का कोई औचित्य नहीं है।

पाश्चात्य नव वर्ष 1 जनवरी 2024 से प्रारंभ हो रहा है, जिसमें आम तौर पर मांस के लिए शुभ बनाने और विभिन्न प्रकार की गंदगी के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण और प्रकृति संरक्षण के संदेश दिए गए हैं !! !यह वास्तुशिल्प एवं संरचना है कि पाश्चात्य नव वर्ष का शुभारंभ अवंचनीय कुकर्त्यों से होता है। हिंदू संस्कृति में चैत्र नवरात्र के पावन अवसर पर हिंदू नव वर्ष, गुड़ी पड़वा सहित विभिन्न भारतीय त्योहारों की महान श्रृंखला शुरू हो जाती है। पर्यावरण में शुचिता के साथ नव संवत्सर का आरंभ होता है, जिसमें विश्व कल्याण की भावना लेकर सभी दुर्व्यसनों से मुक्त होकर शक्ति की आराधना की जाती है। भारतीय पंचांग, ​​विश्व के सभी पंचांगों का मूलाधार है। सं विक्रमावत 2080 (सन् 2023) चल रहा है यह अत्यंत दुर्लभ है क्योंकि गज केसरी, नवपंचम और बुधादित्य योग बने हैं। यह नव संवत्सर “पिघल” संवत्सर के रूप में शिरोधार्य है। सम +वत्सर (संवत्सर) का मौसम पूर्ण वर्ष से है। प्रचलित संवत्सर के राजा बुद्ध मंत्री शुक्र और मेघेश गुरु हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार न्याय देव शनि और देवगुरु बृहस्पति स्वराशि में हैं। शनि का मंगल और केतु दोनों के साथ नव पंचम राजयोग बनता है। मीन राशि में सूर्य बुध की युति बुधादित्य योग का निर्माण कर रहे हैं जबकि गुरु चंद्रमा सहित गुरु बुध केसरी योग का निर्माण कर रहे हैं।

राजा विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व सन् 57 में विदेशी अक्रांता शकों पर प्राप्त करके विक्रम संवत (भारतीय नव संवत्सर) की शुरुआत की थी, जिसमें भारतीय खगोलशास्त्र और पोर्टफोलियो का विकास हुआ था। यह तिथि पत्र (कैलेंडर) हिंदू पंचांग के चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है।

12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह का वोग विक्रम संवत से ही प्रारंभ हुआ। महीने का लेखा-जोखा-सूर्य और चंद्रमा की गति रखी जाती है। विक्रम पंचांग (कैलेंडर) की इस अवधारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और बंधुओं ने जोड़ा।

इसे नव संवत्सर भी कहते हैं।

संवत्सर के पाँच प्रकार हैं सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास। सं विक्रमावत में सभी का समावेश है। सं विक्रमवत के बाद सन् 78 में शक संवत की शुरुआत हुई।

वर्ष के पाँच प्रकार होते हैं। मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौर वर्ष के माह हैं। यह 365 दिन का है। वर्ष का प्रारम्भ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है। फिर जब मेष राशि का पृथ्वी के आकाश में भ्रमण चक्र नक्षत्र है तब चंद्रमा के चैत्र माह का प्रारंभ होता है।

चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चन्द्रवर्ष के माह हैं। चन्द्र वर्ष 354 दिन होता है, जो चैत्र माह प्रारम्भ होता है। चन्द्र वर्ष में चन्द्र की कलाओं में वृद्धि होती है तो यह 13 माह होती है। जिस दिन चन्द्रमा नक्षत्रों में शुक्ल प्रतिपदा का प्रारम्भ होता है उसी दिन से हिन्दू नववर्ष का शुभारम्भ माना जाता है।

सूर्यमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से नक्षत्र 10 दिन का अंतर आता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहा जाता है।

लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा आदि कहा जाता है। बाकी 88 नक्षत्र हैं लेकिन चंद्र पथ पर 27 नक्षत्र ही आते हैं। सावन वर्ष 360 दिन का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है।

ज्योतिष में बृहस्पति शुक्र और ग्रह को मंगल कार्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। संवत्सर का संबंध बृहस्पति ग्रह की गति, राशि परिवर्तन, उसका उदय और अस्त से है। जैसे धरती के 12 मास होते हैं उसी तरह बृहस्पति ग्रह के 60 संवत्सर होते हैं। प्रतिपदा वाले दिन से 60 संवत्सर में एक नया संवत्सर प्रारंभ होता है। इसलिए इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर का अर्थ है बारह महीने की कालविशेष अवधि। बृहस्पति के राशि परिवर्तन से इसकी स्थापना मानी जाती है।

60 संवत्सरों के नाम इस प्रकार हैं – प्रभव, विभव, शुक्ल, वैभव, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषभप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, भौतिक, अव्यय, सर्वजीत, सर्वाधारी,विरोधी, विकृति, खर, नंदा, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलामी, विलामी, विकारी, शारवरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, परभव, प्लवंग, कीलक, सौम्य, सामान्य, विरोधकृत, परिवी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुंदुभि, रुधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।

बृहस्पति ग्रह के वर्षों के आधार पर युगों के नाम सूर्य सिद्धांत के अनुसार बृहस्पति ग्रह के आधार पर बताए गए हैं। 60 संवत्स में 20 -20-20 के तीन भाग हैं जिनमें ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहा गया है। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि सात वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पाँच-पाँच वत्सर होते हैं। युगों के नाम हैं- प्रजापति, धाता, वृषभ, व्ययकर्ता, खर, दुर्मुख, प्लव, परभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा अनुवत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर है। 12 बृहस्पति वर्ष वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के अनुसार इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 अलग-अलग जंगलों के 361 दिन के साल माने गए हैं। बृहस्पति के राशि परिवर्तन से इसकी स्थापना मानी जाती है।

सं विक्रमावत में नववर्ष की चंद्रमास के चैत्र माह के उस दिन से घटित होती है जिस दिन ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी। इस दिन को ही सतयुग का आरंभ, भगवान विष्णु का मत्स्यावतार, उत्सव का प्रारंभ, भगवान राम का राज्याभिषेक, इस दिन के रूप में शिरोधार्य हुआ था। इसी दिन से ही सबसे बड़ा दिन माना जाता है।

ज्योतिषियों के अनुसार इसी दिन से चैत्र पंचांग का आरंभ माना जाता है, क्योंकि चैत्र मास की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्रों में होने से इस चैत्र मास को नववर्ष का पहला दिन माना जाता है। रात के अँधेरे में नव संवत्सर का स्वागत नहीं होता। नये साल में सूर्य की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में पुष्प स्नान आदि से निवृत्त, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में पुष्प पुष्प महोत्सव मनाया जाता है। घर को झंडा, पताका और तोरण से भेजा जाता है। शुभ कार्य और नई परिभाषा का पद होता है। हर हिंदू, विश्व कल्याण की भावना के आलोक में नव संवत्सर की बधाई मांगता है। हिंदू नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम संवत 2081 9 अप्रैल 2024 से प्रारंभ होगा।

-डॉ. आनंद सिंह राणा