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भक्तिमार्ग को भौतिक और अध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्त्व है।

विश्व को धर्म का वास्तविक स्वरूप समझाने हेतू संतों का बडा योगदान

हिंगोली- राष्ट्रीय सावयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि राष्ट्र का सामर्थ्य, आध्यात्मिक शक्ति पर ही टिका होता है और यह आध्यात्मिक शक्ति को वृद्धिंगत करने हेतु साधु तथा संतो का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

संपूर्ण विश्व को संतुलित रखने और वास्तविक धर्म समझाने हेतु संतों ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। हमारे यहाँ भक्ति के, उपासना के मार्ग अलग अवश्य होगें, भाषा, परंपरा भिन्न होगीं, परंतु अंततः सभी भारतीयों की श्रद्धा एक ही है, अंतिम सत्य एक ही है और यही भारत की विशेषता है!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू. सरसंघचालक, मा. डॉ. मोहनजी भागवत ने नरसी में (जिल्हा हिंगोली-महाराष्ट्र) श्री गुरुद्वारा दर्शनपश्चात, स्थानीय नागरिक, संत, सज्जन वृंद से संवाद करते समय कहा- “भक्तिमार्ग को भौतिक और अध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्त्व है। महाराष्ट्र में अनेक संतों की परंपरा रही है।

श्री संत नामदेव जी ने सरल भाषा में लोगों को भक्तिमार्ग सिखाया। उन्होंने पंजाब तक वारकरी संप्रदाय की पताका लहराई। इसी से हिंदू समाज के आपस में समन्वय, सद्भाव और आत्मीयता का दर्शन होता है। अत्यंत सामान्य पारंपारिक कथाओं में भी अध्यात्म और सामाजिक जागृती भारत में आज भी दिखाई देती है। इसलिए पंजाब की पावन भुमि ने संत नामदेव जी के मार्ग को सहज स्वीकार किया। संत नामदेवजी की 61 पंक्तियां गुरु ग्रंथसाहेब में भी समाविष्ट है।

श्री गुरुनानकदेवजी, श्री गुरुगोविंदसिंगजी ने संत नामदेवजी को सदैव आदर और सम्मान का स्थान दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी यही भूमिका है। एक जन, एक संघ इसमें से ही मूलभूत साक्षात्कार होता है”, यह प्रतिपादन पु. सरसंघचालकजी ने किया |

नर्सी में श्री संत नामदेव महराज के जन्मस्थान, गुरुद्वारा के दर्शन और संत नामदेवजी की समाधि स्थान के दर्शन से मैं धन्य हुआ, यह कहते हुए पू. सरसंघचालक जी ने अपने भाव प्रकट किए। इस समय एड. संतोषजी कुटे ने प्रस्तावना व परिचय करवाया। कार्यक्रम मे जिल्हा संघचालक श्री तेजकुमारजी झांजरी, श्री सुखबीर सिंगजी, श्री संदीपजी रासकर, संस्था के अध्यक्ष व गुरुद्वारा प्रमुख भी उपस्थित थे।