Trending Now

राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या आंदोलन…

सृष्टि के आदिकाल से भारत है व अनंतकाल तक रहेगा। प्रत्येक युग में, इतिहास के प्रत्येक कालखंड में भारत रहा है। भारत से ही संपूर्ण विश्व-ब्रह्मांड का इतिहास जुड़ा हुआ है। भारत विश्व का धुरी राष्ट है। भारत की प्रगति से विश्व की उन्नति जुड़ी हुई है। विष्णु पुराण में भारत का वर्णन आता है। वहीं बृहस्पति आगम ग्रंथ में हिंदुस्तान का उल्लेख आता है।

सृष्टि में विराट कालचक्र युगों का चल रहा है। जिसमें सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग क्रमशः आते व जाते हैं। इतिहास की पुनरावृति होती है। इसी कड़ी में भारतवर्ष के मध्यकाल में मजहबी विदेशी आक्रमण सोने की चिड़ियाको लूटने, धर्म प्रसार, व सत्तासीन होने के लिए होते रहे हैं। इन आक्रमणों की श्रंखला में में शक, हूर्ण, कुशाण, अरबी, मुस्लिम, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, फ्रांसीसी, अंग्रेजों के प्रमुख रूप से बर्बर अभियान भारतवर्ष की ओर निरंतर लगभग 2000 वर्ष तक होते रहे हैं।

कुछ लुटेरे अपनी भूख मिटाने आए तो कुछ अपनी शमशीर परीक्षण करने आए एवं भारतवर्ष के शौर्य -पराक्रम का स्वाद चख कर उल्टे पांव लौट गये। भारतीय  शौर्य -पराक्रम की गाथा अद्भुत, अनुपम व अद्वितीय है। यहां तो पोरस (पुरु) यशोधर्मा, चंद्रगुप्त , दाहिर, देवल, पृथ्वीराज चौहान, बप्पा रावल, राणा सांगा, महाराणा कुंभा, महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौर, शिवाजी, संभाजी,  तानाजी मालुसरे, गुरु गोविंद सिंह, रणजीत सिंह, हरिसिंह नलवा, बंदा बैरागी, लचित बडफुकन, आनंदपाल, हेमचंद्र राय जैसे सूरवीरों की एक लंबी श्रंखला रही है।

कलि के प्रवाह में मध्यकाल में भारतीय रियासतों कि आपसी कलह, कटुता, द्वेष का फायदा उठाकर विदेशी बर्बर लुटेरे मुगलों ने कुछ समय के लिए भारत मे अपनी सत्ता कायम कर ली। तलवार के बल पर धर्मांतरण-नगरों का ही नहीं, व्यक्ति, भवनों का भी किया गया। जजिया कर लगाया गया धार्मिक यात्राओं पर।

फिर भी हिंदू समाज ने अपनी अस्मिता, आत्म स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया। लाखों राष्ट्रभक्तों ने अपनी गर्दने कटा दी ,ख़ून की आहुतियां दी।  धर्म परिवर्तन के लिए नाना प्रकार के हिंदू समाज पर जुल्म किए गए। दबाव डाले गए, प्रलोभन दिए गए, भयभीत किया गया।

यहां तक शर्त भी रखी गई कि या तो इस्लाम स्वीकार करो अथवा मैला ढोओ। कट्टर राष्ट्रभक्त, धर्मनिष्ट हिंदुओं ने मैला (गंदगी) धोने की शर्त स्वीकार करके अपने सर पर इसे भी ढोया। लोग भूख से मर गए, किन्तु अपना धर्म नहीं छोड़ा। कई जंगल में भी पलायन कर गए और बनवासी जीवन को गले लगाया।

कष्ट-कठिनाइयों भरा जीवन जिया, पर स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया। भारतीय धर्मनिष्ट हिंदू समाज ने अनेकानेक कष्ट सहकर भी सत्य सनातन हिंदू धर्म की ज्योति को प्रज्वलित रखा। भारतीय समाज ने हिंदू स्वाभिमान के प्रतीक वीरयोद्धा चंद्रगुप्त की सेना के ध्येय वाक्य को अपनाकर अपना जीवन जिया।

मृत्यु से भय, ना जीवन से प्रीत, विजय या वीरगति, यही भारत की रीत

 भारतीय स्वाभिमान की गाथा अप्रतिम, अतुल्य है।

बाबर के पूर्व आक्रमणकारी सालार मसूद ने 10 33 ईसवी में साकेत (अयोध्या) में डेरा डाला था। तथा उसी समय जन्मभूमि के प्रसिद्ध मंदिर को भी ध्वस्त किया था। सालार मसूद जब मंदिर को तोड़कर वापस जा रहा था। तभी बहराइच में घनघोर युद्ध में सालार मसूद का बध 14 जून 1033 को हिंदूवीर पराक्रमी राजा सुहेलदेव ने किया।

महाराजा सुहेलदेव के पराक्रम पूर्ण भीषण युद्ध से विदेशी आक्रांता इतने भयभीत हो गए कि सैकड़ों वर्षो तक किसी की भी हिम्मत भारत की तरफ आंख उठाने की नहीं हुई।  गढ़वाल बंसी राजाओं ने पुन: मंदिर का निर्माण कराया।

 मध्यकाल में बर्बर आक्रांता बाबर ने 1526 मे पानीपत के प्रथम युद्ध को जीतकर, भारत में मुगलिया सल्तनत की नींव रखी। बाबर को उसके सिपह सालारो  ने सलाह दी कि यदि भारत में मुगलिया परचम  को स्थाई रखना है तो हिंदू स्वाभिमान के प्रतीक अयोध्या के श्रीराम जन्म स्थान, मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि व काशी विश्वनाथ के मंदिरों को ध्वस्त करना होगा, नष्ट करना होगा तभी हिंदू झुकेगा ब मुगलिया सल्तनत क भय हिंदू समाज में व्याप्त रहेगा।

तब बाबर  ने अपने सेनापति मीरबाकी को 1528 में अयोध्या श्रीराम जन्म स्थान के मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया। हुकुम की तामिली करने सेनापति मीरबाकी ने अयोध्या कूच किया। अपने सैनिकों से श्रीराम रामलला के मंदिर को ध्वस्त करा दिया और उसी स्थान पर सैयद आशिकाना के संरक्षित व मैं बहा एक भव्य  मस्जिद बनवाई । इसका उल्लेख अल्लामा मोहम्मद नजमुलगनी खान रामपुरी कृत ‘तारीख ए अवध ‘खंड 2, प्रष्ट (570- 575) मे स्पष्ट मिलता है।

श्रीराम जन्मभूमि के मंदिर के ध्वस्त होने से हिंदू समाज में बड़ा रोस, क्षोभ  का वातावरण व्याप्त हो गया। हिंदू समाज भी अंदर ही अंदर  सुलगने लगा। हिंदू समाज में वैचारिक स्तर पर प्रतिकार का भाव प्रबल रूप लेने लगा। संपूर्ण भारतवर्ष इस समाचार से दुखी हो गया ।

 

मंदिर के टूटने पर प्रचंड हिंदू प्रतिकार के कारण मस्जिद की मीनारें नहीं बन सकी थी। वजू करने का स्थान भी नहीं बन सका इस प्रकार वह मात्र एक मस्जिद नुमा ढांचा था, मस्जिद कदापि नहीं। ढाचे के बाहर लगा हुआ फारसी में लिखा पत्थर फरिश्तों का अवतरण स्थल उस स्थान के जन्मभूमि होने के पुष्टि करता है ।

लगातार आक्रमण और संघर्ष के कारण अयोध्या में बहुत स्थान खाली हो गया था। अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए किए गए संघर्षों की शृंखला  बड़ी लंबी है। अनेक हिंदू राजाओं ने अयोध्या से मुगलो आक्रांताओं को खदेड़ने के लिए अनेक बार युद्ध किए, लाखों , वीरों राम भक्तों ने, साधुओं ने, महिलाओं ने अपना बलिदान दिया।

अनेकों बार अयोध्या में खून की नदियां बही,अनेकों बार राम भक्तों की लाशों से अयोध्या पटी। भीषण संघर्ष हुआ किंतु हिंदू समाज एक पल के लिए भी शांत नहीं बैठा। निरंतर संघर्षों की शृंखला चलती रही। बाबर के समय (1528-1530 )के बीच 4 संघर्ष हुए।

श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए भीटी नरेश मेहताब सिंह को जब यह सूचना मिली की बाबर ने भगवान श्रीराम के जन्म स्थान पर कब्जा कर लिया तब वह आग बबूला हो गए और तत्काल अपनी सेना लेकर अयोध्या आये और भीषण संग्राम हुआ।

हजारों राम भक्तों की लाशों से अयोध्या में कोहराम मच गया, खून की नदियां बह गई ,हजारों की मुगल सेना भी काट डाली गई। मुगलिया सल्तनत की नीव हिलती रही तत्पश्चात  हंसवर के राजगुरु देवीदीन पांडे ने अपने क्षेत्र के क्षत्रियों से अपने गुरु दक्षिणा में श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु चलने, शस्त्र उठाने का आह्वान किया एवं देवीदीन पांडे के नेतृत्व में हजारों छत्रिय, योद्धाओं ने मुगल सेना की ईंट से ईंट बजा दी।

मुगल सेना लड़खड़ा उठी किंतु बीच में ही अतिरिक्त सेना आ जाने से हिंदू वीरो का बलिदान हुआ। अयोध्या ने रक्तस्नान किया किंतु इतने पर भी हिंदू समाज भयभीत नहीं हुआ। तब हन्सवर के राजा रणविजय ने अपनी सेना लेकर अयोध्या कूच किया एवं भीषण युद्ध हुआ। हाहाकार मच गया,मुगल सेना काट दी गई।

अयोध्या पर कब्जा हो गया किंतु कुछ समय में मुगल सेना के आ जाने से अयोध्या पर पुन: मुगल सेना का कब्जा हो गया। मुगलों को भारी क्षति उठानी पड़ी, मुगलिया  सल्तनत ने अब भारतीय पराक्रम, स्वाभिमान का स्वाद चखा।

 बावर के पुत्र हुमायूं के कार्यकाल (1530- 1556) ईसवी के बीच भी 10 युद्ध हुए। श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए। स्वामी महेश्वरानंद ने अपनी साधुओं की सेना चिमटा, त्रिशूल, तलवार फर्सा धारियो के साथ हजारों की संख्या में अयोध्या स्थित मुगल सेना पर आक्रमण किया।

पहले तो मुगलों ने साधू  बाबाओं  की सेना को हल्के में लिया। किंतु साधुओं ने वह पराक्रम, रामभक्ति दिखाई की मुगल सेना का मनोबल एक बार गिरने लगा। किंतु सशस्त्र मुगल सेना की बड़ी तादाद के कारण साधुओं की सेना वीरगति को प्राप्त हुई। अयोध्या में हाहाकार मच गया।

इसके पश्चात हंसवर की वीरांगना रानी जयराजकुमारी ने अपनी महिला सेना के द्वारा अयोध्या में मुगल सेना पर आक्रमण किया। मुगल सेना से भीषण संग्राम हुआ ।अप्रतिम शौर्य  का प्रदर्शन किया वीरांगनाओं ने मुगलों ने यह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि महिला शक्ति भी उन पर भारी पड़ सकती है।

अंततः है वह वीरांगनाए  वीरगति को प्राप्त हुई। इस युध्द से हिंदू समाज का स्वाभिमान अत्याधिक प्रखर हुआ। यह एक प्रकार का जोहर से कम बलिदान नहीं था। रामभक्त, मातृशक्ति ने स्वर्ण अक्षरों में इतिहास में अपना नाम दर्ज करा कर भारतीय नारी के आदर्श, गौरव को बढ़ा दिया।

भारतीय वीरांगनाओं के शोर्य पराक्रम को देखकर एक बार फिर ऐसा जान पड़ा कि भारतीय प्राचीन इतिहास की पुनरावृति दुर्गा चंडी के रूप में शत्रु सेना का सहार करने हुई । बलिदान की श्रंखला निरंतर चलती रही। भारतीय समाज कभी पूर्ण रूप से चैन से शांत नहीं बैठा।

हिंदू समाज प्रतिकार ,प्रतिरोध करने निरंतर सुलगता रहा। राष्ट्रीय स्वाभिमान व अस्मिता से कभी सौदा समझौता नहीं किया हिंदू समाज ने। ना ही कभी दुनिया में हिन्दू ने किसी की एक इंच जगह दवाई, अतिक्रमण ही किया। सदैव ही हिंदू ने जगत में आदर्श, त्याग, बलिदान ,प्रेम , वन्धुत्व  का परिचय अपने आचरण से दिया ।इसीलिए तो दुनिया हिंदू को सम्मान से देखती है व मानवता का श्रेष्ठतम आदर्श मानती है।

लेखक:- डॉ .नितिन सहारिया