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समरसता स्मारक का हुआ सामूहिक विधिवत लोकार्पण

करेली। विगत दिनों सरदार पटेल सेवा संस्थान करेली के सौजन्य से समरसता स्मारक एनएच 44 परिसर में जिला समरसता सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें 2 जून को हिंदू सम्राट महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण दिवस के सुअवसर पर समरसता स्मारक का विधिवत लोकार्पण और मूर्ति अनावरण कार्यक्रम संपन्न किया गया।

हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव पर जिला समरसता सम्मेलन में मंचासीन कार्यक्रम में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय डॉ प्रदीप दुबे प्रांत संघचालक महाकौशल प्रांत, मुख्य वक्ता डॉ राजकुमार आचार्य कुलपति एपीएस विश्वविद्यालय रीवा, अध्यक्षता सत्येंद्र सिंह धोरेलिया सेवानिवृत्त कर्नल भारतीय सेना, अवनींद्र सिंह, राकेश उदेनिया प्रांत सह सामाजिक सद्भाव प्रमुख, स्मारक के लिए जमीन दान देने वाली माताजी श्रीमती प्रभा पटेल, समाजसेवी इंजी प्रताप पटेल ,समाजसेवी रमाकांत शर्मा,  प्रेमनारायण रैकवार, बडेलाल तिहैया विराजमान रहे।

सामाजिक एकता और समरसता की स्थापना के लिए प्राचीन काल से विभिन्न संस्कृति, परंपरा प्रचलित होती आयी है जैसे धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ, तप आदि का आयोजन करना। हमारे धर्म ग्रंथ के माध्यम से भी सामाजिक समरसता का प्रचार होता है। इसके माध्यम से सभी समाज, सभी संस्कृति को एक सूत्र में बांध कर रखने का प्रयत्न किया गया है जोकि समरसता का परिचायक है। इसी भाव को जगाने के मंतव्य से इसके पूर्व प्रातः काल में समरसता स्मारक पर गणेश पूजन हवन और संक्षिप्त अनुष्ठान सनातन रीति नीति से समरसता यज्ञ के लिए किया गया। जिसमें महेंद्र नागेश भोला जाटव शीतल चौधरी कोदूलाल बनवारी, अमितेंद्र नारोलिया, रमाकांत शर्मा सुरेंद्र मोहन नेमा इत्यादि सपत्नीक सर्व समाज के कल्याण हेतु गणमान्य जन सहित पूजन विधान में सम्मिलित हुए।

रामायण में वर्णित पक्षीराज जटायु का अंतिम संस्कार करना, वानरराज सुग्रीव के साथ मित्रता स्थापित कर अपने काल में इस मित्रता को बचाये रखना सामाजिक समरसता का उदाहरण है। सामाजिक एकता और समरता इस प्रकार का एक महत्वपूर्ण समकालीन विषय है जिसकी उपयुक्त समीक्षा ठीक तरह से लागू करना आज के समाज एवं राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकता है। जैसे कि किसी व्यक्ति के किसी अंग में घाव हुआ हो तो उसे काट कर नहीं फेंकते है बल्कि उसका उपचार किया जाता है एवं उसे ठीक किया जाता है। ठीक उसी तरह समाज का कोई वर्ग दुर्बल या उपेक्षित हो तो उसका उपयुक्त देखभाल कर राष्ट्र के मुख्य स्रोत में शामिल करना चाहिए। वर्तमान परिस्थिति में भारतीय समाज में जाति प्रथा तथा धर्म आधारित भेदभाव विद्यमान है। इसके द्वारा समाज का बड़ा वर्ग राष्ट्र निर्माण में सहभागी नहीं हो पा रहा है। उसी प्रकार समाज को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टि कोण से विकसित कर मुख्य धारा में शामिल करने के साथ साथ राष्ट्र के विकास में सहभागी के रूप में स्थापित करना अनिवार्य है, यही आज के शिक्षित समाज का ध्येय होना चाहिए। इन्हीं महती भूमिका निभाने के लिए आयोजन के मुख्य चरण में पधारे अतिथियों और विशिष्ट जनों सहित प्रबुद्ध और गणमान्य नागरिक जन की उपस्थिति में राष्ट्रीय समरसता स्मारक का सामूहिक लोकार्पण और मूर्ति अनावरण किया गया ।तत्पश्चात मुख्य अतिथियों ने सभी मूर्तियों पर पुष्पार्चन कर महान विभूतियों को कोटि-कोटि नमन किया। साथ ही भारत माता की पुष्प वंदना की गई। सभी आमंत्रित अतिथियों के द्वारा यह पावन कार्य संपन्न किया गया।

कार्यक्रम के अगले चरण में मंचीय कार्यक्रम का प्रारंभ के द्वारा दीप प्रज्वलन सरस्वती अर्चन छत्रपति शिवाजी महाराज के वंदन के द्वारा औपचारिक रूप से किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ राजकुमार आचार्य में हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव के अवसर पर हिंदू साम्राज्य को पुनर्स्थापित करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की 350 वी जयंती पर हिंदू साम्राज्य की गौरव गाथा का बखान कर उसके महत्व के बारे में विस्तार से बताया। आगे आपने कहा कि हिंदू धर्म को विश्वव्यापी धर्म संस्कृति दर्शन निरूपित किया जाता है। भारतीय प्राचीन आश्रम व्यवस्था एवं वर्ण व्यवस्था को श्रेष्ठ और वैज्ञानिक आधारों पर निरूपित बताया ।साथ ही कर्म आधारित व्यवस्था ही सामाजिक जीवन का सर्वोत्तम मापदंड होती है। जाति उपजाति और समाज के विभाजनकारी प्रोपगेेंडा को लेकर हर समाज और वर्ग को अपनी सोच और धारणा बदलनी होगी।

डॉक्टर प्रदीप दुबे ने अपने प्रबोधन में कहा कि हिंदू समाज की समरसता का विचार दो महापुरुषों ने बड़ी गहराई से किया है। इसमें पहले महापुरुष हैं पूजनीय डॉ. हेडगेवार और दूसरे महापुरुष हैं पूजनीय डॉ. बाबासाहब अंबेडकर। डॉ. बाबासाहब अंबेडकर ने जब पुणे के संघ शिविर में गये तब उनका अनुभव भी यही रहा। समाज में बंधुभाव निर्माण हुए बिना देश शक्तिशाली नहीं होगा, अन्य बातें गौण हैं, यह जिस तरह इतिहास ने साबित कर दिया उसी तरह डॉ. हेडगेवार ने प्रत्यक्ष कार्य कर यह सिद्ध कर दिया।वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि, हमारे द्वारा अपनी पहचान भूल जाने से यह अनर्थ हुआ है। हमारी पहचान क्या है? जाति हमारी पहचान है या राष्ट्रीय शब्द हिंदू हमारी पहचान है? और उन्होंने दृढ़निश्चय किया कि वे हिंदू समाज में हिंदू की पहचान जगाएंगे। हम सब एक हैं, हमारा देश एक है, हमारी संस्कृति एक है, हमारी राष्ट्रीयता एक है, हमारा इतिहास एक है, हमारे आदर्श एक हैं, हमारे जीवन के लक्ष्य समान हैं इस अर्थ में हम हिंदू हैं।

स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माताओं और मनीषियों ने समाज के एकीकरण और समानता का भाव बनाए रखने के लिए जो विधान प्रावधान किए आज उनका लाभ मिलता हुआ दिखाई दे रहा है समाज के बीच दूरियां नगण्य सी हो गई हैं जिनको भी खत्म किया जाना आवश्यक है। उन्होंने राज्य संविधान के माध्यम से सब की सहभागिता का जो कार्य किया उसका कोई सानी नहीं है। कार्यक्रम की अध्यक्षीय वक्तव्य में कर्नल धोरेलिया ने बताया कि हिंदू राष्ट्र और समाज को विदेशी और विधर्मी षड्यंत्री सोच को समझना होगा और जातीय रंग में रंगने की वजह समाज व क्षेत्र में हिंदू गौरव और पहचान बनाने की आदत डालनी होगी।

कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए विनोद नेमा ने कहा एकरस और समरस समाज का निर्माण ही भारत को हिंदू साम्राज्य के गौरवमयी युग में पुनः ले जा सकता है।समाज के स्तर पर समरसता से शांति सहयोग की भावना विकसित होती है जो आर्थिक विकास के साथ ही सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करती है। राकेश उदेनिया ने समाज में सद्भाव सौहार्द समरस जीवन को समाज में संगठन ,समानता और सुदृढ़ीकरण के लिए जरूरी बताया। इसके लिए परस्पर संलग्नता, परम्परानुकूलता, परस्पर-निर्भरता ये तीन घटक समाज के तीन बुनियाद घटक होते हैं। समाज में समरसता कायम करनी हो तो इन तीनों का ध्यान हमें रखना होगा। हम परस्पर संलग्न हैं यह भाव मन में होने पर समाज में कोई भी भूखा नहीं रहेगा।

वक्ताओ द्वारा बताया गया कि समरसता स्मारक में राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाले राष्ट्र शिल्पी लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की विशालकाय प्रतिमा स्थापित करने से राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित समरसता स्मारक राष्ट्रीय स्तर का पुनीत कार्य है। इनके साथ ही नरसिंहपुर जिले की चार महान विभूतियो की जो चार मुख्य प्रतिमाएं स्थापित की गई है। जिनमें मध्य प्रदेश के भामाशाह के रूप में जिले को गौरवान्वित करने वाले दानवीर और बोहानी में लगभग पौने तीन सौ एकड़ कृषि भूमि मय साजो सामान के राज्य सरकार को दान करने वाले चौधरी राघव जी मिश्र का कृतित्व किसी से छुपा नहीं है उनके द्वारा दी गई भूमि पर ही नवोदय विद्यालय कृषि विद्यालय कृषि और उद्यानिकी विभाग के कार्यालय विकसित हो सके हैं जिनका लाभ जिले को निरंतर मिल रहा है। नरसिंहपुर जिले में हिंदुत्व के पुरोधा और गौ सेवा और गंगा के उपासक के रूप में जाने जाने वाले प्रसिद्ध समाजसेवी स्वर्गीय रोशन सिंह धौरेलिया का जीवन सदैव अधर्म को रोकने में मददगार साबित हुआ। क्षेत्र में विख्यात शिक्षाविद एवं कर्मयोगी स्वर्गीय ठाकुर निरंजन सिंह की शैक्षणिक संस्थाएं शिक्षा और संस्कार देकर हजारों विद्यार्थियों का जीवन संवार रही है। जनसहयोग और अपने निजी धन से नरसिंहपुर में हरेराम धर्मशाला का निर्माण कराने वाले स्वर्गीय हरेराम रैकवार बाबा ने दशकों पहले आम जन के लिए आश्रय स्थल की व्यवस्था की।

कार्यक्रम के उपरांत अतिथियों द्वारा प्रकृति पूजन और पर्यावरण संरक्षण के उत्तरदायित्व बोध को अंगीकार करने के हितार्थ समर्पित समरसता स्मारक पर कार्यक्रम की स्मृतियां अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए समरसता पौधारोपण भी संपन्न किया।कार्यक्रम का मंच संचालन कमलेश कौरव सामाजिक समरसता प्रमुख के द्वारा कहा गया कि सामाजिक एकता का अर्थ जाति, धर्म, वर्ण से ऊपर उठकर एक साथ रहना है। सामाजिक एकता विपरीत परिस्थिति में भी एक दूसरे को मदद करने के लिए प्रेरित करता है। एकजुट रहना, मजबूत रिश्ते और मजबूत समाज के निर्माण में एकता विशेष महत्व रखता है। विभिन्नता से परिपूर्ण देश के लिए सामाजिक एकता महत्वपूर्ण अंग है।

सामाजिक एकता और समरसता प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज में जागृत हो सके तो एक दूसरे को सहायता एवं समर्थन के लिए आगे आ सकते हैं। एवं समरसता स्मारक की परिकल्पना को प्रारंभ से ही साकार करने में लगे इंजीनियर प्रताप पटेल ने कार्यक्रम में पधारे विशिष्ट अतिथियों गणमान्य नागरिकों और जनमानस का आभार व्यक्त किया।समरसता सम्मेलन में जिले भर से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं,समाजसेवियों, सामाजिक कार्यकर्ता, निवासरत समस्त समाज और बिरादरी के प्रबुद्ध जन ने सैकड़ों की संख्या में आकर सहभागिता की।